देहरादून: उत्तराखंड पुलिस विभाग में तबादले के विरोध में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. एक आईपीएस अधिकारी ने अपने तबादले के खिलाफ नैनीताल हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. वहीं, कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए पुलिस मुख्यालय को तीन सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब देने का समय दिया है. उधर, इस मामले में याचिकाकर्ता आईपीएस अधिकारी को भी सुनवाई के लिए तीन सप्ताह बाद कोर्ट से तारीख मिली है. उधर, आईपीएस अधिकारी के इस कदम के बाद पुलिस मुख्यालय से लेकर शासन तक हड़कंप मचा हुआ है.
याचिका में आईपीएस ने दी ये दलील
अपने ट्रांसफर के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले आईपीएस अधिकारी बरजिंदर जीत सिंह ने कोर्ट में कहा है कि उन्हें पिछले दिनों उधम सिंह नगर जिला एसएसपी से बेवजह हटाया गया. जबकि, कोरोना काल में वह जिले में बेहतर कार्य योजना के तहत काम कर रहे थे. इसके बावजूद बिना किसी कारण कि उन्हें जिले से हटाकर आईआरबी प्रथम नैनीताल सेनानायक में ट्रांसफर कर दिया गया.
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ट्रांसफर से पहले तत्कालीन डीआईजी की नहीं सुन रहे थे आईपीएस अधिकारी
जानकारी के मुताबिक, बीते 9 जुलाई 2020 को उधम सिंह नगर जिले से हटाए गए आईपीएस बरजिंदर जीत सिंह तत्कालीन कुमाऊं डीआईजी जगतराम जोशी को किसी तरह की रिपोर्ट नहीं कर रहे थे. ऐसे में उनकी इस अनुशासनहीनता को लेकर भी शासन सहित पुलिस मुख्यालय में लगातार चर्चा हो रही थी.
ट्रांसफर के खिलाफ आईपीएस ने खोला मोर्चा
वहीं, 9 जुलाई 2020 को शासन द्वारा उधमसिंह नगर जिले के एसएसपी बरजिंदर जीत सिंह का ट्रांसफर सेनानायक आईआरबी प्रथम बैलपड़ाव नैनीताल के रूप कर दिया गया था. ऐसे में आईपीएस बरजिंदर जीत सिंह द्वारा अपने ही ट्रांसफर के खिलाफ राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलना गंभीर श्रेणी रूप में देखा जा रहा है. अब देखना होगा कि सरकार के ट्रांसफर नीति के खिलाफ कोर्ट जाने वाले आईपीएस अधिकारी के खिलाफ किस तरह के आगे कार्रवाई होती है.
इससे पहले भी तत्कालीन देहरादून एसपी सिटी ट्रांसफर मामले जा चुके हैं कोर्ट
जानकारी के मुताबिक, किसी आईपीएस द्वारा अपने ट्रांसफर के खिलाफ कोर्ट में जाने का यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी साल 2010 के आसपास तत्कालीन देहरादून एसपी सिटी जगतराम जोशी भी अपने ट्रांसफर के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
बहरहाल, अपने तबादले के खिलाफ नैनीताल हाई कोर्ट जाने वाले आईपीएस अधिकारी के विषय में पुलिस मुख्यालय को कोर्ट आदेश अनुसार तीन सप्ताह से पहले इस मामले की रिपोर्ट सौंपनी हैं. लेकिन सवाल ये कि आईपीएस अधिकारियों के ट्रांसफर का मामला सीधे तौर से उत्तराखंड शासन से जुड़ा है. ऐसे में इस मामले पर भी शासन को ही आगे कोर्ट में जवाब देना होगा.