देहरादून: साल 2024 में तमाम राजनीतिक दलों का फोकस लोकसभा चुनाव पर है. लेकिन उत्तराखंड में राजनीतिक दलों के लिए ये साल महज लोकसभा चुनाव की चुनौती तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले 12 महीनों में राज्य के राजनीतिक दल कई बार राजनीतिक परीक्षा देते हुए नजर आएंगे. हालांकि इसमें सबसे बड़ी परीक्षा लोकसभा चुनाव की ही होगी.
इस साल 12 महीनों के दौरान प्रदेश में पंचायत के चुनाव से लेकर लोकसभा और निकाय चुनाव से लेकर सहकारिता के चुनाव भी देखने को मिलेंगे. जाहिर है कि कई चुनाव होने के कारण इस साल सरकारी सिस्टम से लेकर सरकार और राजनीतिक दल चुनावी आचार संहिता से प्रभावित होंगे. इस दौरान राजनीतिक दल इन सभी महत्वपूर्ण चुनावों को लेकर जनता की नब्ज भी टटोलेंगे और चुनाव परिणामों को अपने कब्जे में करने की भी कोशिश करेंगे.
पहली और सबसे बड़ी परीक्षा होगी लोकसभा चुनाव: देशभर की तरह उत्तराखंड में भी राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ी परीक्षा लोकसभा चुनाव की होगी. माना जा रहा है कि फरवरी के अंत या मार्च के पहले हफ्ते तक लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू कर दी जाएगी. ऐसे में राजनीतिक दल करीब 2 महीने के अंतराल में उन सभी तैयारियों को पूरा कर लेना चाहेंगे, जिनसे जनता को अपने वोटर्स के रूप में तब्दील किया जा सके. इस समय उत्तराखंड में पांच लोकसभा सीट हैं और इन सभी पर भाजपा का कब्जा है. बड़ी बात यह है कि 2014 के बाद 2019 में लगातार दो बार सभी पांच लोकसभा सीटों पर भाजपा ने अपना परचम लहराया है. इस तरह पांचों लोकसभा सीट पर जीत को लेकर भाजपा हैट्रिक लगाने की कोशिश में जुटी हुई है. उधर कांग्रेस उत्तराखंड राज्य स्थापना के बाद केवल एक बार ही पांच लोकसभा सीट जीत पाई थी. पिछले दो लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद अब कांग्रेस की कोशिश राज्य की पांच लोकसभा सीटों में वापसी करना होगा.
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ तेजी से चुनावी तैयारी में जुटी हुई दिखाई देती है. इसके लिए तमाम मोर्चों की बैठक से लेकर पन्ना प्रमुख तक को जिम्मेदारी देने का काम किया जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी के नेता कहते हैं कि वैसे तो पार्टी साल भर चुनावी मोड में ही काम करती है और कार्यकर्ता पार्टी के लिए साल भर काम करते हैं. लेकिन साल 2024 चुनावी वर्ष है. इस साल पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने जीत को लेकर तैयारी को तेज करने की चुनौती होगी.
निकाय चुनाव के लिए भी तैयार हैं दावेदार: राज्य में इस साल निकाय चुनाव भी होने हैं. दरअसल साल 2023 में राज्य में ना तो निकाय के चुनाव हुए और ना ही सहकारिता के. ऐसे में कार्यकाल पूरा होने पर प्रशासकों की तैनाती कर दी गई है. निकाय चुनाव के लिए आखिरी डेडलाइन 2 दिसंबर तय की गई थी. इस डेडलाइन तक चुनाव नहीं कराए जा सके. हालांकि चुनाव को लेकर दावेदार पहले से ही अपनी तैयारी में जुटे हुए थे. इस दौरान कई जगह तो निकाय चुनाव की तैयारी कर रहे दावेदारों ने अपने पोस्टर तक बाजार में लगवाने शुरू कर दिए थे. लेकिन लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही फिलहाल निकाय के चुनाव को लेकर सभी संभावनाओं को विराम लगा दिया गया.
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर भी लटका मामला: प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर भी संशय बना हुआ है. समय पर चुनाव हो पाएंगे, इसके आसार कम दिख रहे हैं. ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत का कार्यकाल भी इसी साल पूरा होने जा रहा है. माना जा रहा है कि साल के अंत में इसके लिए भी राज्य में चुनाव संपन्न करा लिए जाएंगे. इससे पूर्व हुई त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव नवंबर में संपादित किए गए थे. यानी इस बार भी चुनाव करीब इसी समय तक पूरे कराए जाएंगे.
उत्तराखंड कांग्रेस राज्य में फिलहाल लोकसभा चुनाव पर पूरा फोकस कर रही है. राष्ट्रीय स्तर पर सभी राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों के साथ ही पार्टी हाई कमान के स्तर पर बैठक की जा चुकी है. पार्टी हाई कमान के निर्देशों के आधार पर अब विभिन्न राज्यों में आगे की रणनीति पर काम किया जाना है. हालांकि तमाम दूसरे चुनावों को लेकर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट कहते हैं कि राज्य सरकार जनता के बीच खराब नीतियों के कारण चुनाव में जाने से डर रही है. इसीलिए निकाय चुनाव के साथ ही सहकारिता के चुनाव को भी सरकार समय पर नहीं करवा पाई.
सहकारिता के चुनाव पर भी संशय, इस साल कराने होंगे चुनाव: वैसे तो सहकारिता के चुनावों को साल 2023 में ही करा लिया जाना चाहिए था. लेकिन न जाने ऐसी क्या बात रही कि इसके चुनाव लटकाए जाते रहे. बहुउद्देशीय सहकारी समितियों के चुनाव भी नहीं हो पाए और राज्य सहकारी बैंक से लेकर जिला भेषज सहकारी संघ समेत दूसरे कई संघों के चुनाव को नहीं कराया गया. जिसके कारण यहां पर कार्यकाल पूरा होने के चलते प्रशासकों को तैनाती दी गयी है. उधर अब लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही फिलहाल सहकारी संघों के चुनाव हो पाने मुश्किल दिख रहे हैं.
साल 2024 में आचार संहिता लागू रहने के कारण विकास कार्य रहेंगे बाधित: उत्तराखंड में साल 2024 के दौरान कई चुनाव संभावित हैं. लिहाजा इस साल विकास कार्यों पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा. एक तरफ चुनाव के दौरान आचार संहिता लगने के चलते विकास कार्य बाधित हो जाएंगे तो वहीं चुनावी तैयारी में जुटने के चलते सरकार भी चुनावी मोड में ही दिखाई देगी. जाहिर है कि इस स्थिति में भी विकास कार्य कुछ हद तक बाधित रह सकते हैं. फरवरी के संभावित अंतिम हफ्ते से लेकर मार्च अंत या अप्रैल तक देश की सरकार के गठन तक विकास कार्यों पर इसका सीधा असर होगा. इसके बाद जून या जुलाई तक निकाय चुनाव की संभावना है. इस दौरान भी 1 से 2 महीनों तक चुनावी मोड विकास कार्यों को बाधित करेगा. इसके बाद सहकारिता के चुनाव में भी सरकार से जुड़े लोग व्यस्त दिखाई देंगे. कई विभाग इसके कारण तमाम कार्यों को लेकर कुछ हल्के ही रहेंगे. उधर नवंबर के महीने में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की रणभेरी बजने की संभावना है. ऐसे में अक्टूबर के अंतिम हफ्ते से लेकर नवंबर तक भी सरकार चुनाव में व्यस्त दिखाई दे सकती है.
भाजपा और कांग्रेस के लिए कड़ी परीक्षा का समय: चुनावी वर्ष होने के कारण यह पूरा साल उत्तराखंड में खासतौर पर दो राजनीतिक दलों के लिए परीक्षा का समय होगा. इसमें सबसे बड़ी चुनौती उन पदाधिकारियों के सामने होगी, जो महत्वपूर्ण पदों पर हैं. जिनके कंधों पर इन चुनावों में जीत का जिम्मा होगा. यानी यह चुनाव कई लोगों को राजनीतिक रूप से नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे तो कई को असफलता के कारण इसका हर्जाना भी भुगतना पड़ सकता है.
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