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दून अस्पताल में बीमारियों के लिए शुरू होगा कोडिंग सिस्टम, डिजिटल होगी केस हिस्ट्री - doon college coding system news

दून मेडिकल कॉलेज में अब कोडिंग सिस्टम प्रणाली लागू होने जा रही है.अस्पताल के मेडिकल रिकॉर्ड सेक्शन में यह कोडिंग सिस्टम शुरू हो चुका है. अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि इस सिस्टम के तहत उस कोड से पूरे भारतवर्ष में डाटा बनता है.

दून मेडिकल कॉलेज में कोडिंग सिस्टम प्रणाली लागू होने जा रही है.
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Published : Oct 17, 2019, 6:13 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी दून मेडिकल कॉलेज में अब कोडिंग सिस्टम प्रणाली लागू होने जा रही है. कोडिंग सिस्टम लागू होने के बाद अस्पताल में आने वाले मरीजों की बीमारियों की बीएमटी कोडिंग करेगी. जिससे कहीं भी और कभी भी मरीज की केस हिस्ट्री पता की जा सकेगी.

दून मेडिकल कॉलेज में कोडिंग सिस्टम प्रणाली लागू होने जा रही है.

दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुप्रिडेंटेंट डॉ. केके टम्टा के मुताबिक, इस सिस्टम के लागू हो जाने के बाद हर तरह की बीमारी का एक बीएचटी (बेड हेड टिकट) कोड निर्धारित किया जाएगा और इसका पूरा डाटा कंप्यूटर द्वारा उपलब्ध हो जाएगा.

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इस सिस्टम में चिकित्सकों को केवल मरीजों की बीएचटी में बीमारी का कोड अंकित करना होगा. डॉ. टम्टा ने बताया कि अस्पताल के मेडिकल रिकॉर्ड सेक्शन में यह कोडिंग सिस्टम शुरू हो चुका है.

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वहीं, अगर प्रशासनिक स्टाफ चिकित्सकों की राइटिंग को समझने में असमर्थ होता है तो ऐसे में सभी वार्डों में बुकलेट उपलब्ध करा दी गई है, जो भी डॉक्टर मरीज को डिस्चार्ज करेगा उसे बीएसटी में मरीज का कोडिंग सिस्टम अंकित करना पड़ेगा.

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अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि इस सिस्टम के तहत उस कोड से पूरे भारतवर्ष में डाटा बनता है. इंटरनेशनल डिसीज के तहत विभिन्न बीमारियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इसी को देखते हुए एक कोड बनाया जा रहा है ताकि कहीं का भी डॉक्टर किसी भी भाषा में बीमारी की पहचान कर सकें और इससे मरीज की हिस्ट्री भी पहचानी जा सकेगी.

देहरादून: उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी दून मेडिकल कॉलेज में अब कोडिंग सिस्टम प्रणाली लागू होने जा रही है. कोडिंग सिस्टम लागू होने के बाद अस्पताल में आने वाले मरीजों की बीमारियों की बीएमटी कोडिंग करेगी. जिससे कहीं भी और कभी भी मरीज की केस हिस्ट्री पता की जा सकेगी.

दून मेडिकल कॉलेज में कोडिंग सिस्टम प्रणाली लागू होने जा रही है.

दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुप्रिडेंटेंट डॉ. केके टम्टा के मुताबिक, इस सिस्टम के लागू हो जाने के बाद हर तरह की बीमारी का एक बीएचटी (बेड हेड टिकट) कोड निर्धारित किया जाएगा और इसका पूरा डाटा कंप्यूटर द्वारा उपलब्ध हो जाएगा.

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इस सिस्टम में चिकित्सकों को केवल मरीजों की बीएचटी में बीमारी का कोड अंकित करना होगा. डॉ. टम्टा ने बताया कि अस्पताल के मेडिकल रिकॉर्ड सेक्शन में यह कोडिंग सिस्टम शुरू हो चुका है.

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वहीं, अगर प्रशासनिक स्टाफ चिकित्सकों की राइटिंग को समझने में असमर्थ होता है तो ऐसे में सभी वार्डों में बुकलेट उपलब्ध करा दी गई है, जो भी डॉक्टर मरीज को डिस्चार्ज करेगा उसे बीएसटी में मरीज का कोडिंग सिस्टम अंकित करना पड़ेगा.

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अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि इस सिस्टम के तहत उस कोड से पूरे भारतवर्ष में डाटा बनता है. इंटरनेशनल डिसीज के तहत विभिन्न बीमारियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इसी को देखते हुए एक कोड बनाया जा रहा है ताकि कहीं का भी डॉक्टर किसी भी भाषा में बीमारी की पहचान कर सकें और इससे मरीज की हिस्ट्री भी पहचानी जा सकेगी.

Intro: उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी दून मेडिकल कॉलेज में अब कोडिंग सिस्टम प्रणाली लागू होने जा रही है।कोडिंग सिस्टम लागू होने के बाद अस्पताल में आने वाले मरीजों के बीएचडी में अब डॉक्टरों की ओर से बीमारियों की कोडिंग की जाएगी।


Body:दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुप्रिडेन्डेन्ट डॉक्टर केके टम्टा के मुताबिक इस सिस्टम के तहत हर प्रकार की बीमारी का एक कोर्ट निर्धारित किया जाएगा और इसका पूरा डाटा कंप्यूटर पर उपलब्ध हो जाएगा। इसमें चिकित्सकों को केवल मरीजों की बीएचटी मैं बीमारी का कोड अंकित करना होगा, उन्होंने कहा कि अस्पताल के मेडिकल रिकॉर्ड सेक्शन में यह कोडिंग सिस्टम शुरू हो चुका है। यदि प्रशासनिक स्टाफ चिकित्सकों की राइटिंग को समझने में असमर्थ होता है तो ऐसे में सभी वार्डों में बुकलेट उपलब्ध करा दी गई है जो भी डॉक्टर मरीज को डिस्चार्ज करेगा उसे बीएसटी में मरीज का कोडिंग सिस्टम अंकित करना पड़ेगा।

बाईट-डॉ के के टम्टा, मेडिकल सुप्रिडेन्डेन्ट, दून मेडिकल कॉलेज


Conclusion: कोडिंग सिस्टम के फायदे बताते हुए अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि इस सिस्टम के तहत उस कोर्ट से पूरे भारतवर्ष में डाटा बनता है। इंटरनेशनल डिसीज के तहत विभिन्न बीमारियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसी को देखते हुए एक कोड बनाया जा रहा है ताकि कहीं का भी डॉक्टर किसी भी भाषा में बीमारी की पहचान कर सकें इससे मरीज की हिस्ट्री भी पहचानी जा सकेगी।
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