देहरादून: उत्तराखंड भाजपा में तीसरी पंक्ति के नेताओं को कमान देने की शुरुआत हो चुकी है. चुनाव प्रभारी के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कोई चेहरा बनाए जाने के बाद अब यह तय हो गया है कि उत्तराखंड में पुराने और बड़े नेताओं की प्रदेश की राजनीति से विदाई कर दी गई है. ऐसे में इन दिग्गजों और बड़े चेहरों के लिए भाजपा के पास क्या प्लान है, यह एक बड़ा सवाल है.
उत्तराखंड में राज्य स्थापना के दौरान पार्टी के पास दिग्गज चेहरों के रूप में भगत सिंह कोश्यारी और भुवन चंद खंडूरी बड़े नाम थे, हालांकि बीसी खंडूरी को केंद्र में तो भगत सिंह कोश्यारी को राज्य स्थापना के दौरान उत्तराखंड में मौका दिया गया. उत्तराखंड में इन्हीं चेहरों को पहली पंक्ति के नेताओं में शुमार किया गया. समय बढ़ने के साथ पार्टी ने रमेश पोखरियाल निशंक को मौका देकर यह तय कर दिया कि पार्टी अब दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ाना है.
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इस दौरान भुवन चंद खंडूरी और भगत सिंह कोश्यारी को संरक्षक की तरह पार्टी में पूरा सम्मान दिया गया. अब पुष्कर सिंह धामी यानी तीसरी पंक्ति को पार्टी राज्य की राजनीति में अहम रोल दे रही है. लिहाजा भगत सिंह कोश्यारी और भुवन चंद खंडूरी को उम्र के चलते जहां सक्रिय राजनीति से दूर मान लिया गया है. वहीं, सवाल दूसरी पंक्ति के नेताओं को लेकर किए जा रहे हैं.
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दअरसल, हाल ही में चुनाव प्रभारी ने पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की घोषणा की है. पार्टी के इस फैसले के बाद यह तय हो गया है कि दूसरी पंक्ति यानी त्रिवेंद्र सिंह रावत, रमेश पोखरियाल निशंक, तीरथ सिंह रावत और विजय बहुगुणा भी अब पार्टी में राज्य की राजनीति के लिहाज से दूर हो गए हैं. हालांकि, राजनीति में वक्त के हिसाब से फैसले लिए जाते हैं. लेकिन मौजूदा स्थिति को देखकर लगता है कि अब पार्टी दिग्गज नेताओं को उत्तराखंड की राजनीति से दूर ही रखना चाहती है.
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लिहाजा सवाल ये उठता है कि अब विजय बहुगुणा, तीरथ सिंह रावत, रमेश पोखरियाल निशंक और त्रिवेंद्र सिंह रावत को क्या केंद्र की राजनीति पर ही फोकस करने के निर्देश होंगे. वैसे भाजपा के नेता कहते हैं कि पार्टी अपने वरिष्ठ नेताओं का पूरा सम्मान देती है. साथ ही उनका फायदा भी लेती है. लिहाजा जरूरत के हिसाब से इन सभी को जिम्मेदारियां दी जाएंगी.
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वहीं, कांग्रेस की राय इस मामले में अलग है. कांग्रेस का कहना है बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर ही लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा सरीखे नेताओं की मोदी सरकार में उपेक्षा की जाती रही है. 75 साल पूरा करने वाले नेताओं को पार्टी में जिम्मेदारियों से दूर भी रखा जाता है.
लेकिन उत्तराखंड की स्थितियां अलग हैं क्योंकि भाजपा की उम्र को लेकर तय सीमा से कम वाले नेता भी अब राज्य की राजनीति से बाहर होते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसमें विजय बहुगुणा के साथ त्रिवेंद्र, तीरथ और निशंक का नाम शामिल है. इस मामले पर कांग्रेस कहती है कि भाजपा में अनुभव को तरजीह नहीं दी जाती, यहां केवल तकनीक को तरजीह दी जाती है. इससे भाजपा में लोगों से संवाद करने वाले अनुभवियों की कमी दिखाई दे रही है.