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कैबिनेट में स्थायी राजधानी के मुद्दे पर जमी धूल, गैरसैंण को माननीय गए भूल

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Published : Jun 29, 2019, 4:16 PM IST

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का क्रेडिट लेने वाली प्रदेश की एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल भी भाजपा सरकार में रहते हुए इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जिसके फलस्वरूप आज भी गैरसैंण के भराड़ीसैंण में करोड़ों की लागत से निर्मित विधानसभा भवन नेताओं के पहाड़ चढ़ने का इंतजार कर रहा है.

कैबिनेट में स्थायी राजधानी के मुद्दे पर जमी धूल.

चमोली: राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड को स्थायी राजधानी नहीं मिल पाई है. जिसके लिए समय-समय पर प्रदेश में सियासत गरमाती रहती है. उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों का सपना था कि पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही बनें ,लेकिन प्रदेश की सत्ता पर बारी- बारी से काबिज सरकारों ने आंदोलनकारियों के मंसूबों को धत्ता बताकर उनके मांग को कोई महत्व नहीं दिया.

कैबिनेट में स्थायी राजधानी के मुद्दे पर जमी धूल.

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का क्रेडिट लेने वाली प्रदेश की एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल भी भाजपा सरकार में रहते हुए इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जिसके फलस्वरूप आज भी गैरसैंण के भराड़ीसैंण में करोड़ों की लागत से निर्मित विधानसभा भवन नेताओं के पहाड़ चढ़ने का इंतजार कर रहा है. बता दें कि वर्ष 2009 में तत्कालीन सांसद सतपाल महाराज ने संसद में गैरसैंण राजधानी के मुद्दे को उठाया था.

जिसके बाद तत्कालीन केंद्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार ने 88 करोड़ रुपये की धनराशि गैरसैंण में विधानसभा भवन निर्माण के लिए स्वीकृत की थी. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद 9 मई 2012 को विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज ने गोपेश्वर और गैरसैंण पहुंचकर आगामी कैबिनेट बैठक गैरसैंण में करने की घोषणा की थी. लेकिन उस समय टिहरी जनपद में आचार संहिता लागू होने की वजह से 3 नवंबर 2012 को गैरसैंण के ब्लॉक सभागार में कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई.

जिसमें कि सीएम बहुगुणा की कैबिनेट के द्वारा गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन बनाने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया. साथ ही गैरसैंण में स्थित जमीनों की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी थी, जो कि आज भी जारी है. 14 जनवरी 2013 को विजय बहुगुणा ने प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन का शिलान्यास भी किया. जिसके बाद से भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन का निर्माण कार्य एनबीसीसी कंपनी के द्वारा शुरू किया गया.

यूं तो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी गैरसैंण को लेकर काफी लगाव दिखाते रहे, सीएम रहते हुए उनके द्वारा भी अपने कार्यकाल के दौरान 9 से 11 जून 2014 में गैरसैंण स्थित रामलीला ग्राउंड में तंबुओं के अंदर विधानसभा सत्र आयोजित किया गया. जबकि, दूसरा और तीसरा विधानसभा सत्र भी हरीश रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए गैरसैंण पॉलीटेक्निक और भराड़ीसैंण में निर्माणाधीन विधानसभा भवन में करवाया गया था. लेकिन वह भी गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने से चूक गए.

साल 2017 में प्रदेश में भारी बहुमत से जीत कर भाजपा की सरकार आई डोईवाला विधानसभा से जीतकर आये त्रिवेंद्र सिंह रावत को हाईकमान के फैसले से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. प्रदेश में बनी नई भाजपा सरकार भी गैरसैंण के राग को भुला नहीं पाई और सूबे की त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा भी 2018 में 20 मार्च से 26 मार्च तक गैरसैंण में सरकार का बजट सत्र आयोजित किया गया. लेकिन सरकार के द्वारा गैरसैंण राजधानी को लेकर कोई ठोस घोषणा नहीं की गई.

त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा गैरसैंण के भराड़ीसैंण में बजट सत्र करने के बाद फिर कभी गैरसैंण का रुख नहीं किया. बीजेपी नेता अजय भट्ट ने गैरसैंण में सत्र के आयोजन को लेकर यहां तक कह डाला कि पानी की दिक्कत के कारण वहां सत्र आयोजित करवाना संभव नहीं है और गैरसैंण में सत्र करवाना सरकारी धन की फिजूलखर्ची है.

अब सरकार गढ़वाल क्षेत्र की कमिश्नरी कहे जाने वाले पौड़ी में कैबिनेट मीटिंग ये कहकर करवा रही है कि इससे जनपद के विकास के लिए नई योजनाएं बनेगी. सरकारों के वादों से गैरसैंण का विकास तो आज तक नहीं हो पाया, अब पौड़ी कैबिनेट से यहां का कितना विकास होगा. ये बात तो भविष्य के गर्त में है और पूरे प्रदेश की निगाहें पौड़ी पर.

चमोली: राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड को स्थायी राजधानी नहीं मिल पाई है. जिसके लिए समय-समय पर प्रदेश में सियासत गरमाती रहती है. उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों का सपना था कि पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही बनें ,लेकिन प्रदेश की सत्ता पर बारी- बारी से काबिज सरकारों ने आंदोलनकारियों के मंसूबों को धत्ता बताकर उनके मांग को कोई महत्व नहीं दिया.

कैबिनेट में स्थायी राजधानी के मुद्दे पर जमी धूल.

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का क्रेडिट लेने वाली प्रदेश की एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल भी भाजपा सरकार में रहते हुए इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जिसके फलस्वरूप आज भी गैरसैंण के भराड़ीसैंण में करोड़ों की लागत से निर्मित विधानसभा भवन नेताओं के पहाड़ चढ़ने का इंतजार कर रहा है. बता दें कि वर्ष 2009 में तत्कालीन सांसद सतपाल महाराज ने संसद में गैरसैंण राजधानी के मुद्दे को उठाया था.

जिसके बाद तत्कालीन केंद्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार ने 88 करोड़ रुपये की धनराशि गैरसैंण में विधानसभा भवन निर्माण के लिए स्वीकृत की थी. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद 9 मई 2012 को विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज ने गोपेश्वर और गैरसैंण पहुंचकर आगामी कैबिनेट बैठक गैरसैंण में करने की घोषणा की थी. लेकिन उस समय टिहरी जनपद में आचार संहिता लागू होने की वजह से 3 नवंबर 2012 को गैरसैंण के ब्लॉक सभागार में कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई.

जिसमें कि सीएम बहुगुणा की कैबिनेट के द्वारा गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन बनाने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया. साथ ही गैरसैंण में स्थित जमीनों की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी थी, जो कि आज भी जारी है. 14 जनवरी 2013 को विजय बहुगुणा ने प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन का शिलान्यास भी किया. जिसके बाद से भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन का निर्माण कार्य एनबीसीसी कंपनी के द्वारा शुरू किया गया.

यूं तो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी गैरसैंण को लेकर काफी लगाव दिखाते रहे, सीएम रहते हुए उनके द्वारा भी अपने कार्यकाल के दौरान 9 से 11 जून 2014 में गैरसैंण स्थित रामलीला ग्राउंड में तंबुओं के अंदर विधानसभा सत्र आयोजित किया गया. जबकि, दूसरा और तीसरा विधानसभा सत्र भी हरीश रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए गैरसैंण पॉलीटेक्निक और भराड़ीसैंण में निर्माणाधीन विधानसभा भवन में करवाया गया था. लेकिन वह भी गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने से चूक गए.

साल 2017 में प्रदेश में भारी बहुमत से जीत कर भाजपा की सरकार आई डोईवाला विधानसभा से जीतकर आये त्रिवेंद्र सिंह रावत को हाईकमान के फैसले से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. प्रदेश में बनी नई भाजपा सरकार भी गैरसैंण के राग को भुला नहीं पाई और सूबे की त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा भी 2018 में 20 मार्च से 26 मार्च तक गैरसैंण में सरकार का बजट सत्र आयोजित किया गया. लेकिन सरकार के द्वारा गैरसैंण राजधानी को लेकर कोई ठोस घोषणा नहीं की गई.

त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा गैरसैंण के भराड़ीसैंण में बजट सत्र करने के बाद फिर कभी गैरसैंण का रुख नहीं किया. बीजेपी नेता अजय भट्ट ने गैरसैंण में सत्र के आयोजन को लेकर यहां तक कह डाला कि पानी की दिक्कत के कारण वहां सत्र आयोजित करवाना संभव नहीं है और गैरसैंण में सत्र करवाना सरकारी धन की फिजूलखर्ची है.

अब सरकार गढ़वाल क्षेत्र की कमिश्नरी कहे जाने वाले पौड़ी में कैबिनेट मीटिंग ये कहकर करवा रही है कि इससे जनपद के विकास के लिए नई योजनाएं बनेगी. सरकारों के वादों से गैरसैंण का विकास तो आज तक नहीं हो पाया, अब पौड़ी कैबिनेट से यहां का कितना विकास होगा. ये बात तो भविष्य के गर्त में है और पूरे प्रदेश की निगाहें पौड़ी पर.

Intro:उत्तराखंड को उत्तरप्रदेश से पृथक राज्य बने 17 वर्ष हो चुके है,लेकिन आज तक उत्तराखण्ड को अपनी स्थाई राजधानी नही मिल पाई है।उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों का सपना था कि पहाडी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही बने ,लेकिन प्रदेश की सत्ता पर बारी बारी से काबिज सरकारों ने आंदोलनकारियों के मंसूबों को धत्ता बता कर राजधानी देहरादून में ही स्थाफ़ित कर दी।उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का क्रेडिट लेने वाली प्रदेश की एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल ने भी पूर्व में प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा सरकार का हिस्सा रहते हुए गैरसैण राजधानी बनवाने को लेकर कोई दिलचस्पी नही दिखाई।जिसके फलस्वरूप आज भी गैरसैण के भराड़ीसैण में करोड़ो की लागत से निर्मित विधानसभा भवन नेताओ के पहाड़ चढ़ने का इंतजार कर रहा है। विस्वल मेल से भेजे है।


Body:बता दे कि वर्ष 2009 में तत्कालीन सांसद सतपाल महाराज ने संसद में गैरसैण राजधानी के मुद्दे को उठाया था,जिसके बाद तत्कालीन केंद्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार ने 88 करोड़ रुपये की धनराशि गैरसैण में विधानसभा भवन निर्माण के लिए स्वीकृत की थी।प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद 9 मई 2012 को विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज ने गोपेश्वर और गैरसैण पहुंचकर आगामी कैबिनेट बैठक गैरसैण में करने की घोषणा की थी ।लेकिन उस दौरान टिहरी जनपद में आचार संहिता लागू होने की वजह से 3 नवंबर 2012 को गैरसैण के ब्लॉक सभागार में कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई ,जिसमे कि सीएम बहगुणा की कैबिनेट के द्वारा गैरसैण के भराड़ीसैण में विधानसभा भवन बनाने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया।साथ ही गैरसैण में स्थित जमीनों की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी गई।जो कि आज भी जारी है। वर्ष 14 जनवरी 2013 को विजय बहुगुणा ने प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए गैरसैण के भराड़ीसैण में विधानसभा भवन का शिलान्यास भी किया ।जिसके बाद से भराड़ीसैण में विधानसभा भवन का निर्माण कार्य एनबीसीसी कंपनी के द्वारा शुरू किया गया।


Conclusion:यू तो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी गैरसैंण को लेकर काफी लगाव था,सीएम रहते हुए उनके द्वारा भी अपने कार्यकाल के दौरान 9 से 11 जून 2014 में गैरसैण स्थित रामलीला ग्राउंड में तंबुओं के अंदर विधानसभा सत्र आयोजित किया गया।जबकि दूसरा और तीसरा विधानसभा सत्र भी हरीश रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए गैरसैण पालीटेक्निक और भराड़ीसैंण में निर्माणाधीन विधानसभा भवन के अंदर करवाया था।लेकिन वह भी गैरसैण को स्थाई राजधानी घोषित करने से चूक गए। वर्ष 2017 में प्रदेश में भारी बहुमत से जीत कर भाजपा की सरकार आई डोईवाला विधानसभा से जीतकर आये त्रिवेंद्र सिंह रावत को हाईकमान के फैसले से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया।प्रदेश में बनी नई भाजपा सरकार भी गैरसैण के राग को भुला नही पाई ,त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा भी 2018 में 20 मार्च से 26 मार्च तक गैरसैण में सरकार का बजट सत्र आयोजित किया गया।लेकिन सरकार के द्वारा गैरसैण राजधानी को लेकर कोई ठोस कदम नही उठाया गया। त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा गैरसैण के भराड़ीसैण में बजट सत्र निबटाने के बाद सरकार ने दूसरी बार गैरसैण का रुख नही किया,भाजपा प्रदेश अध्य्क्ष अजय भट्ट ने गैरसैण में सत्र के आयोजन को लेकर यंहा तक कह डाला कि पानी की दिक्कत के कारण वँहा पर सत्र आयोजित करवाना संभव नही हैं।और गैरसैण में सत्र करवाना सरकारी धन की फिजूलखर्ची है। अब सरकार गढ़वाल क्षेत्र की कमिश्नरी कहे जाने वाले पौड़ी में विधानसभा सत्र यह कहकर करवाने जा रही हैं कि पौड़ी में सत्र आयोजित होने से पौड़ी के विकास के लिए नई योजनाएं बनेगी।प्रदेश सरकार के इस कथन से फिर एक बाद गैरसैण गैर क्यो का नारा बुलंद होता है।क्योंकि सरकारों के वादों से गैरसैण का विकास तो आज तक नही हो पाया,अब पौड़ी में सत्र आयोजित होने से पौड़ी का कितना विकास होगा,पूरे प्रदेश की निगाहें अब पौड़ी पर है।
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