चमोली: बदरीनाथ धाम में पितृ विसर्जन के अवसर पर श्रद्धालुओं की खासी भीड़ रही. सुबह 11:00 बजे तक 400 श्रद्धालुओं ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन किये. वहीं, शाम तक ये आंकड़ा बढ़ने की उम्मीद है. इस वर्ष कोरोना के चलते पहली बार आस्था पथ पर श्रद्धालुओं की पंक्ति देखने को मिली. कपाट खुलने से बीते दिनों की तुलना आज अधिक श्रदालु धाम में मौजूद रहे. भारी तादाद को देखते हुए पुलिस द्वारा श्रदालुओं को सोशल-डिस्टेंसिंग का पालन कराया गया. मंदिर परिसर में ही स्थित ब्रह्म कपाल में श्रदालुओं ने पित्र विसर्जन के अवसर पर अपने पित्रों का पिंडदान व तर्पण करवाया.
इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते पित्र पक्ष में कई लोग पिंडदान करने नहीं पहुंच पाए थे. आज पित्र विसर्जन के मौके पर बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल पहुंचकर लगभग 300 श्रद्धालुओं ने अपने पित्रों का तर्पण और पिंडदान करवाया. वहीं, बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने सीमा पर शहीद हुए जवानों एवं कोरोना संक्रमण से दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए भी पिंडदान किया. मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में पिंडादान करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है. ब्रह्म कपाल में पिंडादान करने के बाद किसी दूसरे पित्र स्थल पर पिंडादान करने की आवश्यकता नहीं होती है.
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भू बैकुण्ठ कहे जाने वाले बदरीनाथ धाम को ही सर्वोच्च पित्र मोक्ष धाम कहा गया है. शास्त्रों के मुताबिक, यह वही स्थान है जहां पर स्वयं शिव ने पिंडदान कर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाई थी. आज भी स्थान स्थान पर ब्रह्म कपाल एक शिला के रूप में मौजूद है. वैसे तो देश में पिंडदान के लिए अनेकों तीर्थ हैं. लेकिन देव भूमि उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित ब्रह्म कपाल तीर्थ का अपना अलग ही महत्व है. बदरीनाथ धाम के कपाट छह माह के लिए खुले रहते हैं.
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ऐसे में ब्रह्मकपाल में भी तर्पण व पिंडदान छह माह निरंतर होता है. श्राद्ध पक्ष में तर्पण का विशेष महत्व है, ब्रह्मकपाल पर शिव द्वारा किए गए तर्पण स्थल में आज भी एक पौराणिक सिला मौजूद है. जिस पर ब्रह्मा जी के अनेकों सिरों की प्रतिमा देखी जा सकती है. इसीलिए लोग देश और विदेशों से अपने पितरों व प्रेत आत्माओं की मुक्ति के लिए यहां आकर तर्पण करने आते हैं.