चमोली: प्रदेश में कोरोना का कहर अभी भी जारी है. वहीं, कोरोना संक्रमण के कारण लगे लॉकडाउन ने चलते कई युवा बेरोजगार हुए हैं. जो लॉकडाउन से पहले देश के अलग-अलग राज्यों में नौकरी करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे थे. ऐसे में वह लॉकडाउन के कारण आज अपने गांव लौटकर मनरेगा कार्यों में 204 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी करने को मजबूर हैं. जिससे उनके परिवार का भरण पोषण नहीं हो पा रहा है.
इसी कड़ी में लॉकडाउन के दौरान कई युवा अपने गांव चमोली लौटे हैं, गांव लौटने के बाद बड़ी संख्या में प्रवासियों के बीच रोजगार का संकट खड़ा हो गया था. नौकरी छूट जाने के बाद जो प्रवासी वापस मैदानी इलाकों में न लौट सके, उन्होंने अपने परिवार के भरण पोषण के लिए गांव में ही मनरेगा में काम करना शुरू कर दिया. हालांकि, उनका कहना है कि मनरेगा की मजदूरी से उनके परिवार का भरण पोषण नहीं हो पा रहा है. मनेरगा के तहत मिलने वाली मजदूरी उनके जीवनव्यापन के लिए नाकाफी है.
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वहीं, दिल्ली में होटल सेक्टर में नौकरी कर रहे पोखरी के भूपेंद्र और अमित का कहना है कि लॉकडाउन के कारण उनकी नौकरी छूट गई थी. वह अप्रैल माह में गांव लौट गए थे, तबसे वह गांव में ही मनरेगा में कार्य कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. मनरेगा में प्रतिदिन उन्हें महज 204 रुपये की मजदूरी मिल रही है, जिससे उनके परिवार का भरण पोषण नहीं हो पा रहा है. उन्होंने सरकार से रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ मनरेगा में मजदूरी बढ़ाने की भी मांग की है. ताकि गांव के युवा मैदानी क्षेत्रों को पलायन न करें और उन्हें गांव में सम्मानजनक रोजगार मिल सके.