ETV Bharat / state

10 मार्च को किसका होगा उद्धार? क्या गढ़वाल से निकलेगा जीत का रास्ता, जानें क्षेत्रीय जातीय समीकरण

उत्तराखंड चुनाव 2022 के परिणामों का सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपनी-अपनी तैयारियों में जुटी है. 2022 के चुनाव परिणाम आने से पहले ईटीवी भारत आपको 2017 के चुनावों से जुड़े कुछ रौचक तथ्य बताने जा रहा है, जिसके आधार पर आप भी कुछ आकलन कर सकते हैं. इस खबर में हम आपको गढ़वाल के जातीय समीकरण और 2017 में बीजेपी कैसे यहां पर अपना वर्चस्व कायम किया था. इसके बारे में बताएंगे.

Uttarakhand election 2022
Uttarakhand election 2022
author img

By

Published : Mar 8, 2022, 4:45 PM IST

Updated : Mar 8, 2022, 4:55 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए 10 मार्च को नतीजे आने हैं. उससे पहले राजनीतिक दलों में कयासबाजी का दौर जारी है. वहीं, उत्तराखंड विधानसभा चुनाव-2022 के दौरान दोनों ही मुख्य राष्ट्रीय दलों का फोकस कुमाऊं मंडल की तरफ ज्यादा दिखाई दिया. बावजूद इसके कि उत्तराखंड के दोनों मंडल गढ़वाल और कुमाऊं में से ज्यादा विधानसभा सीटें गढ़वाल मंडल में हैं.

दरअसल, इसके लिए दोनों ही राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा की अपनी-अपनी वजह रही. कांग्रेस ने हरीश रावत और दूसरे समीकरणों के चलते खुद को कुमाऊं में मजबूत माना और इसको लेकर कुमाऊं में ज्यादा मेहनत की. भाजपा ने गढ़वाल में खुद को मजबूत मानते हुए कुमाऊं पर तैयारियों को लेकर ज्यादा जोर दिया. हालांकि गढ़वाल मंडल में जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के आधार पर भाजपा का बढ़त बनाना और कांग्रेस का चुनाव में वापसी करना बेहद चुनौतीपूर्ण है.

Uttarakhand election 2022
गढ़वाल का जातीय समीकरण.
पढ़ें- Uttarakhand Exit Poll पर बोले हरीश रावत, 'जनता का पोल बड़ा, बनेगी कांग्रेस की सरकार'

बीजेपी-कांग्रेस का गढ़वाल से ज्यादा कुमाऊं पर फोकस: भले ही उत्तराखंड में राजनीतिक लिहाज से गढ़वाल क्षेत्र का दबदबा हो. लेकिन इसके बावजूद भी इस मंडल में बीजेपी और कांग्रेस की चुनावी रणनीति में कुमाऊं पर फोकस रहा.

एक नजर कुमाऊं और गढ़वाल मंडल पर: उत्तराखंड का गढ़वाल मंडल विधानसभा सीटों के लिहाज से दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. 70 विधानसभा सीटों में से अगर गढ़वाल और कुमाऊं मंडल पर नजर दौड़ाएं तो गढ़वाल मंडल में 7 और कुमाऊं मंडल में 6 जिले आते हैं. इन 7 जिलों में पहाड़ से लेकर मैदानों में जातीय समीकरण भी बेहद दिलचस्प हैं. सियासी चश्मे से देखें तो 29 सीटें कुमाऊं मंडल में आती हैं. बाकी की 41 सीटें गढ़वाल मंडल में पड़ती हैं.

इसके अलावा अगर गढ़वाल और कुमाऊं के राजनीतिक मायनों को देखा जाए तो गढ़वाल में चारों धाम आते हैं. पिछले 21 सालों से अस्थायी राजधानी के नाम पर गढ़वाल क्षेत्र के देहरादून में ही सत्ता की बयार बहती रही है. एक तरह से देखा जाए तो राज्य में गढ़वाल क्षेत्र में जहां विधानसभा सीटें ज्यादा हैं वहीं, प्रदेश में विकास की गाड़ी गढ़वाल से होकर ही कुमाऊं की ओर जाती है. ऐसा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

Uttarakhand election 2022
गढ़वाल मंडल.
पढ़ें- गणेश गोदियाल बोले- 43 से 45 सीटें जीत कर बनाएंगे सरकार, हाईकमान तय करेगा मुख्यमंत्री

उत्तराखंड में धार्मिक रूप से जनसंख्या का वर्गीकरण करें तो राज्य में 83% हिंदू, 14% मुस्लिम और 2.4% सिख आबादी है. गढ़वाल मंडल में 41 विधानसभा सीटों में करीब 12 विधानसभा सीटों में मुस्लिम और दलित गठजोड़ चुनाव जीतने के लिए बेहद अहम है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में करीब 15% मुस्लिम वोटर हैं. इसमें 8 विधानसभा सीटें हरिद्वार जिले की हैं. 3 विधानसभा सीटें देहरादून जिले की हैं और एक विधानसभा सीट पौड़ी की है. हालांकि मुस्लिम और दलित आबादी बाकी विधानसभा सीटों में भी है, लेकिन निर्णायक भूमिका में दोनों का गठजोड़ इन 12 सीटों पर महत्वपूर्ण है. अब जानते हैं कौन-कौन सी विधानसभा सीटें इस गठजोड़ के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं.

हरिद्वार जिले की 8 विधानसभा सीटों में दलित और मुस्लिम का गठजोड़ महत्वपूर्ण है. मुस्लिम आबादी के लिहाज से देखें तो हरिद्वार जिले की 8 विधानसभा सीटों में ज्वालापुर में करीब 48 हजार वोटर, भगवानपुर में 55 हजार, पिरान कलियर में 60 हजार, झबरेड़ा में 50 हजार, मंगलौर में 65 हजार, लक्सर में 45 हजार और हरिद्वार ग्रामीण में करीब 55 हजार मुस्लिम वोटर हैं. वहीं, 3 विधानसभा सीटें देहरादून जिले में भी हैं. इनमें सहसपुर धर्मपुर और विकासनगर हैं. देहरादून जिले में करीब 12% मुस्लिम वोटर्स हैं. जिले में करीब 2.5 लाख मुस्लिम वोटर बताए गए हैं. पौड़ी जिले की कोटद्वार विधानसभा सीट में करीब 8% मुस्लिम वोटर हैं.
पढ़ें- Exit Poll पर बोले सीएम धामी, प्रचंड बहुमत से बनेगी बीजेपी की सरकार

उत्तराखंड में दलित वोटर्स: प्रदेश के गढ़वाल मंडल के 7 जिलों में से सभी जिलों में दलितों की अच्छी खासी संख्या है. इसमें हरिद्वार जिले की सभी 11 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर्स का प्रभाव है. प्रदेश में 18% दलित वोटर्स हैं और 3% अनुसूचित जनजाति के वोटर हैं. राज्य में करीब 18 लाख से ज्यादा दलित वोटर हैं. इनमें पहाड़ के 11 जिलों में 10 लाख दलित वोटर्स और मैदान के 3 जिलों में 8 लाख वोटर हैं. इसमें सबसे ज्यादा हरिद्वार जिले में करीब 4,11,000 दलित वोटर हैं.

वैसे आपको बता दें कि, उत्तराखंड में 13 विधानसभा सीटें में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. जबकि 2 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसमें 13 आरक्षित सीटों में 8 विधानसभा सीटें गढ़वाल मंडल में हैं. जबकि 1 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट भी गढ़वाल मंडल में है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 18% दलित वोटर हैं.पढ़ें: यूपी विधानसभा चुनाव: कल CM धामी का वाराणसी दौरा, चुनावी प्रचार अभियान को देंगे धार

उत्तराखंड में सिख वोटर्स की संख्या: उत्तराखंड में सिख वोटर्स की संख्या देखें तो करीब 2.4% सिख वोटर हैं. जिसमें 0.9% वोटर गढ़वाल में हैं. गढ़वाल मंडल की कैंट विधानसभा सीट में सबसे ज्यादा सिख वोटर हैं. यहां सिख वोटर निर्णायक होते हैं. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 83% हिंदू हैं, जिसमें ठाकुर और ब्राह्मण जातियों का वर्चस्व है. यहां करीब 32% ठाकुर हैं तो वहीं 24% ब्राह्मण वोटर भी हैं.

गढ़वाल मंडल में हरिद्वार और कुछ हद तक देहरादून जिला मैदानी है. बाकी 5 जिले पहाड़ के हैं और उन सभी जिलों में ठाकुर और ब्राह्मण का ही हार-जीत को लेकर मुख्य समीकरण है. गढ़वाल मंडल में 391 प्रत्याशी अपने भाग्य को आजमा रहे हैं. इसमें भाजपा ने 65% से ज्यादा ठाकुर और ब्राह्मण जाति के प्रत्याशी दिए हैं. कांग्रेस ने भी करीब इतने ही प्रतिशत ठाकुर और ब्राह्मण जाति के नेताओं को प्रत्याशी बनाया है.

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में ही चारधाम (गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ) है. कांग्रेस ने अपने चुनावी एजेंडे में चारधाम का ही नारा दिया है और उन्होंने चारधाम चार काम के नाम से लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की है. उधर भाजपा हिंदुत्व की लाइन पर चलती है, लिहाजा गढ़वाल मंडल में अपने इसी एजेंडे के तहत भाजपा खुद को मजबूत मानती रही है.

वहीं, साल 2017 के विधानसभा चुनाव को देखें तो गढ़वाल मंडल की 40 सीटों में से 34 सीटों पर भाजपा ने कब्जा किया था. इस तरह केवल 6 सीटों पर ही कांग्रेस गढ़वाल मंडल में जीत हासिल कर पाई थी, जबकि एक सीट धनौल्टी निर्दलीय प्रत्याशी प्रीतम पंवार ने जीती थी. हालांकि इस बार चुनाव से पहले प्रीतम पंवार बीजेपी में शामिल हो गए थे और पार्टी के टिकट पर ही उन्होंने धनौल्टी से चुनाव लड़ा है.

वहीं, गढ़वाल मंडल में सीटों का समीकरण देखें तो कुछ हद तक देहरादून और पूरा हरिद्वार जिला मैदानी है. इन दोनों जिलों में मिलाकर 21 विधानसभा सीटें हैं. बाकी 5 जिलों उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, चमोली और पौड़ी जिले में 20 विधानसभा सीटें हैं.

परिसीमन के बाद घटेगा पहाड़ का नेतृत्व: परिसीमन आयोग के अनुसार हर 20 साल के बाद परिसीमन होता है. जिसके अनुसार अब वर्ष 2026 में एक बार फिर से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी. उम्मीद है कि 2030 या 2031 तक ये लागू होगा. अगर हम भविष्य की संभावनाओं की बात करें तो उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में लगातार पलायन बढ़ रहा है. यहां की जनसंख्या भी लगातार घट रही है, जो मानक परिसीमन आयोग के हैं उस मानक के अनुसार पहाड़ की विधानसभा सीटें एक बार फिर से घट सकती हैं..

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए 10 मार्च को नतीजे आने हैं. उससे पहले राजनीतिक दलों में कयासबाजी का दौर जारी है. वहीं, उत्तराखंड विधानसभा चुनाव-2022 के दौरान दोनों ही मुख्य राष्ट्रीय दलों का फोकस कुमाऊं मंडल की तरफ ज्यादा दिखाई दिया. बावजूद इसके कि उत्तराखंड के दोनों मंडल गढ़वाल और कुमाऊं में से ज्यादा विधानसभा सीटें गढ़वाल मंडल में हैं.

दरअसल, इसके लिए दोनों ही राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा की अपनी-अपनी वजह रही. कांग्रेस ने हरीश रावत और दूसरे समीकरणों के चलते खुद को कुमाऊं में मजबूत माना और इसको लेकर कुमाऊं में ज्यादा मेहनत की. भाजपा ने गढ़वाल में खुद को मजबूत मानते हुए कुमाऊं पर तैयारियों को लेकर ज्यादा जोर दिया. हालांकि गढ़वाल मंडल में जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के आधार पर भाजपा का बढ़त बनाना और कांग्रेस का चुनाव में वापसी करना बेहद चुनौतीपूर्ण है.

Uttarakhand election 2022
गढ़वाल का जातीय समीकरण.
पढ़ें- Uttarakhand Exit Poll पर बोले हरीश रावत, 'जनता का पोल बड़ा, बनेगी कांग्रेस की सरकार'

बीजेपी-कांग्रेस का गढ़वाल से ज्यादा कुमाऊं पर फोकस: भले ही उत्तराखंड में राजनीतिक लिहाज से गढ़वाल क्षेत्र का दबदबा हो. लेकिन इसके बावजूद भी इस मंडल में बीजेपी और कांग्रेस की चुनावी रणनीति में कुमाऊं पर फोकस रहा.

एक नजर कुमाऊं और गढ़वाल मंडल पर: उत्तराखंड का गढ़वाल मंडल विधानसभा सीटों के लिहाज से दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. 70 विधानसभा सीटों में से अगर गढ़वाल और कुमाऊं मंडल पर नजर दौड़ाएं तो गढ़वाल मंडल में 7 और कुमाऊं मंडल में 6 जिले आते हैं. इन 7 जिलों में पहाड़ से लेकर मैदानों में जातीय समीकरण भी बेहद दिलचस्प हैं. सियासी चश्मे से देखें तो 29 सीटें कुमाऊं मंडल में आती हैं. बाकी की 41 सीटें गढ़वाल मंडल में पड़ती हैं.

इसके अलावा अगर गढ़वाल और कुमाऊं के राजनीतिक मायनों को देखा जाए तो गढ़वाल में चारों धाम आते हैं. पिछले 21 सालों से अस्थायी राजधानी के नाम पर गढ़वाल क्षेत्र के देहरादून में ही सत्ता की बयार बहती रही है. एक तरह से देखा जाए तो राज्य में गढ़वाल क्षेत्र में जहां विधानसभा सीटें ज्यादा हैं वहीं, प्रदेश में विकास की गाड़ी गढ़वाल से होकर ही कुमाऊं की ओर जाती है. ऐसा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

Uttarakhand election 2022
गढ़वाल मंडल.
पढ़ें- गणेश गोदियाल बोले- 43 से 45 सीटें जीत कर बनाएंगे सरकार, हाईकमान तय करेगा मुख्यमंत्री

उत्तराखंड में धार्मिक रूप से जनसंख्या का वर्गीकरण करें तो राज्य में 83% हिंदू, 14% मुस्लिम और 2.4% सिख आबादी है. गढ़वाल मंडल में 41 विधानसभा सीटों में करीब 12 विधानसभा सीटों में मुस्लिम और दलित गठजोड़ चुनाव जीतने के लिए बेहद अहम है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में करीब 15% मुस्लिम वोटर हैं. इसमें 8 विधानसभा सीटें हरिद्वार जिले की हैं. 3 विधानसभा सीटें देहरादून जिले की हैं और एक विधानसभा सीट पौड़ी की है. हालांकि मुस्लिम और दलित आबादी बाकी विधानसभा सीटों में भी है, लेकिन निर्णायक भूमिका में दोनों का गठजोड़ इन 12 सीटों पर महत्वपूर्ण है. अब जानते हैं कौन-कौन सी विधानसभा सीटें इस गठजोड़ के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं.

हरिद्वार जिले की 8 विधानसभा सीटों में दलित और मुस्लिम का गठजोड़ महत्वपूर्ण है. मुस्लिम आबादी के लिहाज से देखें तो हरिद्वार जिले की 8 विधानसभा सीटों में ज्वालापुर में करीब 48 हजार वोटर, भगवानपुर में 55 हजार, पिरान कलियर में 60 हजार, झबरेड़ा में 50 हजार, मंगलौर में 65 हजार, लक्सर में 45 हजार और हरिद्वार ग्रामीण में करीब 55 हजार मुस्लिम वोटर हैं. वहीं, 3 विधानसभा सीटें देहरादून जिले में भी हैं. इनमें सहसपुर धर्मपुर और विकासनगर हैं. देहरादून जिले में करीब 12% मुस्लिम वोटर्स हैं. जिले में करीब 2.5 लाख मुस्लिम वोटर बताए गए हैं. पौड़ी जिले की कोटद्वार विधानसभा सीट में करीब 8% मुस्लिम वोटर हैं.
पढ़ें- Exit Poll पर बोले सीएम धामी, प्रचंड बहुमत से बनेगी बीजेपी की सरकार

उत्तराखंड में दलित वोटर्स: प्रदेश के गढ़वाल मंडल के 7 जिलों में से सभी जिलों में दलितों की अच्छी खासी संख्या है. इसमें हरिद्वार जिले की सभी 11 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर्स का प्रभाव है. प्रदेश में 18% दलित वोटर्स हैं और 3% अनुसूचित जनजाति के वोटर हैं. राज्य में करीब 18 लाख से ज्यादा दलित वोटर हैं. इनमें पहाड़ के 11 जिलों में 10 लाख दलित वोटर्स और मैदान के 3 जिलों में 8 लाख वोटर हैं. इसमें सबसे ज्यादा हरिद्वार जिले में करीब 4,11,000 दलित वोटर हैं.

वैसे आपको बता दें कि, उत्तराखंड में 13 विधानसभा सीटें में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. जबकि 2 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसमें 13 आरक्षित सीटों में 8 विधानसभा सीटें गढ़वाल मंडल में हैं. जबकि 1 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट भी गढ़वाल मंडल में है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 18% दलित वोटर हैं.पढ़ें: यूपी विधानसभा चुनाव: कल CM धामी का वाराणसी दौरा, चुनावी प्रचार अभियान को देंगे धार

उत्तराखंड में सिख वोटर्स की संख्या: उत्तराखंड में सिख वोटर्स की संख्या देखें तो करीब 2.4% सिख वोटर हैं. जिसमें 0.9% वोटर गढ़वाल में हैं. गढ़वाल मंडल की कैंट विधानसभा सीट में सबसे ज्यादा सिख वोटर हैं. यहां सिख वोटर निर्णायक होते हैं. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 83% हिंदू हैं, जिसमें ठाकुर और ब्राह्मण जातियों का वर्चस्व है. यहां करीब 32% ठाकुर हैं तो वहीं 24% ब्राह्मण वोटर भी हैं.

गढ़वाल मंडल में हरिद्वार और कुछ हद तक देहरादून जिला मैदानी है. बाकी 5 जिले पहाड़ के हैं और उन सभी जिलों में ठाकुर और ब्राह्मण का ही हार-जीत को लेकर मुख्य समीकरण है. गढ़वाल मंडल में 391 प्रत्याशी अपने भाग्य को आजमा रहे हैं. इसमें भाजपा ने 65% से ज्यादा ठाकुर और ब्राह्मण जाति के प्रत्याशी दिए हैं. कांग्रेस ने भी करीब इतने ही प्रतिशत ठाकुर और ब्राह्मण जाति के नेताओं को प्रत्याशी बनाया है.

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में ही चारधाम (गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ) है. कांग्रेस ने अपने चुनावी एजेंडे में चारधाम का ही नारा दिया है और उन्होंने चारधाम चार काम के नाम से लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की है. उधर भाजपा हिंदुत्व की लाइन पर चलती है, लिहाजा गढ़वाल मंडल में अपने इसी एजेंडे के तहत भाजपा खुद को मजबूत मानती रही है.

वहीं, साल 2017 के विधानसभा चुनाव को देखें तो गढ़वाल मंडल की 40 सीटों में से 34 सीटों पर भाजपा ने कब्जा किया था. इस तरह केवल 6 सीटों पर ही कांग्रेस गढ़वाल मंडल में जीत हासिल कर पाई थी, जबकि एक सीट धनौल्टी निर्दलीय प्रत्याशी प्रीतम पंवार ने जीती थी. हालांकि इस बार चुनाव से पहले प्रीतम पंवार बीजेपी में शामिल हो गए थे और पार्टी के टिकट पर ही उन्होंने धनौल्टी से चुनाव लड़ा है.

वहीं, गढ़वाल मंडल में सीटों का समीकरण देखें तो कुछ हद तक देहरादून और पूरा हरिद्वार जिला मैदानी है. इन दोनों जिलों में मिलाकर 21 विधानसभा सीटें हैं. बाकी 5 जिलों उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, चमोली और पौड़ी जिले में 20 विधानसभा सीटें हैं.

परिसीमन के बाद घटेगा पहाड़ का नेतृत्व: परिसीमन आयोग के अनुसार हर 20 साल के बाद परिसीमन होता है. जिसके अनुसार अब वर्ष 2026 में एक बार फिर से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी. उम्मीद है कि 2030 या 2031 तक ये लागू होगा. अगर हम भविष्य की संभावनाओं की बात करें तो उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में लगातार पलायन बढ़ रहा है. यहां की जनसंख्या भी लगातार घट रही है, जो मानक परिसीमन आयोग के हैं उस मानक के अनुसार पहाड़ की विधानसभा सीटें एक बार फिर से घट सकती हैं..

Last Updated : Mar 8, 2022, 4:55 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.