देहरादून: उत्तराखंड में भले ही कांग्रेस की सरकार रही हो या बीजेपी की, सभी ने अपने हिसाब से अपने मन से किसी बड़ी पर्सनालिटी को उत्तराखंड का ब्रांड एंबेसडर बनाया. किसी भी सरकार के लिए यह तब जरूरी हो जाता है जब उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य को और अधिक पहचान दिलानी हो. भले ही वो पर्यटन हो या फिर कोई दूसरा क्षेत्र, उत्तराखंड में भी ब्रांड एंबेसडर बनाने का चलन पूर्व की सरकारों से ही चलता आया है.
बेवफा निकले सब ब्रांड एंबेसडर: पहले भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, उसके बाद हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता अक्षय कुमार और अब फेमस क्रिकेटर ऋषभ पंत उत्तराखंड के ब्रांड एंबेसडर बनाए गए. हालांकि, इन सबके बीच हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया भी उत्तराखंड की ब्रांड एंबेसडर हैं. लेकिन वंदना कटारिया को छोड़ दें, तो अबतक बने बाकी के तमाम ब्रांड एंबेसडर ने राज्य के लिए क्या किया है, ये न तो गूगल बता पा रहा है और न ही सरकार में बैठे अधिकारी. जिससे सवाल खड़ा होता है कि ऐसे लोगों को ब्रांड एंबेसडर बनाने से राज्य को क्या फायदा मिल रहा है? जिस दिन ये सभी ब्रांड एंबेसडर बनते हैं, उस दिन तो खबरों की सुर्खियों में रहते हैं लेकिन उसके बाद न तो उनके मुंह से उत्तराखंड के लिए कोई शब्द निकलता है और न ही कभी उन्हें उत्तराखंड में आते-जाते हुए देखा जाता है.
अक्षय कुमार ने किया ये काम: आज हम ब्रांड एंबेसडर की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में अपनी फिल्म की शूटिंग करने के लिए पहुंचे फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार को राज्य का ब्रांड एंबेसडर बनाया था. ये ठीक वैसे ही था जैसे महेंद्र सिंह धोनी को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने साल 2010 में उत्तराखंड टाइगर मिशन का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया था. ये सोचकर कि उत्तराखंड के लोग महेंद्र सिंह धोनी से अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे क्योंकि उनका पैतृक गांव उत्तराखंड में है, लेकिन हुआ क्या, पता नहीं.
चलिए, पहले हम बात कर लेते हैं बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की. अक्षय कुमार बीते दिनों उत्तराखंड की राजधानी देहरादून और मसूरी में अपनी एक फिल्म की शूटिंग के लिए पहुंचे हुए थे. अक्षय कुमार का उत्तराखंड का शेड्यूल लगभग 20 से अधिक दिनों का था. वो यहां की खूबसूरत वादियों में शूटिंग कर रहे थे. फिल्म एक सस्पेंस फिल्म थी, जिसका नाम कठपुतली है. हाल ही में यह फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई है.
80 फीसदी शूटिंग उत्तराखंड में, क्रेडिट हिमाचल को: कहानी की डिमांड, फिल्म के किरदार और खुद अक्षय कुमार उत्तराखंड में रहकर शूटिंग कर रहे थे. लेकिन जैसे ही फिल्म उत्तराखंड के लोगों ने देखी तो देखा कि देहरादून की खूबसूरत वादियां, मसूरी की ठंडी सड़कें, होटल और खूबसूरत झरनों के साथ-साथ यहां के वातावरण को बहुत खूबसूरत तरीके से फिल्म निर्माता ने पर्दे पर पेश किया. फिल्म जब से शुरू होती है और खत्म होने तक उसमें उत्तराखंड का जिक्र तक नहीं होता. जबकि फिल्म की 80% शूटिंग उत्तराखंड में हुई है.
मसूरी को बताया कसौली: हैरानी तो तब होती है जब उत्तराखंड में हुई फिल्म की शूटिंग और सारा का सारा क्रेडिट हिमाचल को चला जाता है. देहरादून को हिमाचल के तौर पर दिखाया जाता है और मसूरी कसौली की खूबसूरत वादियों में तब्दील हो जाती है. ये उत्तराखंड के साथ भेदभाव नहीं तो और क्या है? सबसे खास बात तो ये है कि यह उस अभिनेता की फिल्म में हुआ है जो उत्तराखंड के ब्रांड एंबेसडर हैं. फिल्म की कास्टिंग हो या डायलॉग, कहीं भी फिल्म में उत्तराखंड, मसूरी या देहरादून का जिक्र तक नहीं किया गया है. ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि उत्तराखंड फिल्म परिषद इस पूरे मामले पर क्यों ध्यान नहीं दे पायी. उत्तराखंड में हो रही तमाम फिल्मों की शूटिंग में राज्य सरकार सब्सिडी दे रही है. सुविधाएं दे रही है. बावजूद इसके अगर फिल्म में उत्तराखंड की ही ब्रांडिंग नहीं होगी तो भला ऐसे ब्रांड एंबेसडर का क्या फायदा? हालांकि, फिल्म खत्म होने के बाद फिल्म की कास्टिंग में सीएम और टीम को शुक्रिया जरूर कहा गया है.
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क्या कहते हैं फिल्म बोर्ड से जुड़े अधिकारी: इतना ही नहीं, अक्षय कुमार भी जब से उत्तराखंड के ब्रांड एंबेसडर बने हैं, उस दिन के बाद से यहां आना तो दूर अक्षय ने उत्तराखंड के लिए एक शब्द भी अपने सोशल मीडिया या किसी प्रोग्राम में नहीं बोला है. अब विवाद बढ़ रहा है तो उत्तराखंड के फिल्म बोर्ड से जुड़े अधिकारी भी अपने-अपने तरीके से मामले को घुमा रहे हैं. नोडल अधिकारी केएस चौहान कहते हैं कि फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी होगी, वैसा ही नाम लोकेशन को दिया जाता है. कठपुतली फिल्म एक फिल्म की रीमेक है और उस फिल्म की भी कहानी कसौली से संबंधित थी, इसलिए ऐसा हुआ है. लेकिन इस बात का आगे से ध्यान रखा जाएगा कि जो भी क्रू यहां आता है वो अपनी फिल्म में उत्तराखंड का जिक्र करे ताकि राज्य को उसका लाभ मिल सके.
धोनी ब्रांड एंबेसडर बनने के बाद कभी उत्तराखंड आए ही नहीं: वैसे ये कोई पहला मामला नहीं है कि जब उत्तराखंड के ब्रांड एंबेसडर ने उपाधि मिलने के बाद यहां झांका भी न हो. इससे पहले साल 2010 में तत्कालीन सरकार ने महेंद्र सिंह धोनी को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया था. धोनी से ये उम्मीद थी की वो उत्तराखंड में सेव टाइगर प्रोजेक्ट से जुड़कर काम करेंगे. काम न भी करें तो कम से कम लोगों को जागरूक तो कर ही सकते हैं. लिहाजा उन्हें मिशन टाइगर का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया. लेकिन धोनी इतने बिजी रहे कि वो उत्तराखंड के जंगल तो छोड़िये यहां के शहर में भी नहीं आए. हां, इतना जरूर हुआ कि उनकी शादी जब उत्तराखंड की रहने वाली साक्षी रावत से हुई तो बारात लेकर वो देहरादून आए थे. लेकिन जिस काम की जिम्मेदारी उन्हें सरकार ने सौंपी, जो सम्मान सरकार ने दिया, वो उसको न केवल भूले बल्कि उत्तराखंड सरकार और जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे.
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विराट कोहली और हेमा मालनी भी रहे ब्रांड एंबेसडर: उसके बाद हरीश रावत ने अपनी सरकार के दौरान टीम इंडिया के पूर्व कप्तान विराट कोहली को उत्तराखंड पर्यटन विभाग का ब्रांड एंबेसडर बनाया. हैरानी की बात ये रही कि विराट को सरकार ने ब्रांड एंबेसडर तो बना दिया लेकिन वो एक बार भी यहां नहीं आए. उनका इंतजार यहां के लोग और सरकार करती रही. इतना ही नहीं, हेमा मालिनी भी उत्तराखंड में स्पर्श गंगा अभियान की ब्रांड एंबेसडर रहीं, लेकिन वो भी कहां रहीं कुछ पता नहीं लगा.
बड़े लोगों का बिजी शेड्यूल, नहीं मिलता वक्त: अब धामी ने अक्षय कुमार के बाद रुड़की निवासी ऋषभ पंत को ब्रांड एंबेसडर बनाया है. उन्हें जिम्मेदारी दी गयी है कि वो उत्तराखंड के युवाओं को खेल के लिए प्रेरित करेंगे. फिलहाल वो अपनी टीम के लिए खेल रहे हैं. भारत में क्रिकेट को किस तरह से देखा जाता है ये बात किसी से छुपी नहीं है. ऐसे में सवाल ये खड़ा हो रहा है कि महेंद्र सिंह धोनी और अक्षय कुमार की तरह ही क्या ऋषभ पंत भी सिर्फ कागज में ही ब्रांड एंबेसडर बन कर रहेंगे या फिर उत्तराखंड में आकर युवाओं के लिए कुछ करेंगे. ऋषभ के साथ साथ हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया भी उत्तराखंड में बाल विकास महिला उत्थान की ब्रांड एंबेसडर हैं. ऐसे में ये सवाल खड़ा हो रहा है कि इन महान खिलाड़ियों के अनुभव का उत्तराखंड के युवाओं को भला कैसे लाभ मिलेगा.
क्या कहते हैं जानकार: उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र सेठी कहते हैं कि उत्तराखंड में ब्रांड एंबेसडर जैसा हमेशा से बस दिखावे का है. सरकार अपने उत्तराखंड में आने वाले पर्यटकों को होर्डिंग लगा कर ये बता देती है कि हमारे पास अक्षय या धोनी जैसा ब्रांड एंबेसडर हैं. जबकि ऋषभ पंत हों या कोई भी इन्हें अगर अपनी मिट्टी से प्यार है तो इनको अपने व्यवसाय में से थोड़ा सा समय निकालकर यहां के लिए भी सोचना होगा, लेकिन ऐसा कोई करता नहीं है. सभी को यहां पर ब्रांड एंबेसडर तो बनाया जा रहा है लेकिन उनका लाभ प्रदेश को हो रहा है या नहीं ये कोई नहीं सोच रहा है. इसलिए किसी ऐसे व्यक्ति को ही ब्रांड एंबेसडर बनाएं जो अधिक नहीं तो थोड़ा सा समय तो प्रदेश को दे.
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क्या होते हैं ब्रांड एंबेसडर: जब किसी फेमस व्यक्ति को किसी कंपनी या राज्य के प्रचार की जिम्मेदारी दी जाती है तो उस व्यक्ति को ब्रांड एंबेसडर कहा जाता है. ब्रांड एंबेसडर को इस काम की एक निश्चित फीस दी जाती है. इसके एवज में उसे उस राज्य या कपनी के लिए प्रचार हर स्तर पर करना होता है.