ETV Bharat / state

गढ़वाल की लक्ष्मीबाई तीलू रौतेली, कत्यूरों को युद्ध में दी मात - कत्यूरों को युद्ध में दी मात

उत्तराखंड के चौंदकोट की वीरांगना तीलू रौतेली की जयंती 8 अगस्त को पूरे प्रदेश में धूमधाम से मनाई जाती है. छोटी सी उम्र में तीलू रौतेली ने लड़ाई लड़ कत्यूरों को मात दी थी.

Laxmibai of Garhwal is Tilu Rauteli
गढ़वाल की लक्ष्मीबाई तीलू रौतेली
author img

By

Published : Aug 8, 2020, 5:30 AM IST

Updated : Aug 8, 2020, 12:53 PM IST

चंपावत: देवभूमि उत्तराखंड हमेशा से ही वीरों की भूमि रही है. उत्तराखंड देवभूमि होने के साथ ही वीरों की भूमि भी है और अनूठी संस्कृति संजोए हुए है. उत्तराखंड वीरांगनाओं की प्रसूता भूमि भी रही है. यहां की वीरांगनाओं ने भी अपने अदम्य शौर्य का परिचय देकर अपना नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया है. उत्तराखंड में 8 अगस्त को तीलू रौतेली की जयंती मनाई जाती है. उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल में चौंदकोट की 17वीं शताब्दी की इस वीरांगना ने लगातार सात साल तक युद्ध लड़ कत्यूरों को भगाया था. कत्यूर कुमाऊं के राजा थे. तीलू रौतेली गढ़वाल के लोगों के बीच गढ़वाल की लक्ष्मीबाई के नाम से भी प्रसिद्ध है.

गढ़वाल की लक्ष्मीबाई तीलू रौतेली.

कौन थी तीलू रौतेली

8 अगस्त के मौके पर पौड़ी गढ़वाल में तीलू रौतेली का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. तीलू रौतेली चौंदकोट गढ़वाल के गोर्ला रौत थोकदार और गढ़वाल रियासत के राजा फतेहशाह के सेनापति भूप सिंह की बेटी थीं. तीलू का जन्म सन 1661 में हुआ था. तीलू के दो बड़े भाई थे पत्वा और भक्तू. तीलू की सगाई बाल्यकाल में ही ईड़ गांव के सिपाही नेगी भवानी सिंह के साथ कर दी गई थी. बेला और देवकी की शादी तीलू के गांव गुराड में हुई थी. जो तीलू की हमउम्र थी.

तीलू रौतेली का असली नाम तीलोत्मा देवी था. लेकिन चौंदकोट में पति की बड़ी बहन को 'रौतेली' संबोधित किया जाता है. बेला और देवकी भी तीलू को 'तीलू रौतेली' कहकर बुलाती थी. वीर पत्वा और भक्तू की छोटी बहन तीलू बचपन से तलवार के साथ खेलकर बड़ी हुईं थी. बचपन में ही तीलू ने अपने लिए सबसे सुंदर घोड़ी 'बिंदुली' का चयन कर लिया था. 15 वर्ष की होते-होते गुरु शिबू पोखरियाल ने तीलू को घुड़सवारी और तलवारबाजी में निपुण कर दिया था.

ये भी पढ़ें: धर्मनगरी से फूंका था राम मंदिर आंदोलन का बिगुल, 500 साल का सपना हुआ साकार

कत्यूरों का आक्रमण

17वीं शताब्दी में जब भी गढ़वाल में फसल काटी जाती थी. वैसे ही कुमाऊं से कत्यूर सैनिक लूटपाट करने आ जाते थे. फसल के साथ-साथ ये अन्य सामान और बकरियां तक उठाकर ले जाते थे. ऐसे ही एक आक्रमण में तीलू के पिता, दोनों भाई और मंगेतर शहीद हो गए थे. इस घटना के बाद तीलू की मां मैणा देवी को बहुत दुख हुआ और उन्होंने तीलू से कहा कि 'तीलू तू कैसी है रे... तुझे अपने भाईयों की याद नहीं आती. तेरे पिता और भाईयों की मौत का प्रतिशोध कौन लेगा?'. मां की बातों को सुनकर तीलू ने नई सेना का गठन किया और खैरागढ़ सहित समीपवर्ती क्षेत्रों को कत्यूरों से मुक्त कराने का प्रण लिया.

कत्यूरों पर आक्रमण

जब तीलू रौतेली ने फौज का गठन किया, तब उनकी उम्र महज 15 साल की थी. पुरुष वेश में तीलू ने सबसे पहले खैरागढ़ को कत्यूरों से मुक्त कराया. खैरागढ़ से आगे बढ़कर उन्होंने उमटागढ़ी को जीता. इसके पश्चात वह अपने सेना के साथ सल्ट महादेव पहुंचीं. छापामार युद्ध में माहिर तीलू रौतेली सल्ट को जीत कर भिलंगभौण की तरफ चल पड़ीं. लेकिन इस दौरान उनकी दो सखियां बेला और देवकी शहीद हो गईं. कुमाऊं में जहां बेला शहीद हुई उस स्थान का नाम बेलाघाट और देवकी के शहीद स्थल को देघाट कहते हैं. चौखुटिया तक अपनेर राज्य की सीमा निर्धारित करके तीलू अपने सैनिकों के साथ देघाट वापस लौट आईं. इस दौरान कलिंका घाट के पास उनका कत्यूरों के साथ भीषण युद्ध भी हुआ. लगातार 7 वर्षों तक बड़ी चतुराई से तीलू ने रणनीति और गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाते हुए सराईखेत की लड़ाई में कत्यूरों का सर्वनाश कर दिया.

ये भी पढ़ें: राम मंदिर आंदोलन की यादें: मुलायम ने कहा था- 'परिंदा पर नहीं मार सकता'

अंत में जब तीलू लड़ाई जीतकर अपने गांव गुराड वापस आ रही थी. रात में तल्ला कांडा शिविर के निकट पूर्वी नयार नदी तट पर तीलू विश्राम कर रही थी. तभी शत्रु के एक सैनिक रामू रजवाड़ ने धोखे से तीलू पर तलवार का वार कर दिया और उनकी हत्या कर दी.

वीरांगना तीलू रौतेली की जयंती पर हर साल प्रदेश सरकार महिलाओं को सम्मानित करती है. गढ़वाल की तीलू रौतेली रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, चांदबीबी, जियारानी जैसी वारांगनाओं के समकक्ष मानी जाती हैं. जिन्होंने छोटी सी उम्र में 7 युद्ध लड़कर अदम्य शौर्य का परिचय दिया था.

चंपावत: देवभूमि उत्तराखंड हमेशा से ही वीरों की भूमि रही है. उत्तराखंड देवभूमि होने के साथ ही वीरों की भूमि भी है और अनूठी संस्कृति संजोए हुए है. उत्तराखंड वीरांगनाओं की प्रसूता भूमि भी रही है. यहां की वीरांगनाओं ने भी अपने अदम्य शौर्य का परिचय देकर अपना नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया है. उत्तराखंड में 8 अगस्त को तीलू रौतेली की जयंती मनाई जाती है. उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल में चौंदकोट की 17वीं शताब्दी की इस वीरांगना ने लगातार सात साल तक युद्ध लड़ कत्यूरों को भगाया था. कत्यूर कुमाऊं के राजा थे. तीलू रौतेली गढ़वाल के लोगों के बीच गढ़वाल की लक्ष्मीबाई के नाम से भी प्रसिद्ध है.

गढ़वाल की लक्ष्मीबाई तीलू रौतेली.

कौन थी तीलू रौतेली

8 अगस्त के मौके पर पौड़ी गढ़वाल में तीलू रौतेली का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. तीलू रौतेली चौंदकोट गढ़वाल के गोर्ला रौत थोकदार और गढ़वाल रियासत के राजा फतेहशाह के सेनापति भूप सिंह की बेटी थीं. तीलू का जन्म सन 1661 में हुआ था. तीलू के दो बड़े भाई थे पत्वा और भक्तू. तीलू की सगाई बाल्यकाल में ही ईड़ गांव के सिपाही नेगी भवानी सिंह के साथ कर दी गई थी. बेला और देवकी की शादी तीलू के गांव गुराड में हुई थी. जो तीलू की हमउम्र थी.

तीलू रौतेली का असली नाम तीलोत्मा देवी था. लेकिन चौंदकोट में पति की बड़ी बहन को 'रौतेली' संबोधित किया जाता है. बेला और देवकी भी तीलू को 'तीलू रौतेली' कहकर बुलाती थी. वीर पत्वा और भक्तू की छोटी बहन तीलू बचपन से तलवार के साथ खेलकर बड़ी हुईं थी. बचपन में ही तीलू ने अपने लिए सबसे सुंदर घोड़ी 'बिंदुली' का चयन कर लिया था. 15 वर्ष की होते-होते गुरु शिबू पोखरियाल ने तीलू को घुड़सवारी और तलवारबाजी में निपुण कर दिया था.

ये भी पढ़ें: धर्मनगरी से फूंका था राम मंदिर आंदोलन का बिगुल, 500 साल का सपना हुआ साकार

कत्यूरों का आक्रमण

17वीं शताब्दी में जब भी गढ़वाल में फसल काटी जाती थी. वैसे ही कुमाऊं से कत्यूर सैनिक लूटपाट करने आ जाते थे. फसल के साथ-साथ ये अन्य सामान और बकरियां तक उठाकर ले जाते थे. ऐसे ही एक आक्रमण में तीलू के पिता, दोनों भाई और मंगेतर शहीद हो गए थे. इस घटना के बाद तीलू की मां मैणा देवी को बहुत दुख हुआ और उन्होंने तीलू से कहा कि 'तीलू तू कैसी है रे... तुझे अपने भाईयों की याद नहीं आती. तेरे पिता और भाईयों की मौत का प्रतिशोध कौन लेगा?'. मां की बातों को सुनकर तीलू ने नई सेना का गठन किया और खैरागढ़ सहित समीपवर्ती क्षेत्रों को कत्यूरों से मुक्त कराने का प्रण लिया.

कत्यूरों पर आक्रमण

जब तीलू रौतेली ने फौज का गठन किया, तब उनकी उम्र महज 15 साल की थी. पुरुष वेश में तीलू ने सबसे पहले खैरागढ़ को कत्यूरों से मुक्त कराया. खैरागढ़ से आगे बढ़कर उन्होंने उमटागढ़ी को जीता. इसके पश्चात वह अपने सेना के साथ सल्ट महादेव पहुंचीं. छापामार युद्ध में माहिर तीलू रौतेली सल्ट को जीत कर भिलंगभौण की तरफ चल पड़ीं. लेकिन इस दौरान उनकी दो सखियां बेला और देवकी शहीद हो गईं. कुमाऊं में जहां बेला शहीद हुई उस स्थान का नाम बेलाघाट और देवकी के शहीद स्थल को देघाट कहते हैं. चौखुटिया तक अपनेर राज्य की सीमा निर्धारित करके तीलू अपने सैनिकों के साथ देघाट वापस लौट आईं. इस दौरान कलिंका घाट के पास उनका कत्यूरों के साथ भीषण युद्ध भी हुआ. लगातार 7 वर्षों तक बड़ी चतुराई से तीलू ने रणनीति और गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाते हुए सराईखेत की लड़ाई में कत्यूरों का सर्वनाश कर दिया.

ये भी पढ़ें: राम मंदिर आंदोलन की यादें: मुलायम ने कहा था- 'परिंदा पर नहीं मार सकता'

अंत में जब तीलू लड़ाई जीतकर अपने गांव गुराड वापस आ रही थी. रात में तल्ला कांडा शिविर के निकट पूर्वी नयार नदी तट पर तीलू विश्राम कर रही थी. तभी शत्रु के एक सैनिक रामू रजवाड़ ने धोखे से तीलू पर तलवार का वार कर दिया और उनकी हत्या कर दी.

वीरांगना तीलू रौतेली की जयंती पर हर साल प्रदेश सरकार महिलाओं को सम्मानित करती है. गढ़वाल की तीलू रौतेली रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, चांदबीबी, जियारानी जैसी वारांगनाओं के समकक्ष मानी जाती हैं. जिन्होंने छोटी सी उम्र में 7 युद्ध लड़कर अदम्य शौर्य का परिचय दिया था.

Last Updated : Aug 8, 2020, 12:53 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.