देहरादून: कोरोना काल में पहले से ही आर्थिक मंदी के संकट से गुजर रहे व्यापारी दिवाली में सामान्य पटाखों की बिक्री वाले सरकारी फरमान से बेहद आक्रोशित हैं. दिवाली से ठीक दो दिन पहले ग्रीन पटाखों को छोड़ अन्य तरह के पटाखों पर लगे बिक्री प्रतिबंध के चलते बाजारों में बीते सालों की तुलना में काफी कम संख्या में लोग पटाखे खरीदते नजर आ रहे हैं.
पटाखों की बिक्री पर रोक
पटाखों के कारोबार से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि बिना सोचे समझे ऐन वक्त पर जिस तरह से पटाखों की बिक्री पर रोक लगी है, वो व्यापारियों की बची-खुची कमर तोड़ने के लिए काफी है. हालत ये है कि सरकारी फरमान और कानूनी कार्रवाई के डर से केवल 30 प्रतिशत से भी कम पटाखे का बाजार नजर आ रहा है.
ग्रीन पटाखा बिक्री की अनुमति
व्यापारियों का कहना है कि सामान्य पटाखों की जगह ग्रीन पटाखों के उत्पादन में काफी बड़ा अंतर है. भले ही सरकार ने ग्रीन पटाखों के बिक्री का आह्वान किया हो, लेकिन ग्रीन पटाखों के उत्पादन की मात्रा वर्तमान समय में 20 से 30 प्रतिशत से भी कम है, ऐसे में पहले से बनते आ रहे पटाखों के बाजार एकाएक खत्म करना बिना सोच विचार किया गया फैसला है.
पटाखा व्यापारियों को नुकसान
देहरादून के धमावाला बाजार में 365 दिन पटाखों की बिक्री करने वाले दुकानदारों का कहना है कि अगर सरकार सामान्य पटाखों को लेकर जारी फरमान को दो महीना पहले बता देती तो लाखों-करोड़ों रुपए से खरीदे गए माल का नुकसान नहीं होता. दिवाली से दो दिन पहले जिस तरह से बिक्री प्रतिबंधित पर आदेश जारी हुआ है वह कोरोना काल में पहले से आर्थिक संकट से जूझ रहे व्यापारियों को सड़क पर लाने जैसा है.
एनजीटी के आदेश से नाराज व्यापारी
ग्रीन पटाखों को लेकर विक्रेता दुकानदारों का कहना है कि जब ग्रीन पटाखों का उत्पादन ही नहीं हो रहा है तो वो उनको कहां से लाकर बाजार में बेचें. सरकार ने बिना सोचे समझे एनजीटी के आदेश को तुगलकी फरमान के रूप में सुना दिया है लेकिन वास्तविकता यह है कि ग्रीन पटाखों की प्रोडक्शन ही नहीं है. ग्रीन पटाखों के बारे में न तो दुकानदार जान रहा है न ही ग्राहक इस बात को जानता है. डिस्ट्रीब्यूटर से तीन पटाखों की डिमांड की गई है लेकिन उनका कहना है कि इसका प्रोडक्शन कुछ एक पटाखों में ही हो रहा है.
पुलिस पर लगा वसूली का आरोप
वहीं, पटाखा बेचने वाले दुकानदारों का यह भी कहना है कि ग्रीन पटाखे वाले जबरन आदेश की आड़ में पुलिस पटाखा विक्रेताओं बिना सिर पैर के नियम कायदे के वसूली कर रही हैं.
बाजारों में ग्रीन पटाखों की कमी
उधर, बाजार में ग्रीन पटाखों को खरीदने आए ग्राहकों भी यही कह रहे हैं कि सरकार के आदेश के बाद ग्रीन पटाखे बाजार में खरीदने जरूर आए हैं, लेकिन कहीं भी ऐसे पटाखे उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में हर साल की तरह सामान्य तरह के पटाखे ही बच्चों को खरीद कर दिए जा रहे हैं. ग्राहकों का यह भी कहना है कि उन्हें खुद ही समझ नहीं आ रहा कि ग्रीन पटाखे क्या होते हैं, जब बाजार में उपलब्ध ही नहीं तो सरकार ने ऐसा आदेश क्यों निकाला.
50 फीसदी कम हुई पटाखा दुकानें
सामान्य पटाखों की बिक्री पर लगी रोक के चलते उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बीते वर्षों की तुलना में इस बार 50 फीसदी से भी कम पटाखों की दुकानें नजर आ रही हैं. जहां एक तरफ व्यापारी गुपचुप तरीके से पहले से खरीदे गए सामान्य पटाखों को भारी डिस्काउंट में किसी तरह बेचने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ ग्राहक कानूनी कार्रवाई के डर से इन पटाखों को खरीदने में संकोच करते नजर आ रहे हैं.
ग्राहक-दुकानदारों का उत्पीड़न न हो
ग्रीन पटाखों को छोड़ सामान्य तरह के पटाखों की बिक्री पर लगे रोक के संबंध में आईजी गढ़वाल का भी मानना है कि जब बाजार में ग्रीन पटाखों की उपलब्धता ही मौजूद नहीं है तो कैसे व्यवस्था बनाई जा सकती है. आईजी गढ़वाल अभिनव कुमार ने कहा कि उन्होंने दुकानदारों और डिस्ट्रीब्यूटर से तीन पटाखों के बारे में जानने का प्रयास किया, लेकिन पता चला कि ग्रीन पटाखों के प्रोडक्शन ही बहुत कम स्तर पर है. ऐसे में सामान्य तरह के पटाखों पर लगी रोक को भले ही पुलिस लागू करवा रही है, लेकिन इस बीच इस बात का भी सभी जिलों के पुलिस को सख्त हिदायत दी गई है कि किसी भी दुकानदार और ग्राहक पर नियम लागू कराते समय उत्पीड़न न हो.
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे ?
ग्रीन क्रैकर्स राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं. इन पटाखों को जलाने से कम प्रदूषण होता है. ये दिखने, जलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं. इनकी खासियत ये है कि जब इसे जलाया जाता है तो जलने के बाद इसमें पानी के कण पैदा होते हैं, जिनसे प्रदूषण कम होता है. पटाखों के जलने के बाद पैदा होने वाले पानी के अणु में सल्फर और नाइट्रोजन के कण घुल जाते हैं. इन पटाखों को बनाने में एल्युमीनियम की मात्रा का इस्तेमाल सामान्य पटाखों की अपेक्षा काफी कम होता है. सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं.
हालांकि, मुश्किल ये है कि ग्रीन पटाखे बाजार में उपलब्ध ही नहीं हैं और व्यापारियों को भी इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.