चंपावत: लंबे समय से ग्रामीणों के भारी विरोध का असर टनकपुर तहसील सभागार में बुधवार को ही चैनलाइजेशन की टेंडर प्रक्रिया में साफ देखने को मिला. इसके चलते कोई भी ठेकेदार किरोड़ा में खनन का ठेका हासिल करने के लिए बोली लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाये. यहां केवल लधिया के ही तीन लॉट की बोली हो पाई. सूत्रों के मुताबिक, तीन लॉट की बोली में खूब पूलिंग हुई. ठेकेदारों की मिलीभगत से बेस दाम से करीब डेढ़ दो लाख अधिक तक में प्रक्रिया पूरी हो गई थी.
वहीं, इस बोली प्रक्रिया को संपन्न कराने के लिए प्रशासन ने सभागार में कोई भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगाया था. हॉल में बैठे ठेकेदार बाहर बैठे साथियों से खुलेआम फोन और व्हाट्सएप पर जानकारियां शेयर कर रहे थे. ऐसे में स्थानीय लोग प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
एसडीएम दयानन्द सरस्वती की अध्यक्षता में लधिया नदी में टेंडर प्रक्रिया शुरू हुई. आठ लॉट में बोली लगाने के लिए महज 30 ठेकेदारों ने ही पंजीकरण कराया था. सूत्रों के मुताबिक, इनमें अधिकतर लोग राजनेताओं के करीबी थे. झालाकुड़ी के 0.5 हेक्टेयर के लिए हुई बोली 23.11 लाख रुपये से शुरू होकर 31.50 लाख रुपये पर पहुंची. ठेकेदारों के बीच पूल बनने के कारण नौलापानी के एक हेक्टेयर के लिए बोली का 30.80 लाख से शुरू होकर 33.35 लाख तक पहुंच पाई.
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वहीं, लधिया नाले की आखिरी बोली 30.80 से शुरू हुई जो 32.05 तक पहुंची. उसके बाद किरोड़ा के पांच लॉट की बोली का नंबर आते ही हॉल में सन्नाटा पसर गया. इस बीच कई बार एसडीएम ने ठेकेदारों से बढ़-चढ़कर बोली लगाने का आग्रह किया, लेकिन ठेकेदार बोली के लिए मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. ठेकेदारों का साफ कहना था कि ग्रामीण किरोड़ा में चैनलाइजेशन का भारी विरोध कर रहे हैं. इसके चलते प्रशासन को मायूस होकर टेंडर प्रक्रिया संपन्न होने का ऐलान करना पड़ा.
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ठेकेदारों ने एसडीएम को बताया कि ग्रामीण तीन साल से किरोड़ा में खनन का खुला विरोध कर रहे हैं. पिछले साल भी विरोध के कारण एक ठेकेदार की ओर से जमा किए गए 18 लाख रुपये फंस गए थे. इस साल भी ग्रामीणों ने किरोड़ा में खनन के दौरान वाहन और जेसीबी आदि में तोड़फोड़ की चेतावनी दी है. लिहाजा कोई भी व्यक्ति किरोड़ा का ठेका लेकर अपनी जमा पूंजी नहीं गवांना चाहता है.
ग्रामीण बोली प्रक्रिया के दौरान गैड़ाखाली और थ्वालखेड़ा के ग्रामीण भी तहसील पहुंच गए थे. उन्होंने हर ठेकेदार से कहा कि वह किरोड़ा का ठेका न लें. ठेका लेने की स्थिति में उन्हें पछताने के सिवा कुछ नहीं मिलेगा.