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राष्ट्रीय हथकरघा दिवस : हथकरघा उद्योग से जुड़े 12,000 से ज्यादा परिवार, राज्य सरकार दे रही बढ़ावा

अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी अच्छी खासी डिमांड के बावजूद बीते कुछ सालों में बेहतर बाजार और मुनाफा न मिलने के कारण कई परिवारों ने हथकरघा उद्योग से दूरी बनाई है. वे अब दूसरे काम धंधों में रुचि लेने लगे हैं.जिसे देखते हुए राज्य सरकार लगातार हथकरघा उद्योग को बढ़ाने के लिए नई-नई पहल करने लगी है.

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राष्ट्रीय हथकरघा दिवस
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Published : Aug 7, 2020, 7:49 PM IST

देहरादून: देश के साथ ही पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में भी आज भी कई परिवार ऐसे हैं जिनकी जीविका छोटे छोटे हथकरघा उद्योग के माध्यम से चल रही है. आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के मौके पर ईटीवी भारत अपनी इस रिपोर्ट के माध्यम से आपको उत्तराखंड में हथकरघा उद्योग की स्थिति से रूबरू करवाएगा. साथ ही आपको बताएंगे कि राज्य सरकार प्रदेश में हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए क्या कुछ कर रही है.

बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 07 अगस्त 2015 को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी. दरअसल, अंग्रेजी शासनकाल के दौरान देश में 07 अगस्त 1905 को ही स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई थी. जिसका मुख्य उद्देश्य देश में तैयार हुई चीजों को प्रोत्साहित करना था.

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नेशलन हैंडलूम एक्सपो में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत.

पढ़ें-चौबटिया के जंगल में पेड़ से लटकता मिला अधेड़ का कंकाल


उत्तराखंड में 11 हजार 96 परिवार हथकरघा उद्योग से जुड़े
बात अगर उत्तराखंड में हथकरघा उद्योग की करे तो हाथ से बुनाई की परंपरा पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के कई दूरुस्त इलाकों के लोगो के लिए आज भी एक मात्र कमाई का जरिया है. उत्तराखंड हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 11 हजार 96 परिवार हथकरघा उद्योग से जुड़े हैं. इनमें हथकरघा उद्योग से जुड़े सबसे अधिक 8 हजार से ज्यादा परिवार उधम सिंह नगर जिले में हैं. इसके अलावा प्रदेश के अन्य पहाड़ी जनपदों उत्तरकाशी, चमोली, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जनपद में भी कई लोग आज भी हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग से जुड़कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. जिससे प्रदेश सरकार को हर वर्ष लगभग 50 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है.

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चमोली में हस्तशिल्प के उत्पाद देखती डीएम.

पढ़ें- भूस्खलन से ऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे बंद, डीएम ने भी पैदल नापा रास्ता

सामानों की अंतरराष्ट्रीय मार्केट में डिमांड

बता दें कि प्रदेश में हथकरघा उद्योग के माध्यम से कई तरह के ऊनी कपड़े और घर का अन्य सजावटी सामान तैयार किये जाते हैं. जिनकी सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अच्छी खासी मांग है. इसमें अंगरा खरगोश के ऊन से बने कपड़े, स्वैटर , ऊनी टोपी, मफलर, पंखी, कार्पेट शामिल हैं. इसके अलावा रिंगाल से बनी टोकरियों और घर के अन्य सजावटी सामानों की भी अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी अच्छी खासी डिमांड है.

पढ़ें- देहरादूनः परेड ग्राउंड में इस बार नहीं होगा स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम, जानिए वजह

कई परिवारों ने बनाई दूरी
अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी अच्छी खासी डिमांड के बावजूद बीते कुछ सालों में बेहतर बाजार और मुनाफा न मिलने के कारण कई परिवारों ने हथकरघा उद्योग से दूरी बनाई है. वे अब दूसरे काम धंधों में रुचि लेने लगे हैं. जिसे देखते हुए प्रदेश सरकार की तरफ हथकरघा उद्योग को बढ़ाने के लिए कई पहल की जा रही हैं.

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रिंगाल से बनी टोकरी.

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प्रदेश सरकार दे रही बढ़ावा

प्रदेश के बुनकरों को स्वावलंबी बनाने और हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार खुद बुनकरों से उनके उत्पाद खरीद रही है. जिन्हें 'हिमाद्रि' के नाम से देश-विदेश में उपलब्ध कराया जा रहा है. वहीं, हिमाद्री के उत्पादों को लोग ज्यादा से ज्यादा खरीद सके इसके लिए अब हिमाद्री के उत्पाद ऑनलाइन शॉपिंग साइट जैसे की अमेज़न पर भी उपलब्ध हैं.

पढ़ें-वेतन भत्तों में कटौती को लेकर कांग्रेस-बीजेपी आमने-सामने, एक दूसरे पर लगा रहे आरोप
इसके अलावा महिलाओं को हथकरघा उद्योग से जोड़ने के लिए साल 2018 में उद्योग निदेशालय की ओर से नंदा देवी सोसायटी व हंस फाउंडेशन के गठजोड़ से अल्मोड़ा में नंदा देवी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का गठन किया गया. जिसके माध्य्म से वर्तमान में 200 महिला बुनकरों को रोजगार मिला हुआ है.

देहरादून: देश के साथ ही पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में भी आज भी कई परिवार ऐसे हैं जिनकी जीविका छोटे छोटे हथकरघा उद्योग के माध्यम से चल रही है. आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के मौके पर ईटीवी भारत अपनी इस रिपोर्ट के माध्यम से आपको उत्तराखंड में हथकरघा उद्योग की स्थिति से रूबरू करवाएगा. साथ ही आपको बताएंगे कि राज्य सरकार प्रदेश में हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए क्या कुछ कर रही है.

बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 07 अगस्त 2015 को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी. दरअसल, अंग्रेजी शासनकाल के दौरान देश में 07 अगस्त 1905 को ही स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई थी. जिसका मुख्य उद्देश्य देश में तैयार हुई चीजों को प्रोत्साहित करना था.

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नेशलन हैंडलूम एक्सपो में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत.

पढ़ें-चौबटिया के जंगल में पेड़ से लटकता मिला अधेड़ का कंकाल


उत्तराखंड में 11 हजार 96 परिवार हथकरघा उद्योग से जुड़े
बात अगर उत्तराखंड में हथकरघा उद्योग की करे तो हाथ से बुनाई की परंपरा पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के कई दूरुस्त इलाकों के लोगो के लिए आज भी एक मात्र कमाई का जरिया है. उत्तराखंड हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 11 हजार 96 परिवार हथकरघा उद्योग से जुड़े हैं. इनमें हथकरघा उद्योग से जुड़े सबसे अधिक 8 हजार से ज्यादा परिवार उधम सिंह नगर जिले में हैं. इसके अलावा प्रदेश के अन्य पहाड़ी जनपदों उत्तरकाशी, चमोली, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जनपद में भी कई लोग आज भी हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग से जुड़कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. जिससे प्रदेश सरकार को हर वर्ष लगभग 50 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है.

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चमोली में हस्तशिल्प के उत्पाद देखती डीएम.

पढ़ें- भूस्खलन से ऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे बंद, डीएम ने भी पैदल नापा रास्ता

सामानों की अंतरराष्ट्रीय मार्केट में डिमांड

बता दें कि प्रदेश में हथकरघा उद्योग के माध्यम से कई तरह के ऊनी कपड़े और घर का अन्य सजावटी सामान तैयार किये जाते हैं. जिनकी सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अच्छी खासी मांग है. इसमें अंगरा खरगोश के ऊन से बने कपड़े, स्वैटर , ऊनी टोपी, मफलर, पंखी, कार्पेट शामिल हैं. इसके अलावा रिंगाल से बनी टोकरियों और घर के अन्य सजावटी सामानों की भी अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी अच्छी खासी डिमांड है.

पढ़ें- देहरादूनः परेड ग्राउंड में इस बार नहीं होगा स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम, जानिए वजह

कई परिवारों ने बनाई दूरी
अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी अच्छी खासी डिमांड के बावजूद बीते कुछ सालों में बेहतर बाजार और मुनाफा न मिलने के कारण कई परिवारों ने हथकरघा उद्योग से दूरी बनाई है. वे अब दूसरे काम धंधों में रुचि लेने लगे हैं. जिसे देखते हुए प्रदेश सरकार की तरफ हथकरघा उद्योग को बढ़ाने के लिए कई पहल की जा रही हैं.

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रिंगाल से बनी टोकरी.

पढ़ें- देहरादूनः परेड ग्राउंड में इस बार नहीं होगा स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम, जानिए वजह


प्रदेश सरकार दे रही बढ़ावा

प्रदेश के बुनकरों को स्वावलंबी बनाने और हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार खुद बुनकरों से उनके उत्पाद खरीद रही है. जिन्हें 'हिमाद्रि' के नाम से देश-विदेश में उपलब्ध कराया जा रहा है. वहीं, हिमाद्री के उत्पादों को लोग ज्यादा से ज्यादा खरीद सके इसके लिए अब हिमाद्री के उत्पाद ऑनलाइन शॉपिंग साइट जैसे की अमेज़न पर भी उपलब्ध हैं.

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इसके अलावा महिलाओं को हथकरघा उद्योग से जोड़ने के लिए साल 2018 में उद्योग निदेशालय की ओर से नंदा देवी सोसायटी व हंस फाउंडेशन के गठजोड़ से अल्मोड़ा में नंदा देवी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का गठन किया गया. जिसके माध्य्म से वर्तमान में 200 महिला बुनकरों को रोजगार मिला हुआ है.

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