देहरादूनः उत्तराखंड में स्वास्थ्य महकमे की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. बात दवाई की कमी की हो या बदहाल मशीनों की. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो डॉक्टर्स की कमी को लेकर है. खास बात यह है कि जहां डॉक्टर्स की पहले ही कमी बनी हुई है तो कई डॉक्टर तैनात होने के बाद भी अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभा रहे.
आम लोगों की आए दिन आ रहीं ऐसी ही कई शिकायतों के बाद ईटीवी भारत ने देहरादून के सरकारी अस्पताल की पड़ताल की और जानने की कोशिश की कि क्या वाकई डॉक्टर्स तैनाती के बाद भी अस्पतालों में नहीं पहुंच रहे हैं.
ईटीवी भारत की पड़ताल पर हड़कंप मचने के बाद फौरन सीएमएस ने लापरवाह डॉक्टर्स को नोटिस देने की बात कही है. देखिए ईटीवी भारत की यह पड़ताल जिसे देख कर शायद आप भी चौंक जाएंगे.
यूं तो उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में सृजित पदों के मुकाबले डॉक्टर्स बेहद कम हैं. ऐसे में यदि तैनाती पाए डॉक्टर्स भी अस्पताल में मरीजों को समय पर नहीं देखने आएं तो सोचिए मरीजों के लिए दिक्कतें किस हद तक बढ़ जाएंगी.
देहरादून के दीनदयाल उपाध्याय संयुक्त चिकित्सालय में मरीजों और तीमारदारों की ऐसी ही शिकायतों और परेशानियों को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम अस्पताल की ओपीडी में पहुंची. जहां जाकर हमने पाया कि ओपीडी के कई कक्ष में ताले लगे हुए थे तो कुछ में खाली कुर्सियां डॉक्टर्स का इंतजार कर रही थीं. अब बारी मरीजों और तीमारदारों की राय जानने की थी तो हमने मरीजों और तीमारदारों से भी बात करनी शुरू कर दी.
अस्पताल पहुंचे मरीजों और तीमारदारों ने बताया कि वह सुबह से ही डॉक्टर का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन डॉक्टर अपने कक्ष में ही मौजूद नहीं है. खास बात यह है कि किसी भी कक्ष के बाहर डॉक्टर के नहीं होने को लेकर कोई भी नोटिस या जानकारी नहीं लिखी गई थी जिसके चलते मरीज अस्पताल में इधर उधर भटकते दिखाई दिए.
अब उत्तराखंड में डॉक्टर्स की कमी के हालात पर भी गौर कीजिए. उत्तराखंड के 13 जिलों में कुल 2715 डॉक्टर्स के पद स्वीकृत हैं जिस पर महज 1,547 ही डॉक्टर्स की तैनाती की गई है. इसमें भी विशेषज्ञ डॉक्टर की बेहद ज्यादा कमी है, जानकारी के अनुसार कई विशेषज्ञ डॉक्टर की संख्या पूरे उत्तराखंड में महज चार से पांच ही है.
हाल ही में डॉक्टर की कमी को पूरा करने के लिए 425 डॉक्टर्स को नियुक्ति दी गई थी जिसमें मात्र 353 ने ही ज्वाइनिंग दी. इसी तरह 60 विशेषज्ञ डॉक्टर्स को भी चयनित कर नियुक्ति दी गई जिसमें महज 29 चिकित्सकों ने ही सरकारी अस्पतालों में ज्वाइन किया.
उत्तराखंड में एक तरफ सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक आने को तैयार नहीं तो दूसरी तरफ राज्य में छोटे बड़े मिलाकर करीब 600 से ज्यादा निजी अस्पताल खोले गए हैं जिसे साफ है कि चिकित्सकों की रुचि सरकारी अस्पतालों को लेकर नकारात्मक है.
हैरानी की बात यह है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य महकमा खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत देख रहे हैं. बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग की दयनीय स्थिति को नहीं सुधारा जा सका है. नैनीताल हाई कोर्ट भी स्वास्थ्य को लेकर अपनी चिंता जताते हुए सरकार को कई बार निर्देशित कर चुका है, लेकिन इसका भी बहुत ज्यादा असर स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी में नहीं दिखाई दिया है.
बहरहाल, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के बावजूद उनका जिम्मेदारी से काम न करना एक चिंता का विषय है. ईटीवी भारत की पड़ताल में जब डॉक्टर की लापरवाही सामने आई तो सीएमएस का चार्ज देख रहे डॉ जेपी नौटियाल ने ऐसे सभी डॉक्टर्स को नोटिस जारी करने की बात कही जो ड्यूटी समय में ओपीडी में मौजूद नहीं थे.
ईटीवी भारत की पड़ताल के दौरान हो सकता है कि कुछ डॉक्टर चुनाव ड्यूटी या सरकारी कामों के चलते अस्पताल में मौजूद ना हो लेकिन सवाल यह है कि यदि ऐसा भी है तो क्यों नहीं ओपीडी में डॉक्टर कक्ष के बाहर नोटिस चिपकाए गए हैं, ताकि मरीज परेशान ना हो और नोटिस पढ़कर वह तय समय पर ही अस्पताल आएं.
यह भी पढ़ेंः बल्लीवाला फ्लाईओवर को लेकर गरमाई सियासत, सीएम के बाद सूर्यकांत धस्मना ने किया निरीक्षण
बहरहाल, ईटीवी भारत की पड़ताल में साफ हो गया कि अस्पतालों में लापरवाही अपने चरम पर है और मुख्यमंत्री के पास होने के बाद भी इस विभाग के हालातों को नहीं सुधारा जा सका है.