देहरादून: भूकंप की वजह से जब भी दुनिया के किसी भी कोने में तबाही मचती तो उसमें उन रिपोर्ट का जिक्र जरूर होता है, जिसमें भारत के कई राज्यों के भूकंप के लिहाज से संवेदनशील होना बताया जाता है. हाल ही में तुर्की और सीरिया में आए भूकंप के बाद भारत में विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर फिर से चर्चा होने लगी है कि आखिर भारत में भूकंप के लिहाज के कितना बड़ा खतरा है.
भारत में भूकंप के लिहाज से सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में कुछ हिमालयी राज्य आते हैं, जिसमें से एक उत्तराखंड भी है. विशेषज्ञ कई बार उत्तराखंड में बड़े भूकंप को लेकर चेतावनी जारी कर चुके हैं. इस विषय पर ईटीवी भारत ने वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के निदेशक डॉक्टर काला चांद साईं से बात की.
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वाडिया संस्थान के निदेशक डॉक्टर काला चांद साईं ने बताया कि उत्तराखंड के एक बड़ा हिस्सा भूकंप के लिहाज से जोन-5 में आता है. ऐसे में यदि उत्तराखंड में कोई बड़ा भूकंप आता है, तो उसका असर दिल्ली एनसीआर तक महसूस होगा. काला चांद साईं ने बताया कि तुर्की और सीरिया में भूकंप की तीव्रता 7 मैग्नीट्यूड से ज्यादा थी. इतनी बड़ी तीव्रता वाले भूकंप से कितना बड़ा नुकसान हो सकता है, ये सबसे सामने है. डॉक्टर काला चांद साईं की माने तो सबसे ज्यादा नुकसान हाई राइज बिल्डिंग में देखने को मिल रहा है.
उत्तरकाशी और चमोली में हुई थी तबाही: वहीं, उत्तराखंड को लेकर डॉ काला चांद साईं ने कहा कि उत्तराखंड में साल 1991 में उत्तरकाशी और साल 1999 में चमोली का 7 मैग्नीट्यूड की तीव्रता का भूकंप आया था, जिससे दोनों जिलों में काफी तबाही हुई थी. डॉक्टर काला चांद साईं के मुताबिक अगर उत्तराखंड में कोई बड़ा भूकंप आता है तो उससे करीब 300 किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित होगा. खासतौर पर दिल्ली एनसीआर में इसका बड़ा प्रभाव पड़ सकता है.
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जमीन के अंदर ऊर्जा का भंडार: डॉक्टर काला चांद साईं का कहना है कि लगातार भूकंप आने से एनर्जी रिलीज होती है, लेकिन स्टडी में यह साफ हुआ है कि अभी भी जमीन के अंदर बहुत सारी एनर्जी स्टोर है, जो भूकंप के तौर पर कब बाहर निकलेगी इसके बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है. डॉक्टर काला चांद साईं का कहना है कि भूकंप को तो नहीं रोका जा सकता है, लेकिन उससे होने वाले नुकसान हो कम जरूर किया जा सकता है. इसके लिए जरूरी है कि भवन निर्माण में विशेष ध्यान दिया जाए और उनका निर्माण भूकंपरोधी विधि से किया जाए. जापान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, लेकिन दिल्ली एनसीआर और बड़े शहरों में हाईराइज बिल्डिंग हमेशा खतरे की जद में रहती हैं.
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वहीं भूकंप की चेतावनी और अर्ली वार्निंग सिस्टम को लेकर वाडिया संस्थान के निदेशक का कहना है कि अभी इस पर पूरी तरह से कोई दावा नहीं कर सकता हैं. कुछ स्टडी में अर्ली वार्निंग सिस्टम ने बेहतर काम किया है, लेकिन वहां के विशेषज्ञ भी इस पर दावा नहीं कर सकते हैं. इसलिए हमें भूकंप के दौरान होने वाले नुकसान से बचने के लिए पहले से तैयार होना होगा.
भूकंप के लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड: जानकारी के लिए बता दें कि हिमालयी बेल्ट को दुनिया के सबसे भूकंपीय रूप से सक्रिय अंतर-महाद्वीपीय क्षेत्रों में से एक माना जाता है. इस क्षेत्र ने अपने लगभग 2400 किमी लंबे बेल्ट के साथ कई मध्यम से गंभीर तीव्रता के भूकंप और कुछ बहुत गंभीर भूकंप देखे हैं. जोन पांच में जो सबसे ज्यादा सक्रिय क्षेत्र माने जात हैं, उनमें जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्से, हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी भाग, उत्तराखंड का पूर्वी भाग, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, सभी पूर्वोत्तर राज्य और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह हैं.
बता दें कि इससे पहले भी कई वैज्ञानिक चेतावनी जारी कर चुके है कि भारत को बड़े भूकंप के लिए तैयार रहना चाहिए. क्योंकि हिमालयी क्षेत्र में एक बडे़ भूकंप की प्रबल संभावना है. इसीलिए अभी से जान-मान के नुकसान को कम करने के तरीकों पर पहले से ही काम करने का आग्रह किया गया.
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बड़े भूकंप: पिछले 150 वर्षों में हिमालय क्षेत्र में जो बड़े भूकंप दर्ज किए हैं. उनमें 1897 में शिलॉन्ग में जिसकी 8.1 तीव्रता थी. इसके अलावा 1905 में कांगड़ा में जो 7.8 तीव्रता का था. 1934 में बिहार-नेपाल में आए भूकंप की तीव्रता 8.3 थी. 1950 में अरुणाचल में 8.5 तीव्रता का भूकंप आया था. वहीं साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप की 7.9 तीव्रता थी.
200 साल से नहीं आया कोई बड़ा भूकंप: भूगर्भ वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तराखंड में बड़े भूकंप की आशंका बनी हुई है. क्योंकि यहां पर पिछले 200 साल से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है. इस कारण इस क्षेत्र में जमीन के नीचे काफी ऊर्जा जमा हो रही है, जो कभी भी लावा बनकर फूटेगी. मतलब वो भूकंप उत्तराखंड के लिए विनाशकारी साबित होगा. बता दें कि वैसे भी उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से जोन पांच में आता है.