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...जब कैबिनेट बैठक में 'कंडाली जैकेट' पहने पहुंचे माननीय

उत्तराखंड में कंडाली और भांग के रेशों से कपड़े बनाये जाते हैं, जिससे पहाड़ी जिलों में स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल पाता है. ऐसे में राज्य कैबिनेट ने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के मकसद से इस पहल को शुरू किया है.

त्रिवेंद्र कैबिनेट
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Published : Nov 14, 2019, 2:39 AM IST

Updated : Nov 14, 2019, 10:13 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के मकसद से यूं तो सरकार और अन्य संस्थाओं की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन इस बार राज्य कैबिनेट ने स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए नया तरीका निकाला है. बुधवार को सचिवालय में हुई कैबिनेट बैठक में सभी मंत्री और खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी कंडाली (बिच्छू घास) से बनी जैकेट पहने हुए दिखाई दिए.

उत्तराखंड कैबिनेट में इस बार मुख्यमंत्री और मंत्री समेत खुद मुख्य सचिव भी इसी ड्रेस कोड में दिखाई दिए. दरअसल, राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने एक ही रंग की जैकेट पहनी हुई थी. पहले तो यह बात किसी के समझ में नहीं आई लेकिन बैठक खत्म होते-होते जानकारी आई कि यह त्रिवेंद्र कैबिनेट का उत्तराखंडी उत्पाद को बढ़ावा देने के मकसद से किया गया एक प्रयास था.

CABINET MEETING
माननीयों ने पहली कंडाली जैकेट.

पढ़ें- उत्तराखंड बना जैविक कृषि अधिनियम बनाने वाला देश का पहला राज्य

बता दें कि उत्तराखंड में कंडाली और भांग के रेशों से कपड़े बनाये जाते हैं, जिससे पहाड़ी जिलों में स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल पाता है. ऐसे में राज्य कैबिनेट ने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के मकसद से इस पहल को शुरू किया है.

इससे पहले भी मुख्यमंत्री स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के प्रयास कर चुके हैं. खास बात यह है कि पहाड़ी जनपदों में इसके प्रमोट होने से कई लोगों को रोजगार मिल सकता है. इससे न केवल जैकेट बल्कि जूते और चप्पल भी बनाए जा सकते हैं.

पढ़ें- पौड़ीः स्थानीय उत्पादों को मिलेगा बाजार, किसानों की आय में होगी वृद्धि

क्या है कंडाली घास?

पहाड़ी जनपदों में कंडाली एक विशेष तरह की घास होती है जिसे बिच्छू घास के रूप में भी देखा जाता है. इसका प्रयोग खाने में भी होता है. उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पायी जाने वाली ये एक ऐसी घास है, जिसे छूने से लोग डरते हैं. इससे बिच्‍छू घास कहते हैं. इसका असर बिच्छु के डंक से कम नहीं होता है. गलती से छू जाए तो उस जगह झनझनाहट शुरू हो जाती है.

हालांकि, यह घास कई गुणों को समेटे हुए हैं. अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है. उत्तराखंड के गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊंनी मे सिंसोण के नाम से जाना जाता है. कंडाली घास का इस्तेमाल दवा के रूप में भी किया जाता है. इस घास को खाने में भी इस्तेमाल किया जाता है, देश-विदेश में इसकी काफी मांग है. इस घास बनी चप्‍पल, कंबल, जैकेट से लोग अपनी आय भी बढ़ा रहे हैं.

देहरादून: उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के मकसद से यूं तो सरकार और अन्य संस्थाओं की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन इस बार राज्य कैबिनेट ने स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए नया तरीका निकाला है. बुधवार को सचिवालय में हुई कैबिनेट बैठक में सभी मंत्री और खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी कंडाली (बिच्छू घास) से बनी जैकेट पहने हुए दिखाई दिए.

उत्तराखंड कैबिनेट में इस बार मुख्यमंत्री और मंत्री समेत खुद मुख्य सचिव भी इसी ड्रेस कोड में दिखाई दिए. दरअसल, राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने एक ही रंग की जैकेट पहनी हुई थी. पहले तो यह बात किसी के समझ में नहीं आई लेकिन बैठक खत्म होते-होते जानकारी आई कि यह त्रिवेंद्र कैबिनेट का उत्तराखंडी उत्पाद को बढ़ावा देने के मकसद से किया गया एक प्रयास था.

CABINET MEETING
माननीयों ने पहली कंडाली जैकेट.

पढ़ें- उत्तराखंड बना जैविक कृषि अधिनियम बनाने वाला देश का पहला राज्य

बता दें कि उत्तराखंड में कंडाली और भांग के रेशों से कपड़े बनाये जाते हैं, जिससे पहाड़ी जिलों में स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल पाता है. ऐसे में राज्य कैबिनेट ने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के मकसद से इस पहल को शुरू किया है.

इससे पहले भी मुख्यमंत्री स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के प्रयास कर चुके हैं. खास बात यह है कि पहाड़ी जनपदों में इसके प्रमोट होने से कई लोगों को रोजगार मिल सकता है. इससे न केवल जैकेट बल्कि जूते और चप्पल भी बनाए जा सकते हैं.

पढ़ें- पौड़ीः स्थानीय उत्पादों को मिलेगा बाजार, किसानों की आय में होगी वृद्धि

क्या है कंडाली घास?

पहाड़ी जनपदों में कंडाली एक विशेष तरह की घास होती है जिसे बिच्छू घास के रूप में भी देखा जाता है. इसका प्रयोग खाने में भी होता है. उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पायी जाने वाली ये एक ऐसी घास है, जिसे छूने से लोग डरते हैं. इससे बिच्‍छू घास कहते हैं. इसका असर बिच्छु के डंक से कम नहीं होता है. गलती से छू जाए तो उस जगह झनझनाहट शुरू हो जाती है.

हालांकि, यह घास कई गुणों को समेटे हुए हैं. अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है. उत्तराखंड के गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊंनी मे सिंसोण के नाम से जाना जाता है. कंडाली घास का इस्तेमाल दवा के रूप में भी किया जाता है. इस घास को खाने में भी इस्तेमाल किया जाता है, देश-विदेश में इसकी काफी मांग है. इस घास बनी चप्‍पल, कंबल, जैकेट से लोग अपनी आय भी बढ़ा रहे हैं.

Intro:summary- स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के मकसद से यूं तो तमाम योजनाएं चलाई जाती है.. लेकिन इस बार राज्य कैबिनेट ने स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए नया तरीका निकाला..और सचिवालय में हुई कैबिनेट बैठक में सभी मंन्त्री और खुद मुख्यमंत्री भी कंडाली से बनी सदरी पहने हुए दिखाई दिए...


Body:उत्तराखंड कैबिनेट में इस बार मुख्यमंत्री और मंत्री समेत खुद मुख्य सचिव भी ड्रेस कोड में दिखाई दिए... दरअसल राज्य मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने एक ही रंग की सदरी हुई थी... पहले तो यह बात किसी के समझ में नहीं आई लेकिन बैठक खत्म होते-होते जानकारी आई कि यह त्रिवेंद्र कैबिनेट का उत्तराखंडी उत्पाद को बढ़ावा देने के मकसद से किया गया प्रयास था.. दरअसल प्रदेश में कंडाली और भांग के रेसों से कपड़े बनाये जाते हैं ... जिससे पहाड़ी जिलों में स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल पाता है.. ऐसे में राज्य कैबिनेट ने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के मकसद से इस पहल को किया... इससे पहले भी मुख्यमंत्री स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के प्रयास कर चुके हैं... खास बात यह है कि पहाड़ी जनपदों में इसके प्रमोट होने से कई लोगों को रोजगार मिल सकता है... इससे न केवल जैकेट बल्कि जूते और चप्पल भी बनाई जा सकते हैं।।। पहाड़ी जनपदों में डाली एक विशेष तरह की घास होती है जिसे बिच्छू घास के रूप में भी देखा जाता है...इसका प्रयोग खाने में भी होता है...



Conclusion:
Last Updated : Nov 14, 2019, 10:13 AM IST
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