देहरादून: कोरोना की दूसरी लहर के जूझ रहे उत्तराखंड में राजनीतिक पार्टियों पर आगामी विधानसभा चुनाव का दबाव भी बढ़ने लगा है. ऐसा हम यूं ही नहीं कह रहे. दरअसल, इनदिनों प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस कुछ ऐसे कामों में लगी हैं. जिसका इस कोरोना काल से तो कोई लेना-देना नहीं है. बल्कि दोनों की पार्टियां बस एक-दूसरे को राजनीतिक बिसात पर शह और मात देने में लगी हुई है.
उत्तराखंड को इस महामारी से बाहर निकालने के लिए जब सबको मिलकर काम करना चाहिए, तब दोनों की पार्टियां 'व्रत-व्रत' खेल रही हैं. जहां बीजेपी ने कांग्रेसियों की बुद्धि-शुद्धि के लिए मौन व्रत रखा तो वहीं कांग्रेस ने भी 'उपवास' रखकर बीजेपी पर पलटवार किया. उत्तराखंड की राजनीति में शायद ये पहला ऐसा मौका है जब सत्ताधारियों को विपक्ष का मुंह बंद करने के लिए मौन का सहारा लेना पड़ा हो.
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दरअसल, प्रदेश में कोरोना के बिगड़ते हालात को लेकर इन दिनों कांग्रेस, बीजेपी सरकार पर हमलवार है. ऐसे में बीजेपी को आगामी विधानसभा में अपनी छवि खराब होने का डर सता रहा है. यही कारण है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कांग्रेस को मात देने के मकसद से मौन व्रत को हथियार बनाया और सोमवार को बीजेपी ने प्रदेशभर में कांग्रेसियों की बुद्धि-शुद्धि के लिए मौन व्रत रखा.
इस मामले में कांग्रेस भी कहां पीछे रहने वाली थी. कांग्रेस ने बीजेपी को मात देने के लिए उसी की चाल का प्रयोग किया. यहां रोचक बात ये है कि दोनों दल के नेता एक-दूसरे खिलाफ एक ही चाल चल रहे हैं. यानी मदन कौशिक के मौन अस्त्र पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने उपवास शस्त्र का प्रयोग किया.
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कोरोना के कारण राजनीतिक पार्टियां खुलकर चुनावी तैयारियां तो नहीं कर पा रही हैं लेकिन उसी कोरोना के नाम पर जमकर सियासत करने से ये नेता बाज नहीं आ रहे हैं. मौन व्रत और उपवास कर ये दोनों की पार्टियां चाहे खुद को कितना भी सत्याग्रही दिखाने की कोशिश करें लेकिन ये वक्त मौन रहने का नहीं काम करने का है. प्रदेश देख रहा है कि किसने सच में काम किया और कौन कोशिश करने का दिखावा कर रहा है. वक्त पलटते देर नहीं लगती और ये वक्त 2022 में आना वाला है.