देहरादून: वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने शनिवार को राजधानी के महिला अस्पताल में जन औषधि केंद्र का शुभारंभ किया. जिसके बाद से उम्मीद है कि मरीजों और तिमारदारों को दवाओं के लिए यहां-वहां नहीं भटकना पड़ेगा. इससे पहले जून 2017 में दून अस्पताल में भी एक जन औषधि केंद्र की शुरुआत की गई थी लेकिन डॉक्टरों की बेरुखी के चलते आज ये औषधि केंद्र महज एक शो पीस बनकर रह गया है. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि कहीं डॉक्टरों की जेनरिक दवाइंयों के प्रति उदासीनता और बेरुखी के चलते कहीं ये जन औषधि केंद्र भी महज एक दिखावा साबित न हो.
दरअसल, दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में परिवर्तित किए जाने के बाद ओपीडी में मरीजों का आंकड़ा भी बढ़ गया है. दून अस्पताल में लगभग ढाई से तीन हजार की ओपीडी हर रोज दर्ज की जाती है. ऐसे में डॉक्टर मरीजों को जेनरिक दवाओं की बजाय ब्रांडेड मेडिसन लिखते हैं. जिसके कारण जन औषधी केंद्र में सस्ती दरों पर मिलने वाली दवाइयों की सेल दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है. इस बात की तस्दीक खुद दून अस्पताल के जन औषधी केंद्र का काउंटर संभाल रहे फार्मासिस्ट विनोद रावत ने की है.
विनोद रावत ने कहा कि दून मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर जन-औषधियों को सपोर्ट नहीं करते हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ डॉक्टर ही जन औषधि केंद्र की दवाइयों को लिखते हैं. उनके मुताबिक केंद्र में हर मरीज को जरूरत के मुताबिक प्रिस्क्राइब की गई दवाइयां दी जाती हैं लेकिन कुछ डॉक्टर्स इन दवाइयों को लोकल बता कर रिजेक्ट कर देते हैं. . उन्होंने कहा कि कई डॉक्टर मरीजों को बताते हैं कि जन-औषधि केंद्र की दवाएं इफेक्टिव नहीं होती हैं. रावत ने बताया कि प्रत्येक दिन जन औषधि केंद्र से 8000 रुपये तक की दवाई बेची जाती हैं. जबकि जेनरिक दवाओं को प्राथमिकता दे रहे चिकित्सक अगर ओपीडी में बैठते हैं तो यही सेल दोगुनी हो जाती है.
दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉ. केके टम्टा ने ऐसे डॉक्टरों पर नाराजगी जताई है जो मरीजों को बाहर की दवाइयां लिखते हैं. उन्होंने कहा कि अस्पताल के डॉक्टरों को प्रत्येक महीने उपलब्ध दवाओं और जेनेरिक मेडिसिन की लिस्ट जारी कर दी जाती है. ऐसे में जो डॉक्टर बाहर की दवाइयां लिख रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि वर्तमान में अस्पताल के पास 80 फीसदी जेनरिक दवाइयां उपलब्ध हैं. मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने कहा कि 50 फीसदी चिकित्सक आदेशों का पालन करते हैं. 50 फीसदी डॉक्टर अभी भी मरीजों को ब्रांडेड दवाइयां लिख रहे हैं.
बहरहाल, दून महिला अस्पताल में खुले जन औषधि केंद्र से पहले ही दिन अधिकतर मरीजों ने दवाइयां खरीदी. जिससे साफ तौर पर जाहिर होता है कि महिला चिकित्सकों ने जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जन-औषधि केंद्र की दवाओं को प्राथमिकता दी है.
ऐसे में माना जा रहा है दून मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकों और दवा प्रतिनिधियों की सांठगांठ से बाजार की दवाइयां धड़ल्ले से लिखी जा रही हैं. जबकि सरकार द्वारा खोले जा रहे जन औषधि केंद्र में मरीजों की भीड़ बढ़ने के बजाय घटती जा रही है. जिसके कारण सस्ती दर में उपलब्ध होने वाली जेनरिक दवाओं की सेल का ग्राफ भी लगातार नीचे गिरता जा रहा है. माना जा रहा है कि दवा कंपनियां दवाइयां प्रिस्क्राइब कराने के एवज में चिकित्सकों को मोटा कमिशन देती हैं. जिसका खामियाजा मरीजों को अपनी जेब ढीली कर भुगतना पड़ता है.