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जागेश्वर में महाशिवरात्रि की धूम, इसी मंदिर से शुरू हुई थी शिवलिंग की पूजा - Shivratri festival 2022

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जागेश्वर धाम भगवान शिव की तपोस्थली रही है. मान्यता है कि यहां महामृत्युंजय जाप करने से मृत्यु तुल्य कष्ट टल जाते हैं. हर साल शिवरात्रि को यहां श्रद्धालु दूर-दूर से पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. मान्यता है कि सच्चे मन से भगवान आशुतोष की उपासना करने से सारे मनोरथ पूरे होते हैं.

Almora Jageshwar Dham
जागेश्वर धाम
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Published : Mar 1, 2022, 9:28 AM IST

Updated : Mar 1, 2022, 9:45 AM IST

अल्मोड़ा: देशभर में आज शिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. तमाम शिव मंदिरों में दर्शनों के लिए सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है. अल्मोड़ा के विश्वप्रसिद्ध शिव के धाम जागेश्वर में भी शिवरात्रि की धूम मची हुई है. यहां सुबह से ही पूजा पाठ के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई. देश के विभिन्न राज्यों से आये भक्त यहां जलाभिषेक, रुद्राभिषेक कर शिव भक्ति में रमे हुए हैं. शिवरात्रि के अवसर पर जागेश्वर धाम का विशेष महत्व माना जाता है. मान्यता है कि यहां शिव के मंत्र जाप से ही मृत्यु तुल्य संकट टल जाते हैं.

मंदिर के पुजारी केशव भट्ट ने बताया कि शिवरात्रि के अवसर पर जागेश्वर में भगवान शिव के दर्शनों और जलाभिषेक का काफी महत्व है. अन्य दिनों के मुकाबले शिवरात्रि में इसका लाभ हजार गुना ज्यादा मिलता है. आज के दिन यहां प्रातःकाल 4 बजे से रात के 12 बजे तक 4 पहर में पूजा होती है, जिसका अलग-अलग महत्व है. जागेश्वर धाम में शिवरात्रि के मौके पर महामृत्युंजय मंदिर में आयोजित होने वाली विशेष पूजा अर्चना के बारे में मान्यता है कि निसंतान महिलाओं की ओर से यहां की जाने वाली तपस्या का फल उन्हें जरूर मिलता है.

जागेश्वर में महाशिवरात्रि की धूम.
पढ़ें-देवभूमि के इस मंदिर से शुरू हुई शिवलिंग की पूजा, महादेव की रही है तपोभूमि

शिवरात्रि के दिन तपस्या कर भगवान शिव की पूजा अर्चना करने वाली महिलाओं को शिवरात्रि के दिन उपवास रखना होता है. जिसके बाद ब्रह्मकुंड में स्नान और शाम की पूजा के बाद महिलाएं हाथ में गोबर और उसके ऊपर दीया रखकर रातभर खड़े रहकर भगवान भोले की आराधना करतीं हैं. अगले दिन सुबह पूजा अर्चना के बाद पुजारी महिला के हाथ से दीए को उतारते हैं. बता दें कि, अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण देवदार के घने जंगलों के बीच जागेश्वर धाम स्थित है. जहां भगवान शिव महामृत्युंजय के रूप में विराजमान हैं. जागेश्वर धाम में 125 मंदिर समूह विराजमान हैं, जो ऐतिहासिक एवं पुरातत्व दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर हैं. इन मंदिर समूह का निर्माण 7 से 14वीं सदी के विभिन्न कालखंडों में हुआ माना जाता है.

पुराणों और मान्यताओं के अनुसार जागेश्वर धाम भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. सप्तर्षियों की ओर से शिव को श्राप देने के बाद यहीं से भगवान शिव की पूजा लिंग रूप में शुरू हुई. शिवरात्रि और सावन महीने में शिव की पूजा-अर्चना और अनुष्ठान का विशेष महत्व माना जाता है.

अल्मोड़ा: देशभर में आज शिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. तमाम शिव मंदिरों में दर्शनों के लिए सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है. अल्मोड़ा के विश्वप्रसिद्ध शिव के धाम जागेश्वर में भी शिवरात्रि की धूम मची हुई है. यहां सुबह से ही पूजा पाठ के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई. देश के विभिन्न राज्यों से आये भक्त यहां जलाभिषेक, रुद्राभिषेक कर शिव भक्ति में रमे हुए हैं. शिवरात्रि के अवसर पर जागेश्वर धाम का विशेष महत्व माना जाता है. मान्यता है कि यहां शिव के मंत्र जाप से ही मृत्यु तुल्य संकट टल जाते हैं.

मंदिर के पुजारी केशव भट्ट ने बताया कि शिवरात्रि के अवसर पर जागेश्वर में भगवान शिव के दर्शनों और जलाभिषेक का काफी महत्व है. अन्य दिनों के मुकाबले शिवरात्रि में इसका लाभ हजार गुना ज्यादा मिलता है. आज के दिन यहां प्रातःकाल 4 बजे से रात के 12 बजे तक 4 पहर में पूजा होती है, जिसका अलग-अलग महत्व है. जागेश्वर धाम में शिवरात्रि के मौके पर महामृत्युंजय मंदिर में आयोजित होने वाली विशेष पूजा अर्चना के बारे में मान्यता है कि निसंतान महिलाओं की ओर से यहां की जाने वाली तपस्या का फल उन्हें जरूर मिलता है.

जागेश्वर में महाशिवरात्रि की धूम.
पढ़ें-देवभूमि के इस मंदिर से शुरू हुई शिवलिंग की पूजा, महादेव की रही है तपोभूमि

शिवरात्रि के दिन तपस्या कर भगवान शिव की पूजा अर्चना करने वाली महिलाओं को शिवरात्रि के दिन उपवास रखना होता है. जिसके बाद ब्रह्मकुंड में स्नान और शाम की पूजा के बाद महिलाएं हाथ में गोबर और उसके ऊपर दीया रखकर रातभर खड़े रहकर भगवान भोले की आराधना करतीं हैं. अगले दिन सुबह पूजा अर्चना के बाद पुजारी महिला के हाथ से दीए को उतारते हैं. बता दें कि, अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण देवदार के घने जंगलों के बीच जागेश्वर धाम स्थित है. जहां भगवान शिव महामृत्युंजय के रूप में विराजमान हैं. जागेश्वर धाम में 125 मंदिर समूह विराजमान हैं, जो ऐतिहासिक एवं पुरातत्व दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर हैं. इन मंदिर समूह का निर्माण 7 से 14वीं सदी के विभिन्न कालखंडों में हुआ माना जाता है.

पुराणों और मान्यताओं के अनुसार जागेश्वर धाम भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. सप्तर्षियों की ओर से शिव को श्राप देने के बाद यहीं से भगवान शिव की पूजा लिंग रूप में शुरू हुई. शिवरात्रि और सावन महीने में शिव की पूजा-अर्चना और अनुष्ठान का विशेष महत्व माना जाता है.

Last Updated : Mar 1, 2022, 9:45 AM IST
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