चमोली: राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड को स्थायी राजधानी नहीं मिल पाई है. जिसके लिए समय-समय पर प्रदेश में सियासत गरमाती रहती है. उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों का सपना था कि पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही बनें ,लेकिन प्रदेश की सत्ता पर बारी- बारी से काबिज सरकारों ने आंदोलनकारियों के मंसूबों को धत्ता बताकर उनके मांग को कोई महत्व नहीं दिया.
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का क्रेडिट लेने वाली प्रदेश की एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल भी भाजपा सरकार में रहते हुए इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जिसके फलस्वरूप आज भी गैरसैंण के भराड़ीसैंण में करोड़ों की लागत से निर्मित विधानसभा भवन नेताओं के पहाड़ चढ़ने का इंतजार कर रहा है. बता दें कि वर्ष 2009 में तत्कालीन सांसद सतपाल महाराज ने संसद में गैरसैंण राजधानी के मुद्दे को उठाया था.
जिसके बाद तत्कालीन केंद्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार ने 88 करोड़ रुपये की धनराशि गैरसैंण में विधानसभा भवन निर्माण के लिए स्वीकृत की थी. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद 9 मई 2012 को विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज ने गोपेश्वर और गैरसैंण पहुंचकर आगामी कैबिनेट बैठक गैरसैंण में करने की घोषणा की थी. लेकिन उस समय टिहरी जनपद में आचार संहिता लागू होने की वजह से 3 नवंबर 2012 को गैरसैंण के ब्लॉक सभागार में कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई.
जिसमें कि सीएम बहुगुणा की कैबिनेट के द्वारा गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन बनाने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया. साथ ही गैरसैंण में स्थित जमीनों की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी थी, जो कि आज भी जारी है. 14 जनवरी 2013 को विजय बहुगुणा ने प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन का शिलान्यास भी किया. जिसके बाद से भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन का निर्माण कार्य एनबीसीसी कंपनी के द्वारा शुरू किया गया.
यूं तो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी गैरसैंण को लेकर काफी लगाव दिखाते रहे, सीएम रहते हुए उनके द्वारा भी अपने कार्यकाल के दौरान 9 से 11 जून 2014 में गैरसैंण स्थित रामलीला ग्राउंड में तंबुओं के अंदर विधानसभा सत्र आयोजित किया गया. जबकि, दूसरा और तीसरा विधानसभा सत्र भी हरीश रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए गैरसैंण पॉलीटेक्निक और भराड़ीसैंण में निर्माणाधीन विधानसभा भवन में करवाया गया था. लेकिन वह भी गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने से चूक गए.
साल 2017 में प्रदेश में भारी बहुमत से जीत कर भाजपा की सरकार आई डोईवाला विधानसभा से जीतकर आये त्रिवेंद्र सिंह रावत को हाईकमान के फैसले से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. प्रदेश में बनी नई भाजपा सरकार भी गैरसैंण के राग को भुला नहीं पाई और सूबे की त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा भी 2018 में 20 मार्च से 26 मार्च तक गैरसैंण में सरकार का बजट सत्र आयोजित किया गया. लेकिन सरकार के द्वारा गैरसैंण राजधानी को लेकर कोई ठोस घोषणा नहीं की गई.
त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा गैरसैंण के भराड़ीसैंण में बजट सत्र करने के बाद फिर कभी गैरसैंण का रुख नहीं किया. बीजेपी नेता अजय भट्ट ने गैरसैंण में सत्र के आयोजन को लेकर यहां तक कह डाला कि पानी की दिक्कत के कारण वहां सत्र आयोजित करवाना संभव नहीं है और गैरसैंण में सत्र करवाना सरकारी धन की फिजूलखर्ची है.
अब सरकार गढ़वाल क्षेत्र की कमिश्नरी कहे जाने वाले पौड़ी में कैबिनेट मीटिंग ये कहकर करवा रही है कि इससे जनपद के विकास के लिए नई योजनाएं बनेगी. सरकारों के वादों से गैरसैंण का विकास तो आज तक नहीं हो पाया, अब पौड़ी कैबिनेट से यहां का कितना विकास होगा. ये बात तो भविष्य के गर्त में है और पूरे प्रदेश की निगाहें पौड़ी पर.