गैरसैंण: प्रदेश की ग्रीष्म कालीन राजधानी के रूप में संवैधानिक स्वीकृति मिलने के बाद गैरसैंण वासियों की उम्मीद जगी थी कि बहुत जल्द गैरसैंण की तस्वीर और तकदीर बदलने वाली है. तत्कालीन राज्यपाल बेबी रानी मौर्य द्वारा 8 जून 2020 को अधिसूचना जारी कर 4 मार्च 2020 को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेद्र रावत द्वारा की गई घोषणा पर मुहर लगाई गई तो प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में कई दिन तक उत्सव का माहौल नजर आया. उम्मीद की जा रही थी कि भराड़ीसैण विधानसभा परिसर में जल्दी ही अवशेष सुविधाओं को जुटाने के लिए काम शुरू हो जाएगा और गैरसैंण को प्रदेश के सभी जनपदों से जोड़ने के लिए प्रस्तावित मोटर सड़कों पर भी कार्य प्रारंभ होगा.
ग्रीष्मकालीन राजधानी में रहता है सन्नाटा: आश्चर्य की बात है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बल्कि समर कैपिटल घोषित होने के बाद से ही परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ है. अलबत्ता 13 मार्च से प्रस्तावित बजट सत्र को लेकर कुछ चहल कदमी नजर आ रही है. सड़क की सफाई शुरू हो गईं है. दिवालीखाल से भराड़ीसैंण के मध्य 2 वर्षों से टूटी बदहाल रोड लाइट ठीक करने का सिलसिला भी जारी है. विधानसभा परिसर के भीतर भी सफाई-पुताई और विधायक आवास सहित मंत्री आवास व मुख्यमंत्री आवास को भी चमकाने का काम शुरू हो गया है.
बजट सत्र की हो रही जोरशोर से तैयारी: माना जा रहा है की एक बार फिर से माननीयों की आव भगत के लिए परिसर तैयार किया जा रहा है, जिसे चार दिन बाद फिर से वर्ष भर के लिए भुला दिया जायेगा. इन चार दिनों में करोड़ों खर्च कर सियासी पर्यटन पर आये तमाम पर्यटक (माननीय) अपने मूल शहर को चल देंगे. रह जायेगा तो बस भराड़ीसैंण का सन्नाटा और हमेशा की तरह परिसर में चरते मवेशी.
गैरसैंण को लेकर होती रही है सियासत: बताते चलें कि गैरसैंण नगर मुख्यालय से 16 किमी दूर भराड़ीसैण में स्थापित विधानसभा परिसर को लेकर प्रारंभ से ही सियासत होती रही है. कांग्रेस, भाजपा व उक्रांद की खींचतान के बावजूद परिसर 95 फीसदी तैयार हो चुका है. यहां 3 बार विधान सभा सत्र भी आयोजित किये जा चुके हैं. हालांकि प्रदेश के अधिसंख्य नेतागणों की पसंद भराड़ीसैण नहीं है. किन्तु जनभावनाओं के दबाव के चलते विधायक, नेता, कार्यकर्ता व ब्यूरोक्रेट का सत्र अवधि में यहां पहुंचना मजबूरी मानी जाती रही है. भराड़ीसैण विधानसभा निर्माण को लेकर जहां कांग्रेस गैरसैंण मुद्दे पर बढ़त बनाने का प्रयास करती रही, किन्तु पूर्व सीएम हरीश रावत ऐन वक्त पर चूक गए. वहीं भाजपा ने 3 वर्ष पूर्व भराड़ीसैण में आयोजित बजट सत्र के दौरान विधानसभा में गैरसैंण को ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाये जाने का प्रस्ताव पारित कर कांग्रेस से मुद्दा हथिया लिया था.
इतिहास के झरोखों में उत्तराखंड का संघर्ष: ज्ञात हो कि 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने लालकिले की प्राचीर से उत्तराखंड राज्य के गठन की घोषणा की थी. जिसके ठीक एक साल बाद 15 अगस्त 1997 को देश के प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने पूर्व पीएम के संकल्प को दोहराया. 3 अगस्त 1998 को भाजपानीत केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल ने राज्य गठन को मंजूरी दी. 7 दिसम्बर 1999 को केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने राज्य विधेयक को मंजूर किया, जिसे 1 अगस्त 2000 को लोकसभा में व 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित किया गया. 28 अगस्त 2000 को राष्ट्रपति ने अधिसूचना जारी कर राज्य गठन का मार्ग प्रशस्त किया और अंततः 9 नवम्बर 2000 को उत्तरांचल प्रदेश आस्तित्व में आया. राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला ने सूबे के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में नित्यानंद स्वामी को शपथ दिलाई.
राजनीतिक से ऊपर नहीं उठ सकी कांग्रेस: एक दशक लम्बी चुप्पी के बाद 14 जनवरी 2013 को तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व सांसद सतपाल महाराज की उपस्थिति में विधानसभा भवन सहित ट्रांज़िट हॉस्टल, मंत्री व विधायक आवास का शिलान्यास कर राजनीतिक बढ़त बनानी चाही. किन्तु कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में सुमार हरीश रावत व इंदिरा हृदयेश का कार्यक्रम में नहीं पहुंचना खूब चर्चाओं में रहा. वहीं तत्कालीन कृषि मंत्री हरक सिंह रावत को प्रस्तावित विधानसभा परिसर में मकड़ी के जाले लगने जैसी टिप्पणी करते सुना गया था.
कार्यक्रम में उपस्थित नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने गैरसैंण को जिला व ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाये जाने की बात कही थी. लम्बी इंतजारी के बाद अंततः गैरसैंण राजधानी पर स्थिति स्पष्ट हो सकी, जिसका प्रदेश भर में स्वागत भी किया गया था. तय माना जा रहा था कि गैरसैंण के त्वरित विकास के लिए जल्दी ही गैरसैंण तहसील को उच्चीकृत कर जिला का दर्जा दे कर जिम्मेदार उच्चाधिकारियों की तैनाती की व्यवस्था की जायेगी, ताकि गैरसैंण के विकास का खाका तैयार हो सके. किन्तु गैरसैण आज भी वहीं है जहां वर्षों पहले था.
बजट सत्र को लेकर राज्य आंदोलनकारियों का बयान: वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी सुरेश कुमार बिष्ट कहते हैं कि जब सरकार ने इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया है तो फिर इस प्रकार से 4 दिन का सत्र चलाने का क्या औचित्य है. सरकार को चाहिये कि पूरी सरकार गैरसैंण (भराड़ीसैण) में बैठे. उसके बाद वो जो भी सत्र करना चाहें वो करें. सुरेश कुमार बिष्ट ने कहा कि नेताओं को इस प्रकार की पिकनिक पद्धति को छोड़कर उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए अपनी शहादत देने वाले उन राज्य आंदोलनकारियों की भावनाओं के अनुरूप गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित कर देना चाहिए, जिससे इस फिजूल खर्ची से भी बचा जा सके. बिष्ट ने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों, पहाड़वासियों व गैरसैंण के साथ राज्य सरकार इस प्रकार का छलावा बंद करे व जनभावनाओं के अनुरूप गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने का निर्णय ले.
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राज्य आंदोलनकारी हरेंद्र कंडारी ने 13 से 18 मार्च तक गैरसैंण (भराड़ीसैण) में चलने वाले बजट सत्र को लेकर कहा कि गैरसैंण को लेकर सरकार को ठोस नीति बनाई जाने की आवश्यकता है. उन्नेहों कहा कि गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी घोषित किया जाये व इस चार दिवसीय सैर सपाटे को बंद कर देना चाहिये.