देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन अल्मोड़ा विधायक और विधानसभा उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह अल्मोड़ा जिलाधिकारी नितिन सिंह भदौरिया के खिलाफ दो मामलों में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाए. वहीं एक मामला सदन में पेचीदा बन गया था. हालांकि बाद में विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने उसे सुलझा दिया था.
पहला मामला
विधानसभा उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह ने पहला जो मुद्दा उठाया वो कोरोना से जुड़ा हुआ था. उन्होंने कहा कि उनके विधानसभा क्षेत्र में कोरोना के कारण तीन लोगों की मौत हो गई थी. उन्होंने इसकी जानकारी अल्मोड़ा जिलाधिकारी भदौरिया को दी थी और उन्हें सीएमओ को मौके पर भेजने के लिए बोला गया था. लेकिन जिलाधिकारी ने सीएमओ को मौके पर भेजने के मना कर दिया था. इसीलिए वे अल्मोड़ा जिलाधिकारी भदौरिया के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाए हैं.
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दूसरा मामला
दूसरा मामला भी अल्मोड़ा विधानसभा क्षेत्र में चल रहे निर्माण कार्य के उद्घाटन से जुड़ा है. विधानसभा उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह ने कहा कि उनके क्षेत्र में तमाम विकास कार्य किए जा रहे हैं. जब उन विकास कार्यों का उद्घाटन होता है तो उसमें क्षेत्रीय विधायक को बुलाया जाता है. उसमें क्षेत्रीय विधायक की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन उन्होंने विधानसभा में एक ऐसे मामले को रखा जिसमें उद्घाटन कार्यक्रम में लगाए गए शिलापट पर स्थानीय विधायक का नाम ही गायब था. इस मामले में उन्होंने विधानसभा में नाराजगी जताई.
तीसरा मामला
विधानसभा उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह चौहान जब सदन में डीएम अल्मोड़ा के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाए तो मामला थोड़ा पेचीदा हो गया था. दरअसल, विधानसभा उपाध्यक्ष के पास विधानसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में पीठ संभालने की जिम्मेदारी भी होती है तो वहीं संयोग से जब सदन में विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव आ रहे थे तो उस समय विधानसभा अध्यक्ष सदन में नहीं थे. विधानसभा उपाध्यक्ष पीठ की जिम्मेदारी निभा रहे थे. इसी दौरान जब उनके द्वारा लगाया गया विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव आया तो उनके द्वारा उसे पहले तो नजर अंदाज किया गया, लेकिन विपक्ष के कहने पर क्योंकि लिखित में यह मामला आ चुका था. विधानसभा उपाध्यक्ष ने पीठ से ही अपने विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पढ़ दिया. जिसके बाद सत्ता पक्ष की ओर से संसदीय मंत्री मदन कौशिक ने और भी कमाल कर दिया. विधानसभा उपाध्यक्ष ने कई तरह की चर्चा की. लेकिन ये सब तब हो रहा था जब विधानसभा उपाध्यक्ष पीठ पर विराजमान थे.
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सरकार की तरफ से जवाब दिया गया है कि इस मामले में डीएम की तरफ से मांफी मांगी गई है. जिसका जवाब पीठ से ही उपाध्यक्ष ने दिया कि उनसे किसी भी तरह की माफी नहीं मांगी गई. जिसके बाद सत्ता पक्ष के संसदीय मंत्री ने जांच के आदेश दिए. समस्या ये थी कि मामला खुद पीठ पर बैठे सदस्य से जुड़ा था तो पीठ को जांच के आदेश कैसे दे सकता है? हालांकि इस मामले को बाद में विधानसभा अध्यक्ष ने आकर संभाला और आखिर में इस मामले की मुख्य सचिव को जांच करने के निर्देश दिए.
क्या है विशेषाधिकार हनन?
देश में विधानसभा, विधान परिषद और संसद के सदस्यों के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं, ताकि वे प्रभावी ढंग से अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकें. जब सदन में इन विशेषाधिकारों का हनन होता है या इन अधिकारों के खिलाफ कोई कार्य किया जाता है, तो उसे विशेषाधिकार हनन कहते हैं. इसकी स्पीकर को की गई लिखित शिकायत को विशेषाधिकार हनन नोटिस कहते हैं.