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CORONA: दून मेडिकल कॉलेज और ऋषिकेश एम्स पर बढ़ा दबाव, निजी अस्पतालों की भूमिका तय नहीं - Corona Virus Patients Increased in India

दून मेडिकल कॉलेज और ऋषिकेश एम्स में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन सरकार द्वारा निजी अस्पतालों की भूमिका तय नहीं करने पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

Corona Virus Patients Increased
दून मेडिकल कॉलेज और एम्स पर बढ़ा दबाव.
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Published : Jun 1, 2020, 5:40 PM IST

देहरादून: क्या उत्तराखंड के सबसे ज्यादा सुविधाओं से लैस दून मेडिकल कॉलेज प्रदेश सरकार के मंत्रियों के लिए बेकार साबित हो रहे हैं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सतपाल महाराज को अपने परिवार के साथ दून अस्पताल में एडमिट होने की जगह, 35 किलोमीटर दूर एम्स में भर्ती होना पड़ा. दून मेडिकल कॉलेज पर इतना दबाव है कि खुद अस्पताल के कर्मचारी भी कोरोना पॉजिटिव होने लगे हैं.

दून मेडिकल कॉलेज में 200 बेड कोरोना मरीजों के लिए सुरक्षित रखा गया है. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों पर मरीजों का दबाव बढ़ता ही जा रहा है. मौजूदा समय में अस्पताल में करीब 120 कोरोना पॉजिटिव मरीजों का इलाज किया जा रहा है. जबकि 30 मरीजों को अपनी रिपोर्ट का इंतजार है. वैसे दून मेडिकल कॉलेज की क्षमता इतनी नहीं है कि वह इतने मरीजों को संभाल सके.

दून मेडिकल कॉलेज में एनेस्थीसिया की महिला डॉक्टर पॉजिटिव निकली है. जिसके बाद डॉक्टर के संपर्क में आने वाले लोगों को भी क्वारंटाइन किया गया है. जिस तेजी से दून मेडिकल कॉलेज में मरीजों की संख्या बढ़ रही है, उससे उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही अस्पताल के सारे बेड मरीजों से भर जाएं.

ये भी पढ़ें: ETV BHARAT से बोले स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी, डीएम देहरादून के आदेश के बाद काम पर लौटेंगे अधिकारी

उत्तराखंड के सबसे बड़े अस्पताल में वीवीआईपी सुविधाएं नहीं है. क्योंकि दून मेडिकल कॉलेज में 2 लोगों के लिए ही वीवीआईपी सुविधाएं उपलब्ध हैं. उधर ऋषिकेश एम्स में भी कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में यदि उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर वीवीआईपी मरीज सामने आते हैं तो अस्पतालों को इन मरीजों को हैंडल करने में मुश्किल हो जाएगी.

उत्तराखंड सरकार इस संकट की घड़ी में निजी अस्पतालों की भूमिका तय नहीं कर पा रही है. ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर क्यों सरकार बड़े निजी अस्पतालों का उपयोग नहीं कर रही है. मैक्स, इंद्रेश और जॉलीग्रांट अस्पताल में भी कोरोना मरीजों के इलाज के लिए बेड की व्यवस्थाएं की जा सकती है. लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा सकी.

देहरादून: क्या उत्तराखंड के सबसे ज्यादा सुविधाओं से लैस दून मेडिकल कॉलेज प्रदेश सरकार के मंत्रियों के लिए बेकार साबित हो रहे हैं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सतपाल महाराज को अपने परिवार के साथ दून अस्पताल में एडमिट होने की जगह, 35 किलोमीटर दूर एम्स में भर्ती होना पड़ा. दून मेडिकल कॉलेज पर इतना दबाव है कि खुद अस्पताल के कर्मचारी भी कोरोना पॉजिटिव होने लगे हैं.

दून मेडिकल कॉलेज में 200 बेड कोरोना मरीजों के लिए सुरक्षित रखा गया है. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों पर मरीजों का दबाव बढ़ता ही जा रहा है. मौजूदा समय में अस्पताल में करीब 120 कोरोना पॉजिटिव मरीजों का इलाज किया जा रहा है. जबकि 30 मरीजों को अपनी रिपोर्ट का इंतजार है. वैसे दून मेडिकल कॉलेज की क्षमता इतनी नहीं है कि वह इतने मरीजों को संभाल सके.

दून मेडिकल कॉलेज में एनेस्थीसिया की महिला डॉक्टर पॉजिटिव निकली है. जिसके बाद डॉक्टर के संपर्क में आने वाले लोगों को भी क्वारंटाइन किया गया है. जिस तेजी से दून मेडिकल कॉलेज में मरीजों की संख्या बढ़ रही है, उससे उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही अस्पताल के सारे बेड मरीजों से भर जाएं.

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उत्तराखंड के सबसे बड़े अस्पताल में वीवीआईपी सुविधाएं नहीं है. क्योंकि दून मेडिकल कॉलेज में 2 लोगों के लिए ही वीवीआईपी सुविधाएं उपलब्ध हैं. उधर ऋषिकेश एम्स में भी कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में यदि उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर वीवीआईपी मरीज सामने आते हैं तो अस्पतालों को इन मरीजों को हैंडल करने में मुश्किल हो जाएगी.

उत्तराखंड सरकार इस संकट की घड़ी में निजी अस्पतालों की भूमिका तय नहीं कर पा रही है. ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर क्यों सरकार बड़े निजी अस्पतालों का उपयोग नहीं कर रही है. मैक्स, इंद्रेश और जॉलीग्रांट अस्पताल में भी कोरोना मरीजों के इलाज के लिए बेड की व्यवस्थाएं की जा सकती है. लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा सकी.

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