ETV Bharat / state

रावत भाइयों ने जैविक खेती में बनाई अलग पहचान, किसानों को भी कर रहे प्रेरित

author img

By

Published : Jul 14, 2020, 5:16 PM IST

चमोली के थराली विकासखंड के किसानों ने जैविक खेती में अलग पहचान बना ली है. किसान हर्षपाल रावत अपने भाइयों के साथ मिलकर स्थानीय किसानों को भी जैविक खेती की तरफ प्रेरित कर रहे हैं.

Organic farming
जैविक खेती में बनाई अलग पहचान

थराली: बीते कुछ वर्षों में किसानों के पलायन के कारण पहाड़ों पर खेती बर्बादी के कगार पर पहुंच गई है. लेकिन इन सबके बीच चमोली के थराली विकासखंड के किसानों ने जैविक खेती में अलग पहचान बनाई है. थराली के केरा गांव के किसान हर्षपाल रावत अपने भाई के साथ मिलकर बंजर भूमि में जैविक खेती कर रहे हैं. हर्षपाल की मेहनत देखकर गांव के अन्य किसान भी जैविक खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. कोरोना संकट के बीच बड़ी संख्या में प्रवासी वापस उत्तराखंड लौटे हैं, जो पहाड़ों में रहकर स्वरोजगार के जरिए अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं. ऐसे प्रवासियों के लिए केरा गांव के हर्षपाल रावत एक आदर्श साबित हो सकते हैं.

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में उगाई जाने वाली जैविक सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा है. शुरुआती दौर में जैविक सब्जियों की कमाई से उत्साहित हर्षपाल रावत अपने भाइयों के साथ मिलकर अब सब्जियों के उत्पादन को बढ़ा दिया है. पहले हर्षपाल अपने तीन भाइयों के साथ मिलकर 6 नाली भूमि पर सब्जियां उगाते थे, जो अब बढ़कर 30 नाली भूमि हो गया है.

रावत भाइयों ने जैविक खेती में बनाई अलग पहचान.

ये भी पढ़ें: 'ब्लैक गोल्ड' की बढ़ रही 'चमक', जानिए कैसे तय होती हैं तेल की कीमतें

केरा गांव के इन रावत भाइयों ने आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढ़ाते हुए मत्स्य पालन और मुर्गी पालन में भी हाथ आजमाया है. ये तीनों भाई सीजन के हिसाब से टमाटर, फ्रासबीन, शिमला मिर्च सहित दर्जनों जैविक सब्जियां उगाते हैं और उन्हें बाजार तक पहुंचाते हैं.

उन्नत किसान की भूमिका में अग्रसर इन भाइयों का कहना है कि सरकार स्वरोजगार और आत्मनिर्भर भारत की बात तो कर रही है. लेकिन सरकार को किसानों को बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध करानी चाहिए. इसके साथ ही सरकार को छोटी-छोटी जगहों पर मंडियों को भी खोलना चाहिए, ताकि किसानों के उत्पाद को आसानी से बाजार मिल सके.

थराली: बीते कुछ वर्षों में किसानों के पलायन के कारण पहाड़ों पर खेती बर्बादी के कगार पर पहुंच गई है. लेकिन इन सबके बीच चमोली के थराली विकासखंड के किसानों ने जैविक खेती में अलग पहचान बनाई है. थराली के केरा गांव के किसान हर्षपाल रावत अपने भाई के साथ मिलकर बंजर भूमि में जैविक खेती कर रहे हैं. हर्षपाल की मेहनत देखकर गांव के अन्य किसान भी जैविक खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. कोरोना संकट के बीच बड़ी संख्या में प्रवासी वापस उत्तराखंड लौटे हैं, जो पहाड़ों में रहकर स्वरोजगार के जरिए अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं. ऐसे प्रवासियों के लिए केरा गांव के हर्षपाल रावत एक आदर्श साबित हो सकते हैं.

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में उगाई जाने वाली जैविक सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा है. शुरुआती दौर में जैविक सब्जियों की कमाई से उत्साहित हर्षपाल रावत अपने भाइयों के साथ मिलकर अब सब्जियों के उत्पादन को बढ़ा दिया है. पहले हर्षपाल अपने तीन भाइयों के साथ मिलकर 6 नाली भूमि पर सब्जियां उगाते थे, जो अब बढ़कर 30 नाली भूमि हो गया है.

रावत भाइयों ने जैविक खेती में बनाई अलग पहचान.

ये भी पढ़ें: 'ब्लैक गोल्ड' की बढ़ रही 'चमक', जानिए कैसे तय होती हैं तेल की कीमतें

केरा गांव के इन रावत भाइयों ने आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढ़ाते हुए मत्स्य पालन और मुर्गी पालन में भी हाथ आजमाया है. ये तीनों भाई सीजन के हिसाब से टमाटर, फ्रासबीन, शिमला मिर्च सहित दर्जनों जैविक सब्जियां उगाते हैं और उन्हें बाजार तक पहुंचाते हैं.

उन्नत किसान की भूमिका में अग्रसर इन भाइयों का कहना है कि सरकार स्वरोजगार और आत्मनिर्भर भारत की बात तो कर रही है. लेकिन सरकार को किसानों को बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध करानी चाहिए. इसके साथ ही सरकार को छोटी-छोटी जगहों पर मंडियों को भी खोलना चाहिए, ताकि किसानों के उत्पाद को आसानी से बाजार मिल सके.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.