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रोजगार की तलाश में त्योहारों की चमक भी कर गई 'पलायन', फीकी दिखी घुघुतिया पर्व की रौनक

बदलते दौर के साथ-साथ धीरे-धीरे पुरानी परंपराए भी धुंधली पड़ने लगी हैं. खाली पड़े घर और रोजगार की तलाश में पलायन कर चुके लोगों के साथ यहां के त्योहारों की चमक भी 'पलायन' कर चुकी है.

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धुंधली पड़ने लगी घुघूतिया पर्व परंपरा
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Published : Jan 15, 2020, 5:32 PM IST

द्वाराहाट: अल्मोड़ा में कभी एक दौर ऐसा भी था जब दोहरी-तिहरी घुघुतों की माला पहन कर बच्चे, वृद्ध और महिलाएं कौवोंं को बुलाकर उत्तरायणी का स्वागत किया करते थे.आज धीरे-धीरे ये परंपरा लुप्त होती जा रही है. पलायन और समय के अभाव के कारण लोग इन पुरानी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं. उस दौर में जिन घरों में कौवों को घुघुते खाने को मिलते थे, वहां आज ताले लटके हैं. रोजगार की तलाश में यहां से लोग ही बल्कि त्योहारों की चमक भी 'पलायन' कर चुकी है, जो कि चिंता का विषय है.

फीकी दिखी घुघुतिया पर्व की रौनक.

क्या है घुघुतिया पर्व की जनश्रुति
कुमाऊं की वादियों में प्रचलित एक जनश्रुति के अनुसार कुमाऊं के चंद्रवंशी राजा कल्याण चंद्र को बागेश्वर में भगवान बागनाथ की तपस्या के बाद राज्य का एकलौता उत्तराधिकारी निर्भय चंद्र प्राप्त हुआ. जिसे रानी प्यार से घुघुती कहती थी. पर्वतीय इलाके में घुघुती एक पक्षी को कहा जाता है . राजा का यह पुत्र भी एक पक्षी की तरह ही राजा की आंखों का तारा था. उस बच्चे को कौवे के साथ विशेष लगाव था. जब भी बच्चे को खाना दिया जाता था, तब कौवे उसके आस-पास ही रहते थे.

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घुघुतों के पकवान.

पढ़ें-मकर संक्रांति: हरकी पैड़ी पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

एक बार राजा के मंत्री ने षड्यंत्र कर राज्य प्राप्त करने की नीयत से घुघुती का अपहरण कर लिया. वह उसे जंगल में फेंक आया. जहां उसके मित्र रहे कौवों ने उसकी मदद की. इधर, राजमहल से बच्चे के अपहरण से राजा-रानी बहुत परेशान हुए. उनका कोई भी गुप्तचर घुघुती का पता नहीं लगा पाया. तभी रानी की नजर एक कौवे पर पड़ी, वह बार-बार उड़कर राजमहल में आ जाता था. उसी समय कौवा घुघुती के गले में पड़ी मोतियों की माला पहनकर राजमहल में आया. इससे राजा-रानी को उनके पुत्र की कुशलता का संकेत मिला. बाद में राजा-रानी कौवे का पीछा करते हुए घुघुती तक जा पहुंचे. जहां उन्होंने देखा की कौवे उसकी रक्षा में लगे हुए हैं.

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घुघुतिया बनाती महिलाएं.

पढ़ें-CM त्रिवेंद्र ने अधिकारियों की ली बैठक, स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट निर्माणकार्य में तेजी लाने के दिए निर्देश

तब से ही राजा ने हर साल उत्तरायणी के दिन घुघुतिया त्योहार मनाने का फैसला लिया. जिसमें कौवों को विशेष भोग लगाने की व्यवस्था की गई. तभी से कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार के दिन आटे में गुड़ मिलाकर पक्षी की तरह के घुघुतों के आकार के स्वादिष्ट पकवानों की माला तैयार करने और कौवों को पुकारने का रिवाज है. कौवे और पक्षियों से प्रेम करने का संदेश देने वाले इस घुघुतिया त्योहार की परंपरा आज भी कुमाऊं में जीवित है.

द्वाराहाट: अल्मोड़ा में कभी एक दौर ऐसा भी था जब दोहरी-तिहरी घुघुतों की माला पहन कर बच्चे, वृद्ध और महिलाएं कौवोंं को बुलाकर उत्तरायणी का स्वागत किया करते थे.आज धीरे-धीरे ये परंपरा लुप्त होती जा रही है. पलायन और समय के अभाव के कारण लोग इन पुरानी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं. उस दौर में जिन घरों में कौवों को घुघुते खाने को मिलते थे, वहां आज ताले लटके हैं. रोजगार की तलाश में यहां से लोग ही बल्कि त्योहारों की चमक भी 'पलायन' कर चुकी है, जो कि चिंता का विषय है.

फीकी दिखी घुघुतिया पर्व की रौनक.

क्या है घुघुतिया पर्व की जनश्रुति
कुमाऊं की वादियों में प्रचलित एक जनश्रुति के अनुसार कुमाऊं के चंद्रवंशी राजा कल्याण चंद्र को बागेश्वर में भगवान बागनाथ की तपस्या के बाद राज्य का एकलौता उत्तराधिकारी निर्भय चंद्र प्राप्त हुआ. जिसे रानी प्यार से घुघुती कहती थी. पर्वतीय इलाके में घुघुती एक पक्षी को कहा जाता है . राजा का यह पुत्र भी एक पक्षी की तरह ही राजा की आंखों का तारा था. उस बच्चे को कौवे के साथ विशेष लगाव था. जब भी बच्चे को खाना दिया जाता था, तब कौवे उसके आस-पास ही रहते थे.

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घुघुतों के पकवान.

पढ़ें-मकर संक्रांति: हरकी पैड़ी पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

एक बार राजा के मंत्री ने षड्यंत्र कर राज्य प्राप्त करने की नीयत से घुघुती का अपहरण कर लिया. वह उसे जंगल में फेंक आया. जहां उसके मित्र रहे कौवों ने उसकी मदद की. इधर, राजमहल से बच्चे के अपहरण से राजा-रानी बहुत परेशान हुए. उनका कोई भी गुप्तचर घुघुती का पता नहीं लगा पाया. तभी रानी की नजर एक कौवे पर पड़ी, वह बार-बार उड़कर राजमहल में आ जाता था. उसी समय कौवा घुघुती के गले में पड़ी मोतियों की माला पहनकर राजमहल में आया. इससे राजा-रानी को उनके पुत्र की कुशलता का संकेत मिला. बाद में राजा-रानी कौवे का पीछा करते हुए घुघुती तक जा पहुंचे. जहां उन्होंने देखा की कौवे उसकी रक्षा में लगे हुए हैं.

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घुघुतिया बनाती महिलाएं.

पढ़ें-CM त्रिवेंद्र ने अधिकारियों की ली बैठक, स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट निर्माणकार्य में तेजी लाने के दिए निर्देश

तब से ही राजा ने हर साल उत्तरायणी के दिन घुघुतिया त्योहार मनाने का फैसला लिया. जिसमें कौवों को विशेष भोग लगाने की व्यवस्था की गई. तभी से कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार के दिन आटे में गुड़ मिलाकर पक्षी की तरह के घुघुतों के आकार के स्वादिष्ट पकवानों की माला तैयार करने और कौवों को पुकारने का रिवाज है. कौवे और पक्षियों से प्रेम करने का संदेश देने वाले इस घुघुतिया त्योहार की परंपरा आज भी कुमाऊं में जीवित है.

Intro:द्वाराहाट अल्मोड़ा कभी कोई जमाना था जब दोहरी तिहरी घुघुतौं की माला पहन कर हर पहाड़ी बालक हो या वृद्ध या महिला कौवोंं को बुलाकर उत्तरायणी त्यौहार का स्वागत किया करते थे। पर आज यह लोग परंपरा लुप्त होती जा रही है। और पहाड़ में कौवे भी उत्तरायणी के दिन निराश होकर चले जाते हैं। जिन मकानों में घुघुते- बड़े खाने को मिलते थे वहां ताले लटके हैं। वहां के स्वामी रोजगार की तलाश में पलायन करके वहां से चले गए हैं । यह चिंता का विषय है कि हम आज न केवल पहाड़ से बल्कि उस अपनी हिमालयी विराट लोक संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं।Body:द्वाराहाट अल्मोड़ा कभी कोई जमाना था जब दोहरी तिहरी घुघुतौं की माला पहन कर हर पहाड़ी बालक हो या वृद्ध या महिला कौवोंं को बुलाकर उत्तरायणी त्यौहार का स्वागत किया करते थे। पर आज यह लोग परंपरा लुप्त होती जा रही है। और पहाड़ में कौवे भी उत्तरायणी के दिन निराश होकर चले जाते हैं। जिन मकानों में घुघुते- बड़े खाने को मिलते थे वहां ताले लटके हैं। वहां के स्वामी रोजगार की तलाश में पलायन करके वहां से चले गए हैं । यह चिंता का विषय है कि हम आज न केवल पहाड़ से बल्कि उस अपनी हिमालयी विराट लोक संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं।Conclusion:घुघुतिया पर्व की बारे में जनश्रुति

कुमाऊ की वादियों में प्रचलित एक स्थानीय जन श्रुति के अनुसार कुमाऊं के चंद्रवंशी राजा कल्याण चंद्र को बागेश्वर में भगवान बागनाथ की तपस्या के उपरांत राज्य का एकलौता उत्तराधिकारी पुत्र निर्भय चंद्र प्राप्त हुआ। जिसे रानी प्यार से घुघुती कहती थी। पर्वतीय इलाके के एक पक्षी को कहा जाता है । राजा का यह पुत्र भी एक पक्षी की तरह राजा की आंखों का तारा था। उस बच्चे की साथ कौवौ का विशेष लगाव रहता था। जब बच्चे को खाना दिया जाता था। तब कौवे उसकी आस-पास रहते थे।

एक बार राजा के मंत्री ने षड्यंत्र कर राज्य प्राप्त करने की नियत से घूधुती राजा का बेटे का अपहरण कर लिया। वह उस मासूम को जंगल में फेंक आया पर मित्र को कौवे वहां भी उसकी मदद करते रहे। इधर राज महल से बच्चे का अपहरण होने से राजा बहुत परेशान थे । कोई गुप्तचर भी पता नहीं लगा पाया। तभी रानी की नजर कौवे पर पड़ी । वह बार-बार उड़ता फिर राज महल में आ जाता उसी समय कौवा घूघुती के गले में पड़ी मोतियों की माला को राज महल में आया इसे रानी को पुत्र की कुशलता का संकेत मिला और रानी ने यह बात राजा को बताई। उस कौवे का पीछा करने पर राजा का पुत्र जंगल में मिल गया। वहां उसकी चारों तरफ कौवे उसकी रक्षा करते ही रहे थे।

राजा को जब यह बात पता चली कि कौवौ ने उसके पुत्र की जान बचाई तो उसने प्रतिवर्ष उत्तरायणी के दिन घुघुतिया त्यौहार मनाने का फैसला लिया। जिसमें कौवौ को विशेष भोग लगाने की व्यवस्था की गई। तभी से कुमाऊं में घुघुतिया त्यौहार के दिन आटे में गुड़ मिलाकर पक्षी की तरह के घुघुतौ के आकार के स्वादिष्ट पकवानों की माला तैयार करने और कौवों को पुकारने की प्रथा प्रचलित है । कौवे आदि पक्षियों से प्रेम करने का संदेश देने वाले इस घुघुतिया त्यौहार की परंपरा आज भी कुमाऊं आंचल में जीवित है।
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