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आश्चर्य: 14000 फीट, जहां परिंदे भी नहीं पहुंच पाते वहां कौन करता है धान की खेती? - Chamoli News

उच्च हिमालयी क्षेत्र में जहां एक ओर धान की खेती करना काफी मुश्किल माना जाता था, वहीं जोशीमठ विकासखंड के 14000 फीट के उच्च हिमालयी क्षेत्र में धान की खेती लहलहा रही है. जो लोगों के लिए आश्चर्य बना हुआ है. जहां परिंदे भी आसानी से नहीं पहुंच सकते, वहां धान के खेती कैसे मुमकिन है?

14000 फीट पर लहलहा रही धान की खेती.
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Published : Sep 17, 2019, 2:55 PM IST

Updated : Sep 18, 2019, 7:17 AM IST

चमोली: आज के इस वैज्ञानिक युग में भी देवभूमि उत्तराखंड इन उच्च हिमालयी क्षेत्र में कई पौराणिक,धार्मिक और आध्यात्मिक रहस्य समेटे हुए है. जो विज्ञान को भी हैरत में डाल देता है. आज हम आपको ऐसी जगह से रूबरू कराने जा रहे हैं जो उच्च हिमालयी क्षेत्र में कई रहस्य समटे हुए हैं. जहां परिंदे भी आसानी से नहीं पहुंच पाते वहां धान की खेती लहलहा रही है. सुनने में जरा अजीब लग रहा लेकिन ये हकीकत है. जिसे स्थानीय लोग देवताओं की खेती मानते हैं.

आश्चर्य: 14000 फीट, जहां परिंदे भी नहीं पहुंच पाते वहां कौन करता है धान की खेती?

उच्च हिमालयी क्षेत्र में जहां एक ओर धान की खेती करना काफी मुश्किल माना जाता है वहीं जोशीमठ विकासखंड के 14000 फीट के उच्च हिमालयी क्षेत्र में धान की खेती लहलहा रही है. जो लोगों के लिए आश्चर्य बना हुआ है. जहां परिंदे भी आसानी से नहीं पहुंच सकते, वहां धान की खेती कैसे मुमकिन है? जिसके बारे में सुनते ही लोगों की जिज्ञासा जाग रही है. ड्याली सेरा 5 महीने पूरी तरह बर्फ से ढका रहता है, बावजूद इसके यहां सितंबर महीने में धान की पकी हुई बालियां देखने को मिल रही हैं.


कई रहस्यों के समेटे है ये क्षेत्र

गौर हो कि चमोली जनपद के उच्च हिमालयी क्षेत्र जोशीमठ विकासखंड स्थित अल्पाइन जॉन क्वारी पास के ठीक सामने है. ड्याली सेरा कई पौराणिक कहानियों को अपने आप में समेटे हुए है. जहां बर्फ पिघलने के बाद धान की रोपाई भी की जाती है. जिसके बारे में अभी तक कम ही लोगों को पता है. इन दिनों बरसात कम होने के बाद सैलानी ड्याली सेरा पहुंच रहे हैं. इतनी ऊंचाई में धान के खेतों में लहलहाती फसल को देखकर सैलानी भी हैरत में पड़ जाते हैं. वहीं स्थानीय लोग ड्याली सेरा को देवताओं के खेत भी कहते हैं.

पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ड्याली सेरा में देवताओं के छोटे-छोटे धान के खेत हैं, जिनकी देखरेख आज भी वन देवियां करती हैं. जिन्हें स्थानीय लोग परियां या एड़ी- आंचरिया भी कहते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि ड्याली सेरा नाम की इस जगह पर वन देवियों का ही साम्राज्य चलता है.

वन देवियों का चलता है साम्राज्य

कहते है आज भी वन देवियां यहां धान की फसल बोने और काटने आती हैं. स्थानीय लोग यह भी मानते हैं कि यह दैवीय खेती है. उनका कहना है कि भले ड्याली सेरा में इंसान खेती नहीं करता लेकिन यहां की गतिविधियों से लगता है कि कोई न कोई अदृश्य ताकत यहां पर खेती करती है. यही नहीं, यहां मौजूद धान के खेतों के लिए सिंचाई के लिए अदृश्य रूप से पानी भी देवांगन टॉप से पहुंचता है. अधिक ऊंचाई और चढ़ाई होने की वजह के कारण इन रहस्यमयी धान के खेतों को देखने कम ही लोग ड्याली सेरा पहुंच पाते हैं. यहीं पर हनुमान ताल भी मौजूद है और इसी रास्ते पर्वतारोही प्रसिद्ध चूला पीक पहुंचते हैं.

चमोली: आज के इस वैज्ञानिक युग में भी देवभूमि उत्तराखंड इन उच्च हिमालयी क्षेत्र में कई पौराणिक,धार्मिक और आध्यात्मिक रहस्य समेटे हुए है. जो विज्ञान को भी हैरत में डाल देता है. आज हम आपको ऐसी जगह से रूबरू कराने जा रहे हैं जो उच्च हिमालयी क्षेत्र में कई रहस्य समटे हुए हैं. जहां परिंदे भी आसानी से नहीं पहुंच पाते वहां धान की खेती लहलहा रही है. सुनने में जरा अजीब लग रहा लेकिन ये हकीकत है. जिसे स्थानीय लोग देवताओं की खेती मानते हैं.

आश्चर्य: 14000 फीट, जहां परिंदे भी नहीं पहुंच पाते वहां कौन करता है धान की खेती?

उच्च हिमालयी क्षेत्र में जहां एक ओर धान की खेती करना काफी मुश्किल माना जाता है वहीं जोशीमठ विकासखंड के 14000 फीट के उच्च हिमालयी क्षेत्र में धान की खेती लहलहा रही है. जो लोगों के लिए आश्चर्य बना हुआ है. जहां परिंदे भी आसानी से नहीं पहुंच सकते, वहां धान की खेती कैसे मुमकिन है? जिसके बारे में सुनते ही लोगों की जिज्ञासा जाग रही है. ड्याली सेरा 5 महीने पूरी तरह बर्फ से ढका रहता है, बावजूद इसके यहां सितंबर महीने में धान की पकी हुई बालियां देखने को मिल रही हैं.


कई रहस्यों के समेटे है ये क्षेत्र

गौर हो कि चमोली जनपद के उच्च हिमालयी क्षेत्र जोशीमठ विकासखंड स्थित अल्पाइन जॉन क्वारी पास के ठीक सामने है. ड्याली सेरा कई पौराणिक कहानियों को अपने आप में समेटे हुए है. जहां बर्फ पिघलने के बाद धान की रोपाई भी की जाती है. जिसके बारे में अभी तक कम ही लोगों को पता है. इन दिनों बरसात कम होने के बाद सैलानी ड्याली सेरा पहुंच रहे हैं. इतनी ऊंचाई में धान के खेतों में लहलहाती फसल को देखकर सैलानी भी हैरत में पड़ जाते हैं. वहीं स्थानीय लोग ड्याली सेरा को देवताओं के खेत भी कहते हैं.

पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ड्याली सेरा में देवताओं के छोटे-छोटे धान के खेत हैं, जिनकी देखरेख आज भी वन देवियां करती हैं. जिन्हें स्थानीय लोग परियां या एड़ी- आंचरिया भी कहते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि ड्याली सेरा नाम की इस जगह पर वन देवियों का ही साम्राज्य चलता है.

वन देवियों का चलता है साम्राज्य

कहते है आज भी वन देवियां यहां धान की फसल बोने और काटने आती हैं. स्थानीय लोग यह भी मानते हैं कि यह दैवीय खेती है. उनका कहना है कि भले ड्याली सेरा में इंसान खेती नहीं करता लेकिन यहां की गतिविधियों से लगता है कि कोई न कोई अदृश्य ताकत यहां पर खेती करती है. यही नहीं, यहां मौजूद धान के खेतों के लिए सिंचाई के लिए अदृश्य रूप से पानी भी देवांगन टॉप से पहुंचता है. अधिक ऊंचाई और चढ़ाई होने की वजह के कारण इन रहस्यमयी धान के खेतों को देखने कम ही लोग ड्याली सेरा पहुंच पाते हैं. यहीं पर हनुमान ताल भी मौजूद है और इसी रास्ते पर्वतारोही प्रसिद्ध चूला पीक पहुंचते हैं.

Intro:चमोली के जोशीमठ विकासखंड में समुद्र तल से 14000 फिट की ऊंचाई पर उच्च हिमालयी क्षेत्रो में धान की खेती होना अपने आप मे आश्चर्य की बात है।जंहा परिंदे भी नही पहुंच सकते वहां धान के खेतो का होना अपने आप मे अद्भुत भी है।यह स्थान जो कि 5 माह पूरी तरह बर्फ से ढका रहता है,वाबजूद इसके यंहा पर सितम्बर माह में यंहा खेतो में धान की पकी हुई बालियां देखने को मिलती है।स्थानीय लोग इस जगह को डयाली सेरा के नाम से भी जानते है।

बाईट विस्वल मेल से भेजे है।


Body:चमोली जनपद के उच्च हिमालयी क्षेत्र जोशीमठ विकासखंड स्थित अल्पाइन जॉन क्वारी पास के ठीक सामने है ,कई पौराणिक रहस्यों को समेटे हुए है पवित्र ड्याली सेरा।जंहा पर क़ि बर्फ पिघलने के बाद रहस्यमयी तरीके से रोपाई भी की जाती है।जिसका कि आम आदमी को भी पता नही चलता।इन दिनों बरसात कम होने के बाद ट्रैकर ड्याली सेरा पहुंच रहे है,और इतनी ऊंचाई में धान के खेतों में लहराती फसल को देख कर हर कोई यंहा पहुंचने वाला हैरत में पड़ जाता है।स्थानीय लोग ड्याली ज़रा को देवताओं के खेत भी कहते हैं।


Conclusion:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार व स्थानीय लोगो की माने तो ड्याली सेरा में देवताओं के छोटे छोटे धान के खेत है।जिनकी देखरेख आज भी वन देवियां करती है।जिन्हें स्थानीय लोग परियां या (एड़ी -आँछरिया) भी कहते हैं।ड्याली सेरा नाम की इस जगह पर वन देवियों का ही साम्राज्य चलता है।

कहते है आज भी वन दैवीयाँ यंहा धान की फसल बोने और काटने आती है।स्थानीय लोग यह भी मानते है कि यह दैवीय खेती है,उनका कहना है कि भले ड्याली सेरा में इंसान खेती नही करता लेकिन यंहा की गतिविधियों से लगता है कि कोई न कोई अदृश्य ताकत यंहा पर खेती करती है।यही नही यंहा मौजूद धान के खेतों के लिए सिंचाई के लिए अदृश्य रूप से पानी भी देवांगन टॉप से पहुँचता है।अधिक ऊंचाई और चढाई होने की वजह के कारण इन रहस्यमयी धान के खेतों को देखने कम लोग ही ड्याली सेरा पहुंच पाते है।

आज के इस वैज्ञानिक युग मे भी देवभूमि उत्तराखंड इन उच्च हिमालयी क्षेत्रो में कई पौराणिक,धार्मिक,और आध्यात्मिक रहस्य समेटे हुए है।जो किसी कौतहुल के विषय से कम नही है।यंही पर हनुमान ताल भी मौजूद है और इसी रास्ते माउंटीनिंग का शौक़ रखने वाले पर्वतारोही प्रशिद्ध चूला पीक भी पहुंचते है।

बाईट-प्रकाश रावत-स्थानीय

बाईट-संजय कपरुवाण-धार्मिक जानकार।।
Last Updated : Sep 18, 2019, 7:17 AM IST
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