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ऐसा रहस्यमय मंदिर! जहां माता की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है अपना रूप, जाने मान्यता - अल्मोड़ा लेटेस्ट न्यूज

कहा जाता है कि उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवातों का वास है. नवरात्रि के अवसर पर हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी काफी मान्यता है और यहां दूर-दूर से भक्त नवरात्रि में माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं. माता के जिस मंदिर की हम बात कर है, वो उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा जिले में स्थित है.

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Published : Mar 26, 2023, 4:03 AM IST

अल्मोड़ा में माता स्याही देवी की महिमा.

अल्मोड़ा: चंद्रवंश के राजाओं की राजधानी रही अल्मोड़ा नगरी सांस्कृतिक ऐतिहासिक सहित धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. अष्ठ भैरव, नव दुर्गा और पंच गणेश के मंदिरों से घिरी इस नगरी में दूर-दूर से पर्यटक इन मंदिरों में दर्शन करने आते हैं, लेकिन नवरात्र के अवसर आज हम आपको अल्मोड़ा के प्रसिद्ध माता के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास काफी रोचक है और इसकी मान्यता भी माता के अन्य मंदिरों से काफी अलग है. इसीलिए यहां साल भी भक्तों की भीड़ लगी रहती है.

अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर हवालबाग ब्लॉक में शीतलखेत की ऊंची पहाड़ियों पर जंगल के बीच माता स्याही देवी का प्राचीन मंदिर है, जहां भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. माता स्याही देवी के मंदिर से जुड़ी सबसे रोचक बात ये है कि इस मंदिर में माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है. स्याही देवी मंदिर के पुजारी जीवन नाथ गोस्वामी ने बताया कि मंदिर में लगी माता की मूर्ति के तीन रूप दिखाई देते हैं. सुबह माता का रूप सुनहरा, दिन में काला और शाम को सांवला होता है.
पढ़ें- मां बाल सुंदरी देवी मंदिर में सदियों से छाया कर रहा ये वृक्ष, जानिए क्या है धार्मिक महत्व

पुजारी जीवन नाथ गोस्वामी ने मंदिर से जुड़ी एक और अनोखी बता बताई. उनके मुताबिक मंदिर में लगे एक देवदार एवं दो बांज के पेड़ों से मंदिर के ऊपर शेर की आकृति बनती है जो दूर से साफ दिखाई देती है. इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण निर्माण कत्यूरी शासन काल में हुआ था और कत्यूरी राजाओं ने इस मंदिर को एक रात में बनवाया था.

पुजारी जीवन नाथ गोस्वामी के मुताबिक ये मंदिर पहले वर्तमान स्थान से करीब आधा किलोमीटर दूर घने जंगल में था. बताया जाता है कि उस समय वहां जंगली जानवरों का भय रहता है. इसीलिए बहुत ज्यादा भक्त वहां नहीं जा पाते थे. इसीलिए बाद में कत्यूरी राजाओं ने इस मंदिरा का निर्माण शीतलखेत की ऊंची पहाड़ियों पर कराया है. पुराने मंदिर में कुछ दिनों तक स्वामी विवेकानंद ने तपस्या भी की थी.
पढ़ें- Chaitra Navratri 2023: तारा माई के दरबार में अटल समेत कई दिग्गज नेता लगा चुके अर्जी, एकांतवास में दिन-रात चलती है आराधना

मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहा है. नवरात्रि में तो दूर-दूर से भक्त माता स्याही देवी के दर्शन और आशिर्वाद प्राप्त करने आते हैं. भक्त शंकर दत्त ने बताया कि उन्हें मंदिर में आकर बड़ी शांति मिलती है. उन्होंने हर मनोकामना की माता के दरबार में पूरी हुई है. वहीं, हल्द्वानी से दर्शन करने आई नीमा रूबाली ने बताया कि स्याही देवी माता सभी की मनोकामना पूरी करती है. वह पिछले सात वर्षों से माता के मंदिर में आ रही हैं. आज वह मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर में प्रसाद चढ़ाने एवं माता का आशीर्वाद लेने आई है.

अल्मोड़ा में माता स्याही देवी की महिमा.

अल्मोड़ा: चंद्रवंश के राजाओं की राजधानी रही अल्मोड़ा नगरी सांस्कृतिक ऐतिहासिक सहित धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. अष्ठ भैरव, नव दुर्गा और पंच गणेश के मंदिरों से घिरी इस नगरी में दूर-दूर से पर्यटक इन मंदिरों में दर्शन करने आते हैं, लेकिन नवरात्र के अवसर आज हम आपको अल्मोड़ा के प्रसिद्ध माता के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास काफी रोचक है और इसकी मान्यता भी माता के अन्य मंदिरों से काफी अलग है. इसीलिए यहां साल भी भक्तों की भीड़ लगी रहती है.

अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर हवालबाग ब्लॉक में शीतलखेत की ऊंची पहाड़ियों पर जंगल के बीच माता स्याही देवी का प्राचीन मंदिर है, जहां भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. माता स्याही देवी के मंदिर से जुड़ी सबसे रोचक बात ये है कि इस मंदिर में माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है. स्याही देवी मंदिर के पुजारी जीवन नाथ गोस्वामी ने बताया कि मंदिर में लगी माता की मूर्ति के तीन रूप दिखाई देते हैं. सुबह माता का रूप सुनहरा, दिन में काला और शाम को सांवला होता है.
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पुजारी जीवन नाथ गोस्वामी ने मंदिर से जुड़ी एक और अनोखी बता बताई. उनके मुताबिक मंदिर में लगे एक देवदार एवं दो बांज के पेड़ों से मंदिर के ऊपर शेर की आकृति बनती है जो दूर से साफ दिखाई देती है. इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण निर्माण कत्यूरी शासन काल में हुआ था और कत्यूरी राजाओं ने इस मंदिर को एक रात में बनवाया था.

पुजारी जीवन नाथ गोस्वामी के मुताबिक ये मंदिर पहले वर्तमान स्थान से करीब आधा किलोमीटर दूर घने जंगल में था. बताया जाता है कि उस समय वहां जंगली जानवरों का भय रहता है. इसीलिए बहुत ज्यादा भक्त वहां नहीं जा पाते थे. इसीलिए बाद में कत्यूरी राजाओं ने इस मंदिरा का निर्माण शीतलखेत की ऊंची पहाड़ियों पर कराया है. पुराने मंदिर में कुछ दिनों तक स्वामी विवेकानंद ने तपस्या भी की थी.
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मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहा है. नवरात्रि में तो दूर-दूर से भक्त माता स्याही देवी के दर्शन और आशिर्वाद प्राप्त करने आते हैं. भक्त शंकर दत्त ने बताया कि उन्हें मंदिर में आकर बड़ी शांति मिलती है. उन्होंने हर मनोकामना की माता के दरबार में पूरी हुई है. वहीं, हल्द्वानी से दर्शन करने आई नीमा रूबाली ने बताया कि स्याही देवी माता सभी की मनोकामना पूरी करती है. वह पिछले सात वर्षों से माता के मंदिर में आ रही हैं. आज वह मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर में प्रसाद चढ़ाने एवं माता का आशीर्वाद लेने आई है.

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