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सरकार की 'बेरुखी' का शिकार आशा वर्कर, बिना 'सुरक्षा' के काम करने पर मजबूर

आशा वर्करों पर इन दिनों प्रदेश के बाहर से आने वाले लोगों को क्वारंटाइन कराने की जिम्मेदारी है. लेकिन उनके पास कोरोना से सुरक्षा के नाम पर पर्याप्त संसाधन तक उपलब्ध नहीं है.

Dehradun asha Worker
सरकार की 'बेरुखी' का शिकार आशा वर्कर.
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Published : Jun 5, 2020, 7:31 PM IST

Updated : Jun 5, 2020, 7:46 PM IST

देहरादून: स्वास्थ्य योजनाओं से लेकर तमाम सर्वे तक में आशा वर्कर्स की भूमिका खासी अहम है. कोरोनाकाल में आशा दीदीयों का सराहनीय काम वायरस की रोकथाम में बेहद प्रभावी रहा है. लेकिन मौजूदा व्यवस्था दिखाती है कि सिर्फ 2 हजार रुपए के लिए जान दांव पर लगाने वाली आशाएं सरकार की भारी उपेक्षाओं का शिकार हो रही हैं. देखिये स्पेशल रिपोर्ट...

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस जंग में दिन-रात अपना योगदान दे रहे हैं. आशा वर्कर भी इस अमले का हिस्सा हैं, जिनका काम गांवों, शहरों, कस्बों में घर-घर जाकर कोरोना से संक्रमित लोगों की पहचान करना और कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लोगों को जागरूक करना है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि आशा वर्कर हॉटस्पॉट क्षेत्रों तक में ड्यूटी दे चुकी हैं, लेकिन अबतक उनका कोई कोरोना टेस्ट नहीं किया गया है.

मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहीं आशा वर्कर

देश में 9 लाख आशा वर्कर हैं तो वहीं उत्तराखंड में इनकी संख्या 11 हजार 081 है. इनके काम करने का कोई समय भी तय नहीं हैं. काम के एवज में आशा वर्करों को सिर्फ ₹2000 का मानदेय तय किया गया है. पोलियो, फैमली प्लानिंग और तमाम राष्ट्रीय योजनाओं के लिए सर्वे का काम करने वाली आशा वर्कर फिलहाल कोरोना का सर्वे भी कर रही हैं. एक करीब 1 दिन में 40 परिवारों का डाटा इकट्ठा करती है, जबकि एक आशा के पास करीब 1400 परिवारों की जिम्मेदारी है. आशा वर्करों से साथ हाल ही में कई जगहों पर बदसलूकी की बातें भी सामने आईं हैं.

सरकार की 'बेरुखी' का शिकार आशा वर्कर.

पढ़ें- 'चिपको आंदोलन' के प्रणेता पद्मश्री चंडी प्रसाद भट्ट ने किया पौधरोपण, पर्यावरण दिवस पर कही ये बड़ी बात

बिना सुरक्षा किट के काम कर रहीं आशा वर्कर

आशा सर्वे का काम कई बार बिना ग्लब्स और सुरक्षा किट के ही कर रही हैं और इस खतरे में भी स्वास्थ्य महकमा आशा वर्करों का एक बार भी सैंपल लेना उचित नहीं समझ रहा है. आशा वर्करों का कहना है कि विभाग ने पहले कोरोना के लक्षण वाले मरीजों की जानकारी के काम में लगाया. उसके बाद प्रदेश के बाहर से आने वाले लोगों को क्वारंटाइन करने की भी जिम्मेदारी दी. लेकिन सुरक्षा के नाम पर विभाग ने एक बार मास्क और सैनेटाइजर देकर अपना पल्ला झाड़ लिया.

खोखले साबित हो रहे अधिकारियों के सभी दावे

उधर, स्वास्थ्य महानिदेशक अमिता उप्रेती कहती हैं कि आशा वर्करों की सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गये हैं. उनका मास्क, ग्लब्स और फेस शील्ड भी दी गई है. उनका कहना है कि आशा वर्करों के पास संसाधनों की कोई भी कमी नहीं हैं.

स्वास्थ्य महकमा संसाधनों की कमी नहीं होने की बात कह रहा है. इसके तहत सभी उपकरणों की मौजूदगी भी बता रहा है, लेकिन अधिकारियों को धरातल पर जाकर आशा वर्करों की हालत और उनके काम को भी देखने की जरूरत है, क्योंकि हकीकत में आशा वर्करों के पास सुरक्षा के इंतजाम काम चलाऊ ही हैं.

देहरादून: स्वास्थ्य योजनाओं से लेकर तमाम सर्वे तक में आशा वर्कर्स की भूमिका खासी अहम है. कोरोनाकाल में आशा दीदीयों का सराहनीय काम वायरस की रोकथाम में बेहद प्रभावी रहा है. लेकिन मौजूदा व्यवस्था दिखाती है कि सिर्फ 2 हजार रुपए के लिए जान दांव पर लगाने वाली आशाएं सरकार की भारी उपेक्षाओं का शिकार हो रही हैं. देखिये स्पेशल रिपोर्ट...

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस जंग में दिन-रात अपना योगदान दे रहे हैं. आशा वर्कर भी इस अमले का हिस्सा हैं, जिनका काम गांवों, शहरों, कस्बों में घर-घर जाकर कोरोना से संक्रमित लोगों की पहचान करना और कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लोगों को जागरूक करना है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि आशा वर्कर हॉटस्पॉट क्षेत्रों तक में ड्यूटी दे चुकी हैं, लेकिन अबतक उनका कोई कोरोना टेस्ट नहीं किया गया है.

मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहीं आशा वर्कर

देश में 9 लाख आशा वर्कर हैं तो वहीं उत्तराखंड में इनकी संख्या 11 हजार 081 है. इनके काम करने का कोई समय भी तय नहीं हैं. काम के एवज में आशा वर्करों को सिर्फ ₹2000 का मानदेय तय किया गया है. पोलियो, फैमली प्लानिंग और तमाम राष्ट्रीय योजनाओं के लिए सर्वे का काम करने वाली आशा वर्कर फिलहाल कोरोना का सर्वे भी कर रही हैं. एक करीब 1 दिन में 40 परिवारों का डाटा इकट्ठा करती है, जबकि एक आशा के पास करीब 1400 परिवारों की जिम्मेदारी है. आशा वर्करों से साथ हाल ही में कई जगहों पर बदसलूकी की बातें भी सामने आईं हैं.

सरकार की 'बेरुखी' का शिकार आशा वर्कर.

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बिना सुरक्षा किट के काम कर रहीं आशा वर्कर

आशा सर्वे का काम कई बार बिना ग्लब्स और सुरक्षा किट के ही कर रही हैं और इस खतरे में भी स्वास्थ्य महकमा आशा वर्करों का एक बार भी सैंपल लेना उचित नहीं समझ रहा है. आशा वर्करों का कहना है कि विभाग ने पहले कोरोना के लक्षण वाले मरीजों की जानकारी के काम में लगाया. उसके बाद प्रदेश के बाहर से आने वाले लोगों को क्वारंटाइन करने की भी जिम्मेदारी दी. लेकिन सुरक्षा के नाम पर विभाग ने एक बार मास्क और सैनेटाइजर देकर अपना पल्ला झाड़ लिया.

खोखले साबित हो रहे अधिकारियों के सभी दावे

उधर, स्वास्थ्य महानिदेशक अमिता उप्रेती कहती हैं कि आशा वर्करों की सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गये हैं. उनका मास्क, ग्लब्स और फेस शील्ड भी दी गई है. उनका कहना है कि आशा वर्करों के पास संसाधनों की कोई भी कमी नहीं हैं.

स्वास्थ्य महकमा संसाधनों की कमी नहीं होने की बात कह रहा है. इसके तहत सभी उपकरणों की मौजूदगी भी बता रहा है, लेकिन अधिकारियों को धरातल पर जाकर आशा वर्करों की हालत और उनके काम को भी देखने की जरूरत है, क्योंकि हकीकत में आशा वर्करों के पास सुरक्षा के इंतजाम काम चलाऊ ही हैं.

Last Updated : Jun 5, 2020, 7:46 PM IST
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