ETV Bharat / state

ASFI अध्यक्ष ने उत्तराखंड में उच्च शिक्षा की स्थिति पर उठाए गंभीर सवाल - Poor system of higher education of Uttarakhand

एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष डॉ. सुनील अग्रवाल ने राज्य में उच्च शिक्षा की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए हैं. डॉ. अग्रवाल ने इतनी कमियां गिना दीं कि इससे राज्य की उच्च शिक्षा मजाक लगने लगी है.

एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूट
एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूट
author img

By

Published : Aug 5, 2021, 1:47 PM IST

देहरादून: एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूट (Association of Self Finance Institute) के अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने प्रेस वार्ता कर राज्य में उच्च शिक्षा की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 2 अगस्त से स्कूलों और कॉलेजों को खोलने की घोषणा की थी. लेकिन अभी तक कॉलेजों के संबंध में कोई SOP जारी नहीं हुई है. इससे विभाग की कार्यप्रणाली की गंभीरता का पता लगता है.

डॉ. अग्रवाल ने विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के जिम्मेदार अधिकारी छात्रों की समस्याओं के समाधान से बच रहे हैं. विश्वविद्यालय की कुलपति किसी से मिलती नहीं हैं. कुलसचिव जो विश्वविद्यालय के मुख्य कर्ताधर्ता होते हैं अपने आपको अधिकार हीन बताते हैं और स्वयं निर्णय लेने से बचते हैं. ऐसे में छात्रों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है.

उन्होंने कहा कि गढ़वाल विश्वविद्यालय में दो अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त संस्थान हैं. उन संस्थानों में B.Ed छात्रों के प्रवेश के वेरिफिकेशन के लिए विश्वविद्यालय की टीम गठित होती है. विश्वविद्यालय की टीम के अनुमोदन के बाद छात्रों के परीक्षा फॉर्म भरे जाते हैं. वर्तमान सत्र के प्रथम सेमेस्टर के परीक्षा फॉर्म भरने की तिथि पूर्व में समाप्त हो चुकी है. लेकिन विश्वविद्यालय द्वारा इन दोनों कॉलेजों के द्वारा लगातार कई बार वेरिफिकेशन टीम भेजने के अनुरोध के बावजूद टीम अभी तक नहीं भेजी गई.

पढ़ें: सिंगल इंजन हेलीकॉप्टर से हेली सेवा शुरू करने की मिली अनुमति, पर्यटन को लगेंगे पंख

परीक्षा फॉर्म भरने की तिथि निकल चुकी है. कॉलेजों के अनुरोध पर विश्वविद्यालय ने छात्रों के परीक्षा फॉर्म भरने के लिए सिर्फ डेढ़ दिन का समय दिया. कनेक्टिविटी न होने के कारण कुछ छात्र फॉर्म नहीं भर सके. विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षा फॉर्म भरने के लिए ₹3500 लेट फीस लगा दी गई. इसके उपरांत भी अगर विश्वविद्यालय की टीम उनके छात्रों का वेरिफिकेशन जब तक नहीं करेगी तब तक उन छात्रों का रिजल्ट घोषित नहीं होगा. विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली का खामियाजा छात्रों और कॉलेजों को भुगतना होता है और सारे आरोप कॉलेजों के ऊपर लगाए जाते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय की स्थापना हुए 10 वर्ष हो चुके हैं. लेकिन अभी तक विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक स्टाफ का अभाव है. सरकार द्वारा ऐसी स्थिति में भी गढ़वाल विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों को श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में शिफ्ट करने की बात की जाती है. बिना स्टाफ के जो कॉलेज विश्वविद्यालय के साथ एफिलिएटेड हैं, उन्हीं को संभालना विश्वविद्यालय को भारी पड़ता है तो बिना परमानेंट स्टाफ की नियुक्ति के कॉलेजों की शिफ्टिंग की बात बेमानी है.

जब भी कोई कॉलेज नया कोर्स स्टार्ट करता है तो विश्वविद्यालय की टीम द्वारा निरीक्षण करके संस्तुति कर दी जाती है. विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षाएं भी करवा दी जाती हैं, लेकिन मान्यता का पत्र वर्षों तक लटका रहता है. विश्वविद्यालय की टीम द्वारा संस्तुति के बाद वर्षों तक संबद्धता प्रमाण पत्र जारी न होना समझ से परे है.

पढ़ें: ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे चमधार के पास बाधित, गदेरे में गिरी JCB मशीन

वहीं, कॉलेजों के संबद्धता प्रमाण पत्र न होने का सबसे बड़ा खामियाजा छात्रों को छात्रवृत्ति न मिलने के रूप में होता है. समाज कल्याण विभाग द्वारा कॉलेजों के संबद्धता का प्रमाण पत्र मांगे जाते हैं. दोष फिर कॉलेजों पर लगाया जाता है जिन लोगों की वजह से प्रमाण पत्र मिलने में वर्षों लग जाते हैं. उनके ऊपर न कोई आरोप लगता है और न ही कोई कार्रवाई होती है.


नई शिक्षा नीति की घोषणा के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री द्वारा संसद में घोषणा की गई थी कि पूरे देश में 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड B.Ed कोर्स स्टार्ट किया जाएगा. लेकिन उन्हीं के गृह प्रदेश में उक्त कोर्स के लिए एनओसी ही नहीं जारी की गई. उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया जब 2 अगस्त से देश के अधिकांश भागों में स्कूल खुल चुके हैं तो 12वीं के बोर्ड की परीक्षाएं सीमित प्रश्न पत्र और सीमित समय के साथ अगस्त में करवाई जा सकती थी.

देहरादून: एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूट (Association of Self Finance Institute) के अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने प्रेस वार्ता कर राज्य में उच्च शिक्षा की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 2 अगस्त से स्कूलों और कॉलेजों को खोलने की घोषणा की थी. लेकिन अभी तक कॉलेजों के संबंध में कोई SOP जारी नहीं हुई है. इससे विभाग की कार्यप्रणाली की गंभीरता का पता लगता है.

डॉ. अग्रवाल ने विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के जिम्मेदार अधिकारी छात्रों की समस्याओं के समाधान से बच रहे हैं. विश्वविद्यालय की कुलपति किसी से मिलती नहीं हैं. कुलसचिव जो विश्वविद्यालय के मुख्य कर्ताधर्ता होते हैं अपने आपको अधिकार हीन बताते हैं और स्वयं निर्णय लेने से बचते हैं. ऐसे में छात्रों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है.

उन्होंने कहा कि गढ़वाल विश्वविद्यालय में दो अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त संस्थान हैं. उन संस्थानों में B.Ed छात्रों के प्रवेश के वेरिफिकेशन के लिए विश्वविद्यालय की टीम गठित होती है. विश्वविद्यालय की टीम के अनुमोदन के बाद छात्रों के परीक्षा फॉर्म भरे जाते हैं. वर्तमान सत्र के प्रथम सेमेस्टर के परीक्षा फॉर्म भरने की तिथि पूर्व में समाप्त हो चुकी है. लेकिन विश्वविद्यालय द्वारा इन दोनों कॉलेजों के द्वारा लगातार कई बार वेरिफिकेशन टीम भेजने के अनुरोध के बावजूद टीम अभी तक नहीं भेजी गई.

पढ़ें: सिंगल इंजन हेलीकॉप्टर से हेली सेवा शुरू करने की मिली अनुमति, पर्यटन को लगेंगे पंख

परीक्षा फॉर्म भरने की तिथि निकल चुकी है. कॉलेजों के अनुरोध पर विश्वविद्यालय ने छात्रों के परीक्षा फॉर्म भरने के लिए सिर्फ डेढ़ दिन का समय दिया. कनेक्टिविटी न होने के कारण कुछ छात्र फॉर्म नहीं भर सके. विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षा फॉर्म भरने के लिए ₹3500 लेट फीस लगा दी गई. इसके उपरांत भी अगर विश्वविद्यालय की टीम उनके छात्रों का वेरिफिकेशन जब तक नहीं करेगी तब तक उन छात्रों का रिजल्ट घोषित नहीं होगा. विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली का खामियाजा छात्रों और कॉलेजों को भुगतना होता है और सारे आरोप कॉलेजों के ऊपर लगाए जाते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय की स्थापना हुए 10 वर्ष हो चुके हैं. लेकिन अभी तक विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक स्टाफ का अभाव है. सरकार द्वारा ऐसी स्थिति में भी गढ़वाल विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों को श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में शिफ्ट करने की बात की जाती है. बिना स्टाफ के जो कॉलेज विश्वविद्यालय के साथ एफिलिएटेड हैं, उन्हीं को संभालना विश्वविद्यालय को भारी पड़ता है तो बिना परमानेंट स्टाफ की नियुक्ति के कॉलेजों की शिफ्टिंग की बात बेमानी है.

जब भी कोई कॉलेज नया कोर्स स्टार्ट करता है तो विश्वविद्यालय की टीम द्वारा निरीक्षण करके संस्तुति कर दी जाती है. विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षाएं भी करवा दी जाती हैं, लेकिन मान्यता का पत्र वर्षों तक लटका रहता है. विश्वविद्यालय की टीम द्वारा संस्तुति के बाद वर्षों तक संबद्धता प्रमाण पत्र जारी न होना समझ से परे है.

पढ़ें: ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे चमधार के पास बाधित, गदेरे में गिरी JCB मशीन

वहीं, कॉलेजों के संबद्धता प्रमाण पत्र न होने का सबसे बड़ा खामियाजा छात्रों को छात्रवृत्ति न मिलने के रूप में होता है. समाज कल्याण विभाग द्वारा कॉलेजों के संबद्धता का प्रमाण पत्र मांगे जाते हैं. दोष फिर कॉलेजों पर लगाया जाता है जिन लोगों की वजह से प्रमाण पत्र मिलने में वर्षों लग जाते हैं. उनके ऊपर न कोई आरोप लगता है और न ही कोई कार्रवाई होती है.


नई शिक्षा नीति की घोषणा के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री द्वारा संसद में घोषणा की गई थी कि पूरे देश में 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड B.Ed कोर्स स्टार्ट किया जाएगा. लेकिन उन्हीं के गृह प्रदेश में उक्त कोर्स के लिए एनओसी ही नहीं जारी की गई. उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया जब 2 अगस्त से देश के अधिकांश भागों में स्कूल खुल चुके हैं तो 12वीं के बोर्ड की परीक्षाएं सीमित प्रश्न पत्र और सीमित समय के साथ अगस्त में करवाई जा सकती थी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.