चमोली/श्रीनगरः हिंदू पंचांग में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है. इसी दिन पितृपक्ष का समापन होता है. पितृ अमावस्या के मौके पर बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल में सुबह से ही पिंडदान-तर्पण करने वाले तीर्थ यात्रियों की भीड़ लगी रही. माना जाता है कि यहां पिंडदान और तर्पण करने से विशेष फल मिला है. उधर, देवप्रयाग में अलकनंदा-भागीरथी संगम पर पितृ विसर्जन अमावस्या पर श्राद्ध-तर्पण कर पितरों को विदाई दी गई.
गौर हो कि नैनतीला हाईकोर्ट की ओर से चारधाम यात्रा में ई-पास की बाध्यता समाप्त किए जाने के बाद श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा होना शुरू हो गया है. बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल में भी सुबह ही स्थानीय तीर्थ पुरोहितों की ओर से हवन किया. जिसके बाद पिंडदान करवाने की प्रक्रिया शुरू करवाई गई. वहीं, बदरीनाथ धाम में दर्शनों की बात करें तो सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई है. जबकि, बदरी नारायण के दर्शन के बाद सभी तीर्थयात्री ब्रह्मकपाल में पिंडदान भी कर रहे हैं.
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ब्रह्मकपाल में पिंडदान और तर्पण से मिलता है विशेष फलः बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल में पिंडदान और तर्पण करने का विशेष महत्व माना जाता है. जो भी यहां पिंडदान करने के लिए पहुंचता है, उसे 8 गुणा ज्यादा फल मिलता है. माना जाता है कि यहां पर पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां पर पितरों को पिंडदान और तर्पण करने के बाद फिर कहीं पिंडदान और तर्पण नहीं करना पड़ता है. साथ ही उनके पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
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अलकनंदा-भागीरथी संगम पर तर्पणः देवप्रयाग में भी अलकनंदा-भागीरथी संगम पर तीर्थ यात्रियों सहित स्थानीय श्रद्धालुओं ने पितरों का स्मरण कर उन्हें गंगाजल अर्पित किया. साथ ही उनका पूजन भी किया. जिन पितरों के देहांत की तिथि ज्ञात नहीं होती, उन्हें पितृ अमावास्या पर तर्पण दिया जाता है. इस तिथि पर पितरों के निमित दिया गया दान सर्वाधिक फलदायी माना जाता है. इसी वजह से श्रद्धालुओं की ओर से ब्राह्मणों को संगम स्थल पर दान दक्षिणा दी गई. पितरों की शांति व आशीर्वाद के लिए पूरे दिन संगम स्थल पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा.