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आग के संकट से कब बाहर निकलेंगे उत्तराखंड के जंगल?

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Published : Mar 24, 2021, 7:26 PM IST

Updated : Mar 24, 2021, 7:47 PM IST

उत्तराखंड में जंगलों के धधकने का सिलसिला फिर शुरू हो गया है. उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को लेकर भले ही राज्य सरकार गंभीर न दिखाई दें. लेकिन, हकीकत यह है कि बीते चार महीने में आग की वजह से 917 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो चुके हैं.

Forest Fire in Uttarakhand
आग से तबाह होते उत्तराखंड के जंगल.

देहरादून: गर्मियों में दावानल से उत्तराखंड के पहाड़ों के खूबसूरत नजारे आग के धुंए की परत से धुंधला गए हैं. उत्तराखंड के जंगलों में गर्मियों के मौसम में लगभग हर साल आग लगती है, जिसकी चपेट में पेड़-पौधों से लेकर छोटे-बड़े जानवर भी आ जाते हैं. उत्तराखंड में जंगलों में आग तेजी से फैली हुई है. चिंता की बात यह है कि पिछले सीजन के मुकाबले इस बार साढ़े 4 गुना तेजी से जंगल जले हैं. प्रदेश के जंगलों में लगी यह आग राज्य सरकार और वन विभाग की मुसीबत बढ़ाती दिखाई दे रही है.

आग से तबाह होते उत्तराखंड के जंगल.

उत्तराखंड की वन संपदा और जंगल कितने तेजी से जल रहे हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नवंबर से अब तक साढ़े चार गुना तेजी से जल रहे हैं. जबकि जंगलों में आग के लिए पीक समय अभी आना बाकी है.

इन घटनाओं से साफ है कि प्रदेश में जंगलों की आग को लेकर इस बार हालात बेकाबू हो सकते हैं. 15 फरवरी से शुरू हुए फायर सीजन का पीक समय 15 जून तक माना जाता है, ऐसे में अभी अगले 3 महीनों तक जंगल आग की लपटों से कितना प्रभावित होंगे. यह एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है.

जंगल में आग लगने की वजह

जानकारों के मुताबिक 2 से 3 साल में मौसम में बदलाव और कम बारिश आग लगने की प्रमुख वजहों में एक है. बताया गया है कि इस बार करीब 65% वर्षा कम हुई है. जिससे जंगल शुष्क स्थिति में हैं. पिछले साल कोविड-19 के दौरान पिछले 20 सालों में सबसे कम जंगल जलने का रिकॉर्ड रहा था. ऐसे में जंगलों में सूखी पत्तियां, पेड़ और लकड़ियों की वजह से आग तेजी लगी. लॉकडाउन के बाद अचानक जंगलों में लोगों की आवाजाही का बढ़ना भी आग लगने की बड़ी वजहों में एक है.

Forest Fire in Uttarakhand
उत्तराखंड में जंगल में आग के आंकड़े.

लॉकडाउन से आग की घटनाओं में कमी

उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक मान सिंह ने कहा कि पिछले साल गर्मियों में जंगलों में आग की घटनाएं कम हुई हैं, क्योंकि लॉकडाउन लागू होने के दौरान लोग जंगलों में कम ही जा पाए, जिससे जंगल लोगों की लापरवाही का शिकार कम हुए, लेकिन पिछले साल बारिश में भी कमी देखी गई, जिससे जंगलों में सूखी लकड़ियां, मुख्य रूप से देवदार की सूखी टहनियां बड़ी मात्रा में जमा हुईं, जिससे सर्दियों के दौरान आग की घटनाएं बढ़ जाती हैं.

जानिए क्या कहते हैं आंकड़े

  • वर्ष 2015 में जंगल में आग लगने की वजह से न किसी व्यक्ति की मौत हुई और न ही कोई जख्मी हुआ.
  • साल 2016 में जंगल में लगी आग की वजह से प्रदेश में 6 लोगों की मौत हुई थी और 31 लोग घायल हुए थे.
  • साल 2017 में जंगल में लगी आग की वजह से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. लेकिन प्रदेश में आग की चपेट में आने से मात्र एक शख्स जख्मी हुआ था.
  • साल 2018 में भी जंगल में लगी आग की वजह से किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. इन मामलों में 6 लोग आग की चपेट में आने से झुलस गए.
  • साल 2019 में जंगल में लगी आग से एक व्यक्ति की मौत हुई और 15 लोग घायल हुए.
  • साल 2020 में जंगल में लगी आग की वजह से प्रदेश में दो व्यक्तियों की मौत और एक जख्मी हुआ.
  • साल 2021 में अभी तक जंगल में लगी आग की वजह से 4 लोगों की मौत और 2 लोग जख्मी हुए हैं.

ये भी पढ़ें: बारिश न होने से जंगलों में बढ़ी आग की घटनाएं, वन विभाग रख रहा नजर

मंडलवार नुकसान के आंकड़े

  • गढ़वाल मंडल में बीते चार महीनों में आग लगने की 430 घटनाएं हो चुकी हैं. जिसमें 501 हेक्टेयर जंगल जले हैं. इस आग में 6350 पेड़ जले हैं. कुल मिलाकर 18 लाख 44 हजार 700 रुपए का नुकसान हुआ है.
  • कुमाऊं मंडल में बीते चार महीने में आग लगने की 276 घटनाएं सामने आईं. आग की घटनाओं में 396 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया और 2603 लोग इन घटनाओं में प्रभावित हुए. साथ ही 11 लाख 45 हजार 260 रुपए का नुकसान हुआ है.
  • उत्तराखंड के वाइल्ड लाइफ क्षेत्र में कुल 17 घटनाएं हुईं, जिसमें 20.9 हेक्टेयर जंगल जले और 28,838 का नुकसान हुआ.
  • आंकड़ों पर गौर करें तो बीते चार महीने में प्रदेश के जंगलों में आग लगने की 723 घटनाएं हुईं. जिसमें 917 हेक्टेयर जंगल जले और 8,950 पेड़ों में आग लगी. इस दौरान 30 लाख 18 हजार 798 रुपए का नुकसान हुआ.

लोगों की लापरवाही एक बड़ा कारण

बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं. ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है. कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कैंप पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है. मान सिंह के अनुसार, इस साल गर्मी के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ सकती हैं, हालांकि इससे निपटने के लिए हमने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं.

जंगलों में आग लगने से आसपास के ग्रामीणों को भी भारी परेशानियों और नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. कई लोगों ने अपने बाग-बगीचे खो दिए तो किसी आग की वजह से किसी की पूरी फसल ही जलकर राख हो गई है.

देहरादून: गर्मियों में दावानल से उत्तराखंड के पहाड़ों के खूबसूरत नजारे आग के धुंए की परत से धुंधला गए हैं. उत्तराखंड के जंगलों में गर्मियों के मौसम में लगभग हर साल आग लगती है, जिसकी चपेट में पेड़-पौधों से लेकर छोटे-बड़े जानवर भी आ जाते हैं. उत्तराखंड में जंगलों में आग तेजी से फैली हुई है. चिंता की बात यह है कि पिछले सीजन के मुकाबले इस बार साढ़े 4 गुना तेजी से जंगल जले हैं. प्रदेश के जंगलों में लगी यह आग राज्य सरकार और वन विभाग की मुसीबत बढ़ाती दिखाई दे रही है.

आग से तबाह होते उत्तराखंड के जंगल.

उत्तराखंड की वन संपदा और जंगल कितने तेजी से जल रहे हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नवंबर से अब तक साढ़े चार गुना तेजी से जल रहे हैं. जबकि जंगलों में आग के लिए पीक समय अभी आना बाकी है.

इन घटनाओं से साफ है कि प्रदेश में जंगलों की आग को लेकर इस बार हालात बेकाबू हो सकते हैं. 15 फरवरी से शुरू हुए फायर सीजन का पीक समय 15 जून तक माना जाता है, ऐसे में अभी अगले 3 महीनों तक जंगल आग की लपटों से कितना प्रभावित होंगे. यह एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है.

जंगल में आग लगने की वजह

जानकारों के मुताबिक 2 से 3 साल में मौसम में बदलाव और कम बारिश आग लगने की प्रमुख वजहों में एक है. बताया गया है कि इस बार करीब 65% वर्षा कम हुई है. जिससे जंगल शुष्क स्थिति में हैं. पिछले साल कोविड-19 के दौरान पिछले 20 सालों में सबसे कम जंगल जलने का रिकॉर्ड रहा था. ऐसे में जंगलों में सूखी पत्तियां, पेड़ और लकड़ियों की वजह से आग तेजी लगी. लॉकडाउन के बाद अचानक जंगलों में लोगों की आवाजाही का बढ़ना भी आग लगने की बड़ी वजहों में एक है.

Forest Fire in Uttarakhand
उत्तराखंड में जंगल में आग के आंकड़े.

लॉकडाउन से आग की घटनाओं में कमी

उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक मान सिंह ने कहा कि पिछले साल गर्मियों में जंगलों में आग की घटनाएं कम हुई हैं, क्योंकि लॉकडाउन लागू होने के दौरान लोग जंगलों में कम ही जा पाए, जिससे जंगल लोगों की लापरवाही का शिकार कम हुए, लेकिन पिछले साल बारिश में भी कमी देखी गई, जिससे जंगलों में सूखी लकड़ियां, मुख्य रूप से देवदार की सूखी टहनियां बड़ी मात्रा में जमा हुईं, जिससे सर्दियों के दौरान आग की घटनाएं बढ़ जाती हैं.

जानिए क्या कहते हैं आंकड़े

  • वर्ष 2015 में जंगल में आग लगने की वजह से न किसी व्यक्ति की मौत हुई और न ही कोई जख्मी हुआ.
  • साल 2016 में जंगल में लगी आग की वजह से प्रदेश में 6 लोगों की मौत हुई थी और 31 लोग घायल हुए थे.
  • साल 2017 में जंगल में लगी आग की वजह से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. लेकिन प्रदेश में आग की चपेट में आने से मात्र एक शख्स जख्मी हुआ था.
  • साल 2018 में भी जंगल में लगी आग की वजह से किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. इन मामलों में 6 लोग आग की चपेट में आने से झुलस गए.
  • साल 2019 में जंगल में लगी आग से एक व्यक्ति की मौत हुई और 15 लोग घायल हुए.
  • साल 2020 में जंगल में लगी आग की वजह से प्रदेश में दो व्यक्तियों की मौत और एक जख्मी हुआ.
  • साल 2021 में अभी तक जंगल में लगी आग की वजह से 4 लोगों की मौत और 2 लोग जख्मी हुए हैं.

ये भी पढ़ें: बारिश न होने से जंगलों में बढ़ी आग की घटनाएं, वन विभाग रख रहा नजर

मंडलवार नुकसान के आंकड़े

  • गढ़वाल मंडल में बीते चार महीनों में आग लगने की 430 घटनाएं हो चुकी हैं. जिसमें 501 हेक्टेयर जंगल जले हैं. इस आग में 6350 पेड़ जले हैं. कुल मिलाकर 18 लाख 44 हजार 700 रुपए का नुकसान हुआ है.
  • कुमाऊं मंडल में बीते चार महीने में आग लगने की 276 घटनाएं सामने आईं. आग की घटनाओं में 396 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया और 2603 लोग इन घटनाओं में प्रभावित हुए. साथ ही 11 लाख 45 हजार 260 रुपए का नुकसान हुआ है.
  • उत्तराखंड के वाइल्ड लाइफ क्षेत्र में कुल 17 घटनाएं हुईं, जिसमें 20.9 हेक्टेयर जंगल जले और 28,838 का नुकसान हुआ.
  • आंकड़ों पर गौर करें तो बीते चार महीने में प्रदेश के जंगलों में आग लगने की 723 घटनाएं हुईं. जिसमें 917 हेक्टेयर जंगल जले और 8,950 पेड़ों में आग लगी. इस दौरान 30 लाख 18 हजार 798 रुपए का नुकसान हुआ.

लोगों की लापरवाही एक बड़ा कारण

बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं. ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है. कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कैंप पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है. मान सिंह के अनुसार, इस साल गर्मी के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ सकती हैं, हालांकि इससे निपटने के लिए हमने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं.

जंगलों में आग लगने से आसपास के ग्रामीणों को भी भारी परेशानियों और नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. कई लोगों ने अपने बाग-बगीचे खो दिए तो किसी आग की वजह से किसी की पूरी फसल ही जलकर राख हो गई है.

Last Updated : Mar 24, 2021, 7:47 PM IST
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