ETV Bharat / state

मसूरी में धूमधाम से मनाई गई बूढ़ी दीपावली, पारंपरिक परिधानों में जमकर झूमे ग्रामीण

जौनपुर, रवाईं और जौनसार बावर क्षेत्र में मनाए जाने वाली बूढ़ी दीपावली का अगाज हो गया. इस दौरान ग्रामीणों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्योहार मनाया.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Nov 20, 2022, 9:05 PM IST

मसूरी: अगलाड़ यमुना घाटी विकास मंच मसूरी द्वारा बूढ़ी दीपावली मंगसीर बग्वाली का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया. मसूरी में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्योहार मनाया गया. बूढ़ी दीपावली, बग्वाली या पुरानी दीपावली के नाम से मनाए जाने वाला जनजातीय पर्व धूमधाम से शुरू हो गया.

दीपावली से ठीक 30 दिनों के बाद प्रदेश के जौनपुर, रवाईं और जौनसार बावर क्षेत्र में मनाए जाने वाली बूढ़ी दीपावली का अगाज हो गया. शाम को कई गावों में बग्वाल (भांड) का आयोजन किया गया. जिससे देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन के रूप में दर्शाया गया. इसमें बाबई घास से बनी विशाल रस्सी का प्रयोग किया जाता है. इसकी खासियत यह है कि रस्सी बनाने के लिए बाबई घास को इसी दिन काटकर बनाया जाता है.
ये भी पढ़ें: क्या उत्तराखंड में 3 हजार पुलों का हुआ सेफ्टी ऑडिट? 23 नवंबर को खत्म होगी डेडलाइन

मान्यता अनुसार, रस्सी बनाने के बाद इसे स्नान करवाकर विधिवत पूजा अर्चना की जाती है. ग्रामीणों ने बताया कि बग्वाल भांड जौनपुर क्षेत्र का मशहूर त्योहार है. जिसे ग्रामीण और आसपास के क्षेत्र के लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दिन गांव में विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं और एक दूसरे को परोसे जाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि भगवान रामचंद्र जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में करीब एक माह बाद मिली थी.

जिसके बाद ग्रामीणों ने इसी दिन बड़े धूमधाम से दीपावली मनाया. जिसे बूढ़ी दीपावली के नाम से जाना जाने लगा. बूढ़ी दीपावली में ग्रामीण अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नाचते गाते नजर आते हैं. बग्वाल यानी दिपावली भी इसी का हिस्सा है. इस दिन रात में गांव के सभी लोग किसी खेत खलिहान पर जमा होने के साथ ही भैलो जो चीड़ की लकड़ी से बनी होती है, उस मशाल को घुमाते हुए नृत्य करते हैं.

मसूरी: अगलाड़ यमुना घाटी विकास मंच मसूरी द्वारा बूढ़ी दीपावली मंगसीर बग्वाली का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया. मसूरी में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्योहार मनाया गया. बूढ़ी दीपावली, बग्वाली या पुरानी दीपावली के नाम से मनाए जाने वाला जनजातीय पर्व धूमधाम से शुरू हो गया.

दीपावली से ठीक 30 दिनों के बाद प्रदेश के जौनपुर, रवाईं और जौनसार बावर क्षेत्र में मनाए जाने वाली बूढ़ी दीपावली का अगाज हो गया. शाम को कई गावों में बग्वाल (भांड) का आयोजन किया गया. जिससे देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन के रूप में दर्शाया गया. इसमें बाबई घास से बनी विशाल रस्सी का प्रयोग किया जाता है. इसकी खासियत यह है कि रस्सी बनाने के लिए बाबई घास को इसी दिन काटकर बनाया जाता है.
ये भी पढ़ें: क्या उत्तराखंड में 3 हजार पुलों का हुआ सेफ्टी ऑडिट? 23 नवंबर को खत्म होगी डेडलाइन

मान्यता अनुसार, रस्सी बनाने के बाद इसे स्नान करवाकर विधिवत पूजा अर्चना की जाती है. ग्रामीणों ने बताया कि बग्वाल भांड जौनपुर क्षेत्र का मशहूर त्योहार है. जिसे ग्रामीण और आसपास के क्षेत्र के लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दिन गांव में विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं और एक दूसरे को परोसे जाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि भगवान रामचंद्र जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में करीब एक माह बाद मिली थी.

जिसके बाद ग्रामीणों ने इसी दिन बड़े धूमधाम से दीपावली मनाया. जिसे बूढ़ी दीपावली के नाम से जाना जाने लगा. बूढ़ी दीपावली में ग्रामीण अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नाचते गाते नजर आते हैं. बग्वाल यानी दिपावली भी इसी का हिस्सा है. इस दिन रात में गांव के सभी लोग किसी खेत खलिहान पर जमा होने के साथ ही भैलो जो चीड़ की लकड़ी से बनी होती है, उस मशाल को घुमाते हुए नृत्य करते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.