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LOCKDOWN: हर रोज दंपति करते हैं मदद का इंतजार, आपको रुला देगी इस परिवार की कहानी - uttarakhand corona virus udate

दिनेश थपलियाल बीते 5 सालों से डायलिसिस पर हैं. वहीं, लॉकडाउन में डायलिसिस कराने के जॉलीग्रांट जाने में उन्हें खासी मशक्कत करनी पड़ती है. थपलियाल का कहना है कि सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

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बेसहारा परिवार की कहानी
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Published : Apr 10, 2020, 5:47 PM IST

Updated : Apr 10, 2020, 8:14 PM IST

देहरादून: देश में लॉकडाउन के बाद जगह-जगह से कई तस्वीरें सामने आ रही हैं. हम लगातार सरकार प्रशासन को इस बात से अवगत करा रहे हैं कि कहां-कहां पर लोग मुसीबत झेल रहे हैं. आज फिर ईटीवी भारत आपको देहरादून के ऐसे ही पति पत्नी की कहानी बताने जा रहा है, जो इस लॉकडाउन के चलते बड़ी मुसीबत झेलने को मजबूर हैं.

पीड़ित 40 वर्षीय दिनेश थपलियाल की पत्नि कंचन थपलियाल कहती है कि उनके पति साल 2016 में शुगर की चपेट में आए गए. अपने बिजी शेड्यूल की वजह से उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया रखा. ऐसे में अचानक उनके पति का शुगर लेवल बढ़ता ही गया और उनकी किडनी फेल हो गई. अब उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब है. हालांकि, कंचन थपलियाल बताती है कि उनकी ननद और कुछ रिश्तेदार उन्हें मदद करते हैं. इतना ही नहीं कुछ समय से एक बैंक से रिटायर मैनेजर जिन्हें वह जानती नहीं है, वह भी उनकी समय-समय पर हेल्प करते थे. पति की बीमारी के कारण अब तो उनके लिए मकान किराया देना भी मुश्किल होता जा रहा है.

वहीं, ये दंपति देहरादून के सबसे व्यस्त रहने वाले घंटाघर पर हर दूसरे दिन आकर सरकारी राहत का इंतजार करता है. देहरादून में पूर्व मुख्यमंत्री बी सी खंडूड़ी के घर के नजदीक और मसूरी विधायक गणेश जोशी की गली में रहने वाला परिवार हर दो दिन बाद घंटाघर पर आकर इस उम्मीद से बैठता है कि सरकार से उन्हें कोई मदद मिलेगीे. 48 वर्षीय परिवार के मुखिया दिनेश थपलियाल बीते पांच सालों से डायलिसिस पर जीवित हैं.

बेसहारा परिवार की कहानी

लिहाजा, देहरादून से जॉलीग्रांट हर दूसरे दिन उन्हें अपनी डायलिसिस के लिए जाना पड़ता है, लेकिन लॉकडाउन के बाद से डायलिसिस के लिए जाना ही उनके लिए किसी मुसीबत से कम नही है. वह घंटाघर तक लगभग 2 किलोमीटर पैदल चलकर तो पहुंच जाते हैं, लेकिन जॉलीग्रांट जाने के लिए उन्हें कोई भी सुविधा नहीं मिल रही है. लिहाजा, वो तब तक घंटाघर पर ही बैठे रहते हैं, जब तक कोई आकर उनकी तरफ मदद का हाथ ना बढ़ाए.

ये भी पढ़े: ऋषिकेश: वन क्षेत्राधिकारी मदद के लिए आए आगे, सीएम राहत कोष में 51 हजार रुपए दिए दान

हालांकि, इस परिवार की मुसीबत देखकर एक व्यक्ति गढ़ी कैंट से देहरादून आता है और उन्हें जॉलीग्रांट ले जाता और लाता है. पीड़ित परिवार सुबह 11 बजे घंटाघर पर आकर बैठता है और डायलिसिस के लिए ले जाने वाले व्यक्ति का इंतजार करता है. पीड़ित परिवार का कहना है कि लॉकडाउन के बाद उन्हें इस मुसीबत से हर दूसरे दिन सामना करना पडता है.

वहीं, सरकार भले ही लाख दावा कर रही हो कि लॉकडाउन से किसी भी तरह की किसी को कोई दिक्कत नहीं आएगी, लेकिन इस तरह की कहानियां देहरादून की सड़कों पर रोज देखी जा सकती हैं. जहां पर मेडिकल सुविधाओं के लिए लोग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि हमारी इस खबर के बाद इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए सरकार जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएगी.

डायलिसिस क्या है और क्यों जरूरी है

जब किडनी की कार्यक्षमता कमजोर हो जाती है, शरीर से विषैले पदार्थ पूरी तरह नहीं निकल पाते. रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है. इस डायलिसिस की प्रक्रिया को तब अपनाया जाता है जब किसी व्यक्ति के वृक्क यानि गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं. गुर्दे से जुड़े रोगों, लंबे समय से मधुमेह के रोगी, उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियों में कई बार डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है.

देहरादून: देश में लॉकडाउन के बाद जगह-जगह से कई तस्वीरें सामने आ रही हैं. हम लगातार सरकार प्रशासन को इस बात से अवगत करा रहे हैं कि कहां-कहां पर लोग मुसीबत झेल रहे हैं. आज फिर ईटीवी भारत आपको देहरादून के ऐसे ही पति पत्नी की कहानी बताने जा रहा है, जो इस लॉकडाउन के चलते बड़ी मुसीबत झेलने को मजबूर हैं.

पीड़ित 40 वर्षीय दिनेश थपलियाल की पत्नि कंचन थपलियाल कहती है कि उनके पति साल 2016 में शुगर की चपेट में आए गए. अपने बिजी शेड्यूल की वजह से उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया रखा. ऐसे में अचानक उनके पति का शुगर लेवल बढ़ता ही गया और उनकी किडनी फेल हो गई. अब उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब है. हालांकि, कंचन थपलियाल बताती है कि उनकी ननद और कुछ रिश्तेदार उन्हें मदद करते हैं. इतना ही नहीं कुछ समय से एक बैंक से रिटायर मैनेजर जिन्हें वह जानती नहीं है, वह भी उनकी समय-समय पर हेल्प करते थे. पति की बीमारी के कारण अब तो उनके लिए मकान किराया देना भी मुश्किल होता जा रहा है.

वहीं, ये दंपति देहरादून के सबसे व्यस्त रहने वाले घंटाघर पर हर दूसरे दिन आकर सरकारी राहत का इंतजार करता है. देहरादून में पूर्व मुख्यमंत्री बी सी खंडूड़ी के घर के नजदीक और मसूरी विधायक गणेश जोशी की गली में रहने वाला परिवार हर दो दिन बाद घंटाघर पर आकर इस उम्मीद से बैठता है कि सरकार से उन्हें कोई मदद मिलेगीे. 48 वर्षीय परिवार के मुखिया दिनेश थपलियाल बीते पांच सालों से डायलिसिस पर जीवित हैं.

बेसहारा परिवार की कहानी

लिहाजा, देहरादून से जॉलीग्रांट हर दूसरे दिन उन्हें अपनी डायलिसिस के लिए जाना पड़ता है, लेकिन लॉकडाउन के बाद से डायलिसिस के लिए जाना ही उनके लिए किसी मुसीबत से कम नही है. वह घंटाघर तक लगभग 2 किलोमीटर पैदल चलकर तो पहुंच जाते हैं, लेकिन जॉलीग्रांट जाने के लिए उन्हें कोई भी सुविधा नहीं मिल रही है. लिहाजा, वो तब तक घंटाघर पर ही बैठे रहते हैं, जब तक कोई आकर उनकी तरफ मदद का हाथ ना बढ़ाए.

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हालांकि, इस परिवार की मुसीबत देखकर एक व्यक्ति गढ़ी कैंट से देहरादून आता है और उन्हें जॉलीग्रांट ले जाता और लाता है. पीड़ित परिवार सुबह 11 बजे घंटाघर पर आकर बैठता है और डायलिसिस के लिए ले जाने वाले व्यक्ति का इंतजार करता है. पीड़ित परिवार का कहना है कि लॉकडाउन के बाद उन्हें इस मुसीबत से हर दूसरे दिन सामना करना पडता है.

वहीं, सरकार भले ही लाख दावा कर रही हो कि लॉकडाउन से किसी भी तरह की किसी को कोई दिक्कत नहीं आएगी, लेकिन इस तरह की कहानियां देहरादून की सड़कों पर रोज देखी जा सकती हैं. जहां पर मेडिकल सुविधाओं के लिए लोग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि हमारी इस खबर के बाद इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए सरकार जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएगी.

डायलिसिस क्या है और क्यों जरूरी है

जब किडनी की कार्यक्षमता कमजोर हो जाती है, शरीर से विषैले पदार्थ पूरी तरह नहीं निकल पाते. रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है. इस डायलिसिस की प्रक्रिया को तब अपनाया जाता है जब किसी व्यक्ति के वृक्क यानि गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं. गुर्दे से जुड़े रोगों, लंबे समय से मधुमेह के रोगी, उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियों में कई बार डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है.

Last Updated : Apr 10, 2020, 8:14 PM IST
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