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जेनरिक दवाओं के प्रति डॉक्टर दिखा रहे उदासीन रवैया, मरीजों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा

दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉ. केके टम्टा ने ऐसे डॉक्टरों पर नाराजगी जताई है जो मरीजों को बाहर की दवाइयां लिखते हैं. उन्होंने कहा कि अस्पताल के डॉक्टरों को प्रत्येक महीने उपलब्ध दवाओं और जेनेरिक मेडिसिन की लिस्ट जारी कर दी जाती है

जेनरिक दवाओं के प्रति डॉक्टर दिखा रहे उदासीन रवैया
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Published : Mar 2, 2019, 8:46 PM IST

Updated : Mar 2, 2019, 9:15 PM IST


देहरादून: वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने शनिवार को राजधानी के महिला अस्पताल में जन औषधि केंद्र का शुभारंभ किया. जिसके बाद से उम्मीद है कि मरीजों और तिमारदारों को दवाओं के लिए यहां-वहां नहीं भटकना पड़ेगा. इससे पहले जून 2017 में दून अस्पताल में भी एक जन औषधि केंद्र की शुरुआत की गई थी लेकिन डॉक्टरों की बेरुखी के चलते आज ये औषधि केंद्र महज एक शो पीस बनकर रह गया है. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि कहीं डॉक्टरों की जेनरिक दवाइंयों के प्रति उदासीनता और बेरुखी के चलते कहीं ये जन औषधि केंद्र भी महज एक दिखावा साबित न हो.


दरअसल, दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में परिवर्तित किए जाने के बाद ओपीडी में मरीजों का आंकड़ा भी बढ़ गया है. दून अस्पताल में लगभग ढाई से तीन हजार की ओपीडी हर रोज दर्ज की जाती है. ऐसे में डॉक्टर मरीजों को जेनरिक दवाओं की बजाय ब्रांडेड मेडिसन लिखते हैं. जिसके कारण जन औषधी केंद्र में सस्ती दरों पर मिलने वाली दवाइयों की सेल दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है. इस बात की तस्दीक खुद दून अस्पताल के जन औषधी केंद्र का काउंटर संभाल रहे फार्मासिस्ट विनोद रावत ने की है.

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जेनरिक दवाओं के प्रति डॉक्टर दिखा रहे उदासीन रवैया


विनोद रावत ने कहा कि दून मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर जन-औषधियों को सपोर्ट नहीं करते हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ डॉक्टर ही जन औषधि केंद्र की दवाइयों को लिखते हैं. उनके मुताबिक केंद्र में हर मरीज को जरूरत के मुताबिक प्रिस्क्राइब की गई दवाइयां दी जाती हैं लेकिन कुछ डॉक्टर्स इन दवाइयों को लोकल बता कर रिजेक्ट कर देते हैं. . उन्होंने कहा कि कई डॉक्टर मरीजों को बताते हैं कि जन-औषधि केंद्र की दवाएं इफेक्टिव नहीं होती हैं. रावत ने बताया कि प्रत्येक दिन जन औषधि केंद्र से 8000 रुपये तक की दवाई बेची जाती हैं. जबकि जेनरिक दवाओं को प्राथमिकता दे रहे चिकित्सक अगर ओपीडी में बैठते हैं तो यही सेल दोगुनी हो जाती है.

दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉ. केके टम्टा ने ऐसे डॉक्टरों पर नाराजगी जताई है जो मरीजों को बाहर की दवाइयां लिखते हैं. उन्होंने कहा कि अस्पताल के डॉक्टरों को प्रत्येक महीने उपलब्ध दवाओं और जेनेरिक मेडिसिन की लिस्ट जारी कर दी जाती है. ऐसे में जो डॉक्टर बाहर की दवाइयां लिख रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि वर्तमान में अस्पताल के पास 80 फीसदी जेनरिक दवाइयां उपलब्ध हैं. मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने कहा कि 50 फीसदी चिकित्सक आदेशों का पालन करते हैं. 50 फीसदी डॉक्टर अभी भी मरीजों को ब्रांडेड दवाइयां लिख रहे हैं.

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बहरहाल, दून महिला अस्पताल में खुले जन औषधि केंद्र से पहले ही दिन अधिकतर मरीजों ने दवाइयां खरीदी. जिससे साफ तौर पर जाहिर होता है कि महिला चिकित्सकों ने जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जन-औषधि केंद्र की दवाओं को प्राथमिकता दी है.


ऐसे में माना जा रहा है दून मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकों और दवा प्रतिनिधियों की सांठगांठ से बाजार की दवाइयां धड़ल्ले से लिखी जा रही हैं. जबकि सरकार द्वारा खोले जा रहे जन औषधि केंद्र में मरीजों की भीड़ बढ़ने के बजाय घटती जा रही है. जिसके कारण सस्ती दर में उपलब्ध होने वाली जेनरिक दवाओं की सेल का ग्राफ भी लगातार नीचे गिरता जा रहा है. माना जा रहा है कि दवा कंपनियां दवाइयां प्रिस्क्राइब कराने के एवज में चिकित्सकों को मोटा कमिशन देती हैं. जिसका खामियाजा मरीजों को अपनी जेब ढीली कर भुगतना पड़ता है.


देहरादून: वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने शनिवार को राजधानी के महिला अस्पताल में जन औषधि केंद्र का शुभारंभ किया. जिसके बाद से उम्मीद है कि मरीजों और तिमारदारों को दवाओं के लिए यहां-वहां नहीं भटकना पड़ेगा. इससे पहले जून 2017 में दून अस्पताल में भी एक जन औषधि केंद्र की शुरुआत की गई थी लेकिन डॉक्टरों की बेरुखी के चलते आज ये औषधि केंद्र महज एक शो पीस बनकर रह गया है. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि कहीं डॉक्टरों की जेनरिक दवाइंयों के प्रति उदासीनता और बेरुखी के चलते कहीं ये जन औषधि केंद्र भी महज एक दिखावा साबित न हो.


दरअसल, दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में परिवर्तित किए जाने के बाद ओपीडी में मरीजों का आंकड़ा भी बढ़ गया है. दून अस्पताल में लगभग ढाई से तीन हजार की ओपीडी हर रोज दर्ज की जाती है. ऐसे में डॉक्टर मरीजों को जेनरिक दवाओं की बजाय ब्रांडेड मेडिसन लिखते हैं. जिसके कारण जन औषधी केंद्र में सस्ती दरों पर मिलने वाली दवाइयों की सेल दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है. इस बात की तस्दीक खुद दून अस्पताल के जन औषधी केंद्र का काउंटर संभाल रहे फार्मासिस्ट विनोद रावत ने की है.

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जेनरिक दवाओं के प्रति डॉक्टर दिखा रहे उदासीन रवैया


विनोद रावत ने कहा कि दून मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर जन-औषधियों को सपोर्ट नहीं करते हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ डॉक्टर ही जन औषधि केंद्र की दवाइयों को लिखते हैं. उनके मुताबिक केंद्र में हर मरीज को जरूरत के मुताबिक प्रिस्क्राइब की गई दवाइयां दी जाती हैं लेकिन कुछ डॉक्टर्स इन दवाइयों को लोकल बता कर रिजेक्ट कर देते हैं. . उन्होंने कहा कि कई डॉक्टर मरीजों को बताते हैं कि जन-औषधि केंद्र की दवाएं इफेक्टिव नहीं होती हैं. रावत ने बताया कि प्रत्येक दिन जन औषधि केंद्र से 8000 रुपये तक की दवाई बेची जाती हैं. जबकि जेनरिक दवाओं को प्राथमिकता दे रहे चिकित्सक अगर ओपीडी में बैठते हैं तो यही सेल दोगुनी हो जाती है.

दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉ. केके टम्टा ने ऐसे डॉक्टरों पर नाराजगी जताई है जो मरीजों को बाहर की दवाइयां लिखते हैं. उन्होंने कहा कि अस्पताल के डॉक्टरों को प्रत्येक महीने उपलब्ध दवाओं और जेनेरिक मेडिसिन की लिस्ट जारी कर दी जाती है. ऐसे में जो डॉक्टर बाहर की दवाइयां लिख रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि वर्तमान में अस्पताल के पास 80 फीसदी जेनरिक दवाइयां उपलब्ध हैं. मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने कहा कि 50 फीसदी चिकित्सक आदेशों का पालन करते हैं. 50 फीसदी डॉक्टर अभी भी मरीजों को ब्रांडेड दवाइयां लिख रहे हैं.

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बहरहाल, दून महिला अस्पताल में खुले जन औषधि केंद्र से पहले ही दिन अधिकतर मरीजों ने दवाइयां खरीदी. जिससे साफ तौर पर जाहिर होता है कि महिला चिकित्सकों ने जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जन-औषधि केंद्र की दवाओं को प्राथमिकता दी है.


ऐसे में माना जा रहा है दून मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकों और दवा प्रतिनिधियों की सांठगांठ से बाजार की दवाइयां धड़ल्ले से लिखी जा रही हैं. जबकि सरकार द्वारा खोले जा रहे जन औषधि केंद्र में मरीजों की भीड़ बढ़ने के बजाय घटती जा रही है. जिसके कारण सस्ती दर में उपलब्ध होने वाली जेनरिक दवाओं की सेल का ग्राफ भी लगातार नीचे गिरता जा रहा है. माना जा रहा है कि दवा कंपनियां दवाइयां प्रिस्क्राइब कराने के एवज में चिकित्सकों को मोटा कमिशन देती हैं. जिसका खामियाजा मरीजों को अपनी जेब ढीली कर भुगतना पड़ता है.

Intro:दून मेडिकल कॉलेज में जन औषधि केंद्र खुलने के बाद आज महिला अस्पताल में भी जन औषधि केंद्र का शुभारंभ हो गया है जिसका उद्घाटन उत्तराखंड के वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने किया। गौरतलब है कि दून अस्पताल में 1 जून 2017 को पहला जन ओषधी केंद्र खोला गया था मगर डॉक्टरों की बेरुखी से औषधि केंद्र आज मात्र शोपीस बनकर रह गया है कहीं ऐसा ना हो कि महिला अस्पताल परिसर में खुले जन औषधि केंद्र की हालत डॉक्टरों की जेनेरिक दवाइयों के प्रति उदासीनता के चलते शो पीस में तब्दील हो जाए।


Body: दरअसल दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में परिवर्तित किए जाने के बाद ओपीडी का भी आंकड़ा बढ़ गया है। दून अस्पताल में अमूमन ढाई से तीन हजार की ओपीडी प्रतिदिन दर्ज की जाती है ऐसे में डॉक्टर्स मरीजों को जेनरिक दवाओं की बजाय ब्रांडेड मेडिसन लिख रहे हैं, जिस कारण जन ओषधी केंद्र से सस्ती दर मे मरीजों को उपलब्ध होने वाली दवाइयों की सेल दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है। इस बात की तस्दीक खुद दून अस्पताल के जन ओषधी केंद्र का काउंटर संभाल रहे फार्मासिस्ट विनोद रावत कर रहे हैं, उनके मुताबिक दून मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक जन औषधियों को सपोर्ट नहीं करते हैं, हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ डॉक्टर ही जन औषधि केंद्र की दवाइयां प्रिसक्राइब करते हैं उनके मुताबिक केंद्र में हर मरीज को जरूरत के मुताबिक प्रिस्क्राइब की गई दवाइयां दी जाती है लेकिन कुछ डॉक्टर्स इन दवाइयों को लोकल बता कर रिजेक्ट कर देते हैं, और मरीजों को बाजार की दवाये खरीदने की सलाह देते हैं, कई डॉक्टर मरीज को बताते हैं कि जन औषधि केंद्र की दवा का असर इतना इफेक्टिव नहीं होता है और यह दवाई सस्ती होती है इसलिए बाजार की दवाइयां खरीदें, उन्होंने कहा कि प्रत्येक दिन जन औषधि केंद्र से 8000 रुपये तक की दवाई बेची जाती है जबकि जेनरिक दवाओं को प्राथमिकता दे रहे चिकित्सक अगर ओपीडी में बैठते हैं तो यही सेल दोगुनी हो जाती है।
बाईट-विनोद रावत , फार्मासिस्ट, जन ओषधी केंद्र।

दून अस्पताल में आने वाले मरीज भी बाजार की दवाई खाने को मजबूर हैं मरीजों के मुताबिक जब उनको सरकारी अस्पताल में आकर अपना इलाज कराना है तो बाजार से दवाइयां खरीदने का क्या मतलब है, मरीजों के मुताबिक अस्पताल के डॉक्टर ने उन्हें बाहर की दवाई लिखी हैं, ऐसे मे बेहतर होता कि वो प्राइवेट चिकित्सक से अपना इलाज कराते।
बाईट-अमित ठाकुर, मरीज
बाईट-तारा चंद शर्मा,सीनियर सिटीजन
दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुप्रिडेन्डेन्ट डॉ केके टम्टा ने भी ऐसे डॉक्टरों पर नाराजगी जाहिर की है जो जेनरिक मेडिसिन प्रिस्क्राइब करने की बजाय मरीजों को बाहर की महंगी दवाएं खिला रहे हैं। उन्होंने कहा कि अस्पताल के डॉक्टरों को प्रत्येक महीने उपलब्ध दवाओं और जेनेरिक मेडिसिन की लिस्ट जारी कर दी जाती है, ऐसे में जो डॉक्टर जन औषधि केंद्र की दवाई नहीं लिख रहे हैं ऐसे चिकित्सकों के विरुद्ध कार्यवाही अमल में लाई जाएगी, उन्होंने कहा कि वर्तमान में अस्पताल के पास 80 फ़ीसदी दवाइयां उपलब्ध है ऐसे में हाईकोर्ट के आदेशों के अनुसार डॉक्टर्स मरीजों को जेनेरिक मेडिसन ही प्रिस्क्राइब करें। लेकिन 50 फीसदी चिकित्सक आदेशों का पालन करने हैं जबकि 50 फीसदी डॉक्टर अभी भी ब्रांडेड दवाई मरीजों को खिला रहे हैं ऐसे डॉक्टर डॉक्टर को हिदायत दे दी गई है।।
बाईट- डॉ केके टम्टा, मेडिकल सुपरिटेंडेंट, दून मेडिकल कॉलेज।

बहराल दून महिला अस्पताल में खुले जन औषधि केंद्र के पहले दिन अधिकतर मरीजों ने ओषधि केंद्र के काउंटर से दवाएं खरीदी, जिससे साफ जाहिर होता है कि महिला चिकित्सकों ने जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जन औषधि केंद्र की दवाओं को प्राथमिकता दी।


Conclusion: माना यह जा रहा है दून मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकों और दवा प्रतिनिधियों की सांठगांठ से बाजार की दवाइयां धड़ल्ले से लिखी जा रही है जबकि सरकार द्वारा खोले जा रहे जन औषधि केंद्र में मरीजों की भीड़ बढ़ने के बजाय घटती जा रही है और सस्ती दर मे उपलब्ध जेनरिक दवाओं की सेल का ग्राफ भी नीचे की ओर आता जा रहा है, माना जा रहा है कि दवा प्रतिनिधि कंपनी की दवाईयां प्रिस्क्राइब कराने की एवज मे चिकित्सकों को मोटा कमीशन और विदेशी टूर भी करा रहे हैं, जिसका खामियाजा मरीजों को अपनी जेब ढीली करके चुकाना पड़ रहा है
Last Updated : Mar 2, 2019, 9:15 PM IST
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