देहरादून: केदारनाथ में आपदा की मुख्य वजह मानी जाने वाली चोराबाड़ी झील के दोबारा पुर्नजीवित होने के दावे को वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने खतरे से बाहर बताया है. ग्लेशियर के बीच बने झील का निरीक्षण कर वापस पहुंचे वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह झील केदार घाटी से 5 किलोमीटर ऊपर बनी है. साथ ही कहा कि अगर झील 6 महीने या एक साल के बाद टूट भी जाती है तो कोई खतरे वाली बात नहीं है.
बता दें कि 16 जून को डॉक्टरों की टीम ने राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था. इस दौरान डॉक्टरों ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर ग्लेशियर में बने एक झील को चोराबाड़ी झील होने का दावा किया था. जिसको 250 मीटर लंबा और 150 मीटर चौड़ा बताया गया. जिसके बाद वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने झील का निरीक्षण किया.
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वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कहा कि ग्लेशियर के बीच में छोटे-छोटे झील बन गए हैं. लेकिन इससे खतरे वाली कोई बात नहीं है. जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो वहां का पानी इकट्ठा हो जाता है और वह छोटे-छोटे झील के रूप में तब्दील हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि चोराबाड़ी झील 2013 में आई आपदा के बाद नष्ट हो गई थी.
डीपी डोभाल ने बताया कि यह झील केदार घाटी से 5 किलोमीटर ऊपर बनी है. जोकि 30 फीट लंबा, 15 फीट चौड़ा और करीब 5 से 7 फीट गहरा है. साथ ही कहा कि अगर यह झील 6 महीने या एक साल के बाद टूट भी जाती है तो इससे कोई खतरा नहीं है.