अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा अपने आपमें कई सांस्कृतिक विरासतों को समेटे हुए है, जिसमें कुमाऊं की रामलीला भी एक है. कुमाऊं में सबसे पहले रामलीला सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से ही शुरू हुई थी. अल्मोड़ा में रामलीला की शुरुआत हुए लगभग 160 साल हो गए हैं. इस दौरान रामलीला मंचन में कई बदलाव देखे गए हैं. कभी वो समय भी था जब रामलीला के सारे पात्रों का अभिनय पुरुष ही किया करते थे, फिर 90 के दशक से लड़कियों की हिस्सेदारी भी बढ़ी और अब पहली बार ऐसा होने जा रहा है जब रामलीला का हर किरदार एक महिला निभाएगी.
अल्मोड़ा नगर में 16 अक्टूबर से इस रामलीला की शुरुआत होगी. हालांकि, महिलाओं की इस रामलीला का मंचन केवल 3 दिनों तक होगा लेकिन पहली बात इस तरह के आयोजन को लेकर रामलीला से जुड़ा हर पात्र बेहद उत्साहित है.
रामलीला के इस आयोजन में, जिसमें चाहे वो राम, रावण या हनुमान, यहां हर चरित्र में एक महिला होगी. कर्नाटकखोला रामलीला कमेटी इसकी शुरुआत कर रही है. ये महिलाएं भी अपने किरदारों को लेकर बेहद उत्साहित हैं और सभी पात्रों पर लंबे समय से तालीम ले रही हैं. इसमें खास बात ये भी है कि इस बार 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान को रामलीला की थीम बनाया गया है.
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कुमाऊंनी संस्कृति की झलक: सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा अपने आपमें कई सांस्कृतिक विरासतों को समेटे हुए है, जिसमें कुमाऊं की रामलीला भी एक है. कुमाऊं में सबसे पहले सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई थी. ये रामलीला गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस पर आधारित होती है. बताया जाता है कि कुमाऊं की पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी. इस परंपरा को 160 साल हो गए हैं. और इस बार अल्मोड़ा की ये रामलीला सबसे खास होने वाली है.
18वीं सदी में हुई थी शुरुआत: कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की शुरुआत अठारहवीं सदी के मध्यकाल के बाद हुई थी. बताया जाता है कि कुमाऊं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी, जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व० देवीदत्त जोशी को जाता है. बाद में नैनीताल, बागेश्वर व पिथौरागढ़ में क्रमशः 1880, 1890 व 1902 में रामलीला नाटक का मंचन प्रारम्भ हुआ. अल्मोड़ा में 1940-41 में विख्यात नृत्य सम्राट पं० उदय शंकर ने छाया चित्रों के माध्यम से रामलीला में नवीनता लाने की कोशिश की.
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विरासत को समेटे रामलीला: अल्मोड़ा में रामलीला भैरवी, ठुमरी, विहाग, पीलू, सहित अनेक रागों के साथ की जाती है. रागों में रामलीला गाना बहुत कठिन माना जाता है. जिसके लिए यहां अभिनय करने वालों को पिछले 2 महीने से इस रामलीला की तालीम दी जाती है. अल्मोड़ा में नंदा देवी, कर्नाटक खोला, धारानोला, हुक्का क्लब, सरकार की आली, खतियाड़ी, चितई, एनटीडी सहित दर्जनों स्थानों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है. कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की शुरुआत 18वीं सदी में हुई थी. बताया जाता है कि कुमाऊं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी.