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25 साल का हुआ बागेश्वर, जिला बनाने को लेकर गुसाईं सिंह दफौटी गए थे जेल

बागेश्वर जिला आज अपनी रजत जयंती मना रहा है. बागेश्वर जिले का गठन 15 सितंबर 1997 को हुआ था. जिला गठन में सबसे महत्वपूर्ण योगदान राज्य आंदोलनकारी एडवोकेट गुसाईं सिंह दफौटी का था. जिन्होंने 'बागेश्वर जिला बनाओ' का नारा देकर आंदोलन की शुरुआत की. इसके लिए वे कई बार जेल भी गए. भले ही संघर्षों के बाद जिला बना हो, लेकिन आज भी कई गांव विकास से कोसों दूर हैं.

bageshwar district
बागेश्वर जिला रजत जयंती
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Published : Sep 15, 2021, 6:07 PM IST

Updated : Sep 15, 2021, 6:40 PM IST

बागेश्वरः उत्तराखंड का बागेश्वर जिला 25 साल का हो गया है. जिले की 25वीं वर्षगांठ यानी रजत जयंती ऐतिहासिक नुमाइखेत मैदान में धूमधाम से मनाई गई. इस मौके पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए. साथ ही विभिन्न विभागों के स्टॉल लगाए गए और खेलकूद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया. इसके अलावा मुख्यमंत्री स्वरोजगार के तहत बेरोजगार युवाओं का साक्षात्कार लिया गया. वहीं, बागेश्वर जिला बनाने में योगदान देने वाले लोगों के परिजनों ने सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाया.

ऐसे बना था बागेश्वर जिलाः 15 सितंबर 1997 को बागेश्वर जिला बना था. पहले यह अल्मोड़ा जिले का हिस्सा था. भौगोलिक रूप से जटिल अल्मोड़ा जिले में विकास की गति लाने के लिए बागेश्वर जिले की मांग को लेकर जनता ने आंदोलन शुरू किया. तत्कालीन राज्य आंदोलनकारी एडवोकेट गुसाईं सिंह दफौटी ने साल 1981-1982 में 'बागेश्वर जिला बनाओ' का नारा देकर आंदोलन की शुरुआत की तो उनके साथ लोगों का कारवां जुड़ता चला गया. साल 1989 में उन्होंने 12 दिन तक आमरण अनशन किया.

25 साल का हुआ बागेश्वर.

ये भी पढ़ेंः पुरोला को पृथक जिला बनाने की मांग तेज, ढोल-नगाड़ों के साथ सड़क पर उतरे लोग

अनशन के दौरान पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर 45 दिनों तक अल्मोड़ा जेल में डाल दिया, लेकिन वो झुके नहीं और आंदोलन के दौरान साल 1991 में फिर से उन्हें 28 दिनों तक जेल में डाला गया. साल 1992 में आंदोलन में तेजी लाने के लिए उन्होंने आत्मदाह का भी प्रयास किया. जिसके परिणामस्वरूप संगीन धाराएं लगाकर उन्हें फिर से जेल में डाल दिया गया. उन्होंने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया, जिससे जनता में भी आक्रोश बढ़ने लगा. नतीजन प्रशासन ने उन्हें अल्मोड़ा जेल से बरेली सेंट्रल जेल शिफ्ट कर दिया. जहां खालिस्तानी आतंकवादियों के साथ उन्हें रखा गया.

वहीं, कई शारीरिक और मानसिक यातनाएं देकर उनके हौसले को तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन उनका हौसला नहीं डिगा. इन दौरान पूरे सात महीने उन्हें जेल में बिताने पड़े. साल 1994 में राज्य आंदोलन के साथ ही उन्होंने जिला आंदोलन भी तेज कर दिया. साल 1997 में जिले की मांग को लेकर उन्होंने फिर से आमरण अनशन शुरू कर दिया. उनके नेतृत्व में चलाए जा रहे जिला आंदोलन को क्षेत्रीय लोगों का अपार जन समर्थन मिला. जन आंदोलन के दबाव में सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 15 सितंबर 1997 को बागेश्वर जिले की घोषणा की.

ये भी पढ़ेंः चुनावी साल में फिर गर्माया डीडीहाट जिले का मुद्दा, बिशन सिंह चुफाल को घेरने में जुटे विपक्षी

दफौटी के परिजन और राज्य आंदोलनकारियों में नाराजगीः रजत जयंती पर स्व. गुसाईं सिंह दफौटी की पत्नी नीमा दफौटी प्रशासन की ओर से उनकी उपेक्षा किए जाने पर दु:खी हैं. वो कहती हैं कि जिला निर्माण के संघर्ष में उन्हें और उनके परिवार जिन कष्टों के दौर से गुजरना पड़ा, उसके लिए आज उन्हें इस तरह से तिरस्कृत किया जा रहा है. वहीं, राज्य आंदोलकारी गंगा सिंह पांगती भी प्रशासन के रूखे रवैये से दु:खी हैं. उनका कहना है कि जिस विकास की अवधारणा को लेकर जिले की कल्पना की थी, वो अधूरी ही रह गई है.

रजत जयंती पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजनः रजत जयंती पर मुख्य अतिथियों ने वरिष्ठ नागरिक जनकल्याण समिति की ओर से प्रकाशित कुली बेगार आंदोलन शताब्दी स्मारिका का विमोचन किया. इस अवसर पर उज्वला योजना के तहत 50 लाभार्थियों को गैस कनेक्शन वितरण किए गए. वहीं, खेल विभाग की ओर से ओपन पुरुष वर्ग एवं महिला वर्ग के खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया. विभिन्न विभागों की ओर से लगाए गए स्टॉल में लोगों को योजनाओं की जानकारी दी गई. वहीं, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत 41 लाभार्थियों को 137.20 लाख का ऋण स्वीकृत किया गया.

ये भी पढ़ेंः 20 साल में 11 मुख्यमंत्री, फिर भी नहीं बदली पहाड़ की नियति, आज भी कंधों पर 'जिंदगी'

विकास से कोसों दूर जिले के कई गांवः जिलाधिकारी विनीत कुमार ने कहा कि 25 सालों में जिले का अच्छा विकास हुआ है. ग्रामीण क्षेत्र सड़कों से जुड़ गए हैं और स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हो रही है. बरहाल, बागेश्वर जिले को बने 25 साल तो हो गए हैं, लेकिन विकास के नाम पर जिला अभी तक रेंग ही रहा है. दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र के लोग आज भी खानाबदोश की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. सरकार के नुमाइंदे और प्रशासनिक तंत्र अपने कागजों में हर ग्रामीण क्षेत्र को बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा में संपन्न बताते थकते नहीं है, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है.

ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने वाली सड़कें खस्ताहाल हैं. जो हर साल कई लोगों की जान लील रहा है. स्वास्थ्य सुविधा के लिए आज भी ग्रामीण अंचलों के लोग जिला मुख्यालय पर ही निर्भर हैं. ग्रामीण मरीज बमुश्किल यहां पहुंच पाते हैं. इतना ही नहीं यहां भी स्वास्थ्य सेवा न मिलने पर उन्हें हल्द्वानी की दौड़ लगानी पड़ती है. आज भी पिंडर घाटी के दर्जनों गांव अंधेरे में डूबे रहते हैं. मूलभूत सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण पलायन करने को मजबूर हैं, लेकिन नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के आंकड़ों में सब ठीक है और जनता परेशान नहीं है.

बागेश्वरः उत्तराखंड का बागेश्वर जिला 25 साल का हो गया है. जिले की 25वीं वर्षगांठ यानी रजत जयंती ऐतिहासिक नुमाइखेत मैदान में धूमधाम से मनाई गई. इस मौके पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए. साथ ही विभिन्न विभागों के स्टॉल लगाए गए और खेलकूद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया. इसके अलावा मुख्यमंत्री स्वरोजगार के तहत बेरोजगार युवाओं का साक्षात्कार लिया गया. वहीं, बागेश्वर जिला बनाने में योगदान देने वाले लोगों के परिजनों ने सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाया.

ऐसे बना था बागेश्वर जिलाः 15 सितंबर 1997 को बागेश्वर जिला बना था. पहले यह अल्मोड़ा जिले का हिस्सा था. भौगोलिक रूप से जटिल अल्मोड़ा जिले में विकास की गति लाने के लिए बागेश्वर जिले की मांग को लेकर जनता ने आंदोलन शुरू किया. तत्कालीन राज्य आंदोलनकारी एडवोकेट गुसाईं सिंह दफौटी ने साल 1981-1982 में 'बागेश्वर जिला बनाओ' का नारा देकर आंदोलन की शुरुआत की तो उनके साथ लोगों का कारवां जुड़ता चला गया. साल 1989 में उन्होंने 12 दिन तक आमरण अनशन किया.

25 साल का हुआ बागेश्वर.

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अनशन के दौरान पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर 45 दिनों तक अल्मोड़ा जेल में डाल दिया, लेकिन वो झुके नहीं और आंदोलन के दौरान साल 1991 में फिर से उन्हें 28 दिनों तक जेल में डाला गया. साल 1992 में आंदोलन में तेजी लाने के लिए उन्होंने आत्मदाह का भी प्रयास किया. जिसके परिणामस्वरूप संगीन धाराएं लगाकर उन्हें फिर से जेल में डाल दिया गया. उन्होंने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया, जिससे जनता में भी आक्रोश बढ़ने लगा. नतीजन प्रशासन ने उन्हें अल्मोड़ा जेल से बरेली सेंट्रल जेल शिफ्ट कर दिया. जहां खालिस्तानी आतंकवादियों के साथ उन्हें रखा गया.

वहीं, कई शारीरिक और मानसिक यातनाएं देकर उनके हौसले को तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन उनका हौसला नहीं डिगा. इन दौरान पूरे सात महीने उन्हें जेल में बिताने पड़े. साल 1994 में राज्य आंदोलन के साथ ही उन्होंने जिला आंदोलन भी तेज कर दिया. साल 1997 में जिले की मांग को लेकर उन्होंने फिर से आमरण अनशन शुरू कर दिया. उनके नेतृत्व में चलाए जा रहे जिला आंदोलन को क्षेत्रीय लोगों का अपार जन समर्थन मिला. जन आंदोलन के दबाव में सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 15 सितंबर 1997 को बागेश्वर जिले की घोषणा की.

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दफौटी के परिजन और राज्य आंदोलनकारियों में नाराजगीः रजत जयंती पर स्व. गुसाईं सिंह दफौटी की पत्नी नीमा दफौटी प्रशासन की ओर से उनकी उपेक्षा किए जाने पर दु:खी हैं. वो कहती हैं कि जिला निर्माण के संघर्ष में उन्हें और उनके परिवार जिन कष्टों के दौर से गुजरना पड़ा, उसके लिए आज उन्हें इस तरह से तिरस्कृत किया जा रहा है. वहीं, राज्य आंदोलकारी गंगा सिंह पांगती भी प्रशासन के रूखे रवैये से दु:खी हैं. उनका कहना है कि जिस विकास की अवधारणा को लेकर जिले की कल्पना की थी, वो अधूरी ही रह गई है.

रजत जयंती पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजनः रजत जयंती पर मुख्य अतिथियों ने वरिष्ठ नागरिक जनकल्याण समिति की ओर से प्रकाशित कुली बेगार आंदोलन शताब्दी स्मारिका का विमोचन किया. इस अवसर पर उज्वला योजना के तहत 50 लाभार्थियों को गैस कनेक्शन वितरण किए गए. वहीं, खेल विभाग की ओर से ओपन पुरुष वर्ग एवं महिला वर्ग के खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया. विभिन्न विभागों की ओर से लगाए गए स्टॉल में लोगों को योजनाओं की जानकारी दी गई. वहीं, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत 41 लाभार्थियों को 137.20 लाख का ऋण स्वीकृत किया गया.

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ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने वाली सड़कें खस्ताहाल हैं. जो हर साल कई लोगों की जान लील रहा है. स्वास्थ्य सुविधा के लिए आज भी ग्रामीण अंचलों के लोग जिला मुख्यालय पर ही निर्भर हैं. ग्रामीण मरीज बमुश्किल यहां पहुंच पाते हैं. इतना ही नहीं यहां भी स्वास्थ्य सेवा न मिलने पर उन्हें हल्द्वानी की दौड़ लगानी पड़ती है. आज भी पिंडर घाटी के दर्जनों गांव अंधेरे में डूबे रहते हैं. मूलभूत सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण पलायन करने को मजबूर हैं, लेकिन नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के आंकड़ों में सब ठीक है और जनता परेशान नहीं है.

Last Updated : Sep 15, 2021, 6:40 PM IST
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