देहरादूनः उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए मतदान हो चुके हैं. अब 10 मार्च को मत पेटियों से प्रत्याशियों की किस्मत खुलेगी. इन सभी के बीच बड़ा सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड में राजनीतिक दलों ने अपने मुद्दों को किस प्रकार जनता के सामने रखा और किन-किन मुद्दों के साथ जनता को रिझाने की कोशिश की.
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो इस बार के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने राज्य के आम मुद्दों और जनता के हितों से सीधे जुड़ी बातों को दरकिनार किया. चुनाव के शुरुआती समय में जहां फ्री-फ्री का राग सभी राजनीतिक दल अलापते रहे तो वहीं, चुनाव के अंतिम समय में तुष्टिकरण की राजनीति देखने को मिली.
ये भी पढ़ेंः क्या फेल हुई सरकार? पहाड़ों में नहीं टिक रही जवानी, तीन साल में 59 गांव खाली
दरअसल, उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में घोषणाओं का लबादा ओढ़े नेता जनता के पास पहुंचे. चुनाव के शुरुआती दौर में बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर आम आदमी पार्टी सभी ने एक साथ फ्री बिजली, फ्री रोजगार भत्ते का राग अलावा. इसकी शुरुआत उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी ने की तो उसके बाद बीजेपी और कांग्रेस भी इसमें कूद पड़ी.
उसके बाद भी चुनाव में यहां के राजनीतिक दलों ने फिर करवट बदली और एक बार फिर आम मुद्दों को दरकिनार कर मुस्लिम यूनिवर्सिटी समेत सिविल यूनिफॉर्म कोड जैसे मुद्दों को भुनाने की कोशिश की, लेकिन बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी समेत अन्य दल जनता को आम और मूलभूत मुद्दों से भटकाती रही, लेकिन पहाड़ में पलायन और पर्यावरण जैसे संजीदा मुद्दों पर राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेता भी नहीं बोले.
ये भी पढ़ेंः बीजेपी ने पलायन को लेकर किया था जनता से ये वादा, 5 साल बाद कितना पूरा-कितना अधूरा?
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ जय सिंह रावत कहते हैं कि उत्तराखंड और पहाड़ के मुद्दों की बजाय इस बार प्रदेश के चुनाव में हिंदू मुस्लिम की राजनीति देखने को मिली. लोकायुक्त समेत भू-कानून आदि के मुद्दों पर बीजेपी ने तो बिल्कुल भी बात नहीं की तो कांग्रेस भी बीजेपी और आम आदमी पार्टी के उठाए मुद्दों में उलझ कर रास्ता तलाश करती रही.
वहीं, आम आदमी पार्टी फ्री-फ्री के नाम पर वोट मांगती रही. जबकि, उत्तराखंड में पलायन, आपदा, पर्यावरण, गैरसैंण जैसे मुद्दों को राजनीतिक दलों ने गायब ही कर दिया. वहीं अब देखना यह दिलचस्प होगा कि क्या उत्तराखंड की जनता राजनीतिक दलों के इस दोहरेपन को समझ पाई होगी या एक बार फिर इन उसी भंवर में फंस कर रह गई.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप