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बागेश्वर: आजादी के 75 सालों बाद भी विकास से कोसों दूर ये गांव, तस्वीरें देती हैं गवाही

आजादी के 75 सालों के बाद भी बागेश्वर जनपद के दर्जनों गांव आज भी विकास की राह देख रहे हैं. इन गांवों में आज तक न सड़क पहुंची और ना ही संचार सेवा. यहां के युवा अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए पलायन कर गए हैं, इन गांवों में बचे हैं तो सिर्फ बच्चे, बूढ़े और महिलाएं.

Bageshwar
बागेश्वर के गांव में सड़क नहीं
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Published : Feb 5, 2022, 4:49 PM IST

बागेश्वर: प्रदेश में विधानसभा चुनाव को अब महज कुछ दिन बचे हैं. ऐसे सभी प्रत्याशी विकास के नाम उत्तराखंड के दूर-दराज के इलाकों में पहुंच कर वोट मांग रहे हैं. लेकिन उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट विधानसभा के दर्जनों गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ ही इन गांवों में संचार की समस्या आज भी लोगों के जी का जंजाल बनी हुई है. इन दुर्गम लोकतांत्रिक पड़ावों में विकास की किरण आज तक भी नहीं पहुंच सकी है.

प्रदेश में लोकतंत्र का उत्सव अपने चरम पर है. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों से जुड़े प्रत्याशी और निर्दलीय प्रत्याशी जिले के सबसे दुर्गम में क्षेत्रों में मतदाताओं के दर पर दस्तक दे रहे हैं. यहां के लोगों में मतदान का उत्साह तो है, लेकिन 75 साल के लोकतंत्र में भी पिछड़े ही रहने का मलाल भी है. कुछ ऐसा ही हाल कपकोट विधानसभा के दर्जनों गांवों का है. इन क्षेत्रों में बसे गांवों का युवा वर्ग तो आजीविका के लिए महानगरों की खाक छान रहे हैं और गांव में रह गए बूढ़े, बच्चे और महिलाएं.

मूलभूत सुविधाओं को तरसते कपकोट के दर्जनों कार्य.

कपकोट विधानसभा के गैराड़ गांव में 500 वोटर हैं. इस गांव के लोग आज भी पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं के लिए आज भी उम्मीद की किरण जगाएं बैठे हैं. लेकिन हर बार चुनाव में नेता वादे करते हैं. चुनाव के बाद इन क्षेत्रों में कोई झांकने तक नहीं आता. हर बार ग्रामीणों की उम्मीदें जस की तस रह जाती हैं. गांव को जोड़ने वाली गैराड़ रोड का भेरूचौप्ट्टा से मिलान होना था लेकिन आज तक भी नहीं हो सका है. स्कूल सिर्फ हाईस्कूल तक ही है.

पढ़ें- 'हाथी' का चुनाव चिन्ह लेकर चुनावी प्रचार कर रहे नेताओं को हाथियों ने दौड़ाया, देखें वीडियो

ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें जनपद समेत पूरे प्रदेश में बदलाव की आवश्यकता है. एक ऐसे प्रतिनिधि व सरकार की आवश्यकता है, जो उन्हें मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा सकें. ग्रामीण बताते हैं कि गांव में अगर कोई बीमार हो जाता है, तो उसे डोली से सड़क तक और वहां से जिला अस्पताल ले जाना पड़ता है.

विकास की दौड़ में पिछड़ा कपकोट विधानसभा का गैराड़ गांव एक छोटा उदाहरण है. इस विधानसभा के पिंडरघाटी, लाहूर, रामगंगा घाटी में बसे दर्जनों गांवों में आज तक भी संचार की सुविधा नहीं हैं. वहीं शिक्षा, सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सुविधा तो यहां बसे ग्रामीणों के लिए सपना बना हुआ है. बावजूद इसके ग्रामीण हर बार चुनाव में बढ़-चढ़ इसलिए हिस्सा लेते हैं कि कभी तो उन्हें भी ये सुविधाएं मिलेगी और उनका कष्टभरा जीवन भी सुखद होगा.

बागेश्वर: प्रदेश में विधानसभा चुनाव को अब महज कुछ दिन बचे हैं. ऐसे सभी प्रत्याशी विकास के नाम उत्तराखंड के दूर-दराज के इलाकों में पहुंच कर वोट मांग रहे हैं. लेकिन उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट विधानसभा के दर्जनों गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ ही इन गांवों में संचार की समस्या आज भी लोगों के जी का जंजाल बनी हुई है. इन दुर्गम लोकतांत्रिक पड़ावों में विकास की किरण आज तक भी नहीं पहुंच सकी है.

प्रदेश में लोकतंत्र का उत्सव अपने चरम पर है. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों से जुड़े प्रत्याशी और निर्दलीय प्रत्याशी जिले के सबसे दुर्गम में क्षेत्रों में मतदाताओं के दर पर दस्तक दे रहे हैं. यहां के लोगों में मतदान का उत्साह तो है, लेकिन 75 साल के लोकतंत्र में भी पिछड़े ही रहने का मलाल भी है. कुछ ऐसा ही हाल कपकोट विधानसभा के दर्जनों गांवों का है. इन क्षेत्रों में बसे गांवों का युवा वर्ग तो आजीविका के लिए महानगरों की खाक छान रहे हैं और गांव में रह गए बूढ़े, बच्चे और महिलाएं.

मूलभूत सुविधाओं को तरसते कपकोट के दर्जनों कार्य.

कपकोट विधानसभा के गैराड़ गांव में 500 वोटर हैं. इस गांव के लोग आज भी पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं के लिए आज भी उम्मीद की किरण जगाएं बैठे हैं. लेकिन हर बार चुनाव में नेता वादे करते हैं. चुनाव के बाद इन क्षेत्रों में कोई झांकने तक नहीं आता. हर बार ग्रामीणों की उम्मीदें जस की तस रह जाती हैं. गांव को जोड़ने वाली गैराड़ रोड का भेरूचौप्ट्टा से मिलान होना था लेकिन आज तक भी नहीं हो सका है. स्कूल सिर्फ हाईस्कूल तक ही है.

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ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें जनपद समेत पूरे प्रदेश में बदलाव की आवश्यकता है. एक ऐसे प्रतिनिधि व सरकार की आवश्यकता है, जो उन्हें मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा सकें. ग्रामीण बताते हैं कि गांव में अगर कोई बीमार हो जाता है, तो उसे डोली से सड़क तक और वहां से जिला अस्पताल ले जाना पड़ता है.

विकास की दौड़ में पिछड़ा कपकोट विधानसभा का गैराड़ गांव एक छोटा उदाहरण है. इस विधानसभा के पिंडरघाटी, लाहूर, रामगंगा घाटी में बसे दर्जनों गांवों में आज तक भी संचार की सुविधा नहीं हैं. वहीं शिक्षा, सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सुविधा तो यहां बसे ग्रामीणों के लिए सपना बना हुआ है. बावजूद इसके ग्रामीण हर बार चुनाव में बढ़-चढ़ इसलिए हिस्सा लेते हैं कि कभी तो उन्हें भी ये सुविधाएं मिलेगी और उनका कष्टभरा जीवन भी सुखद होगा.

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