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संस्कृत के संरक्षण और संवर्धन पर होती हैं बड़ी-बड़ी बातें, स्कूलों में दिखती है सरकार के दावों की सच्चाई

उत्तराखंड राज्य गठन के 19 साल बाद भी द्वितीय राज्यभाषा संस्कृत सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गई है. किसी भी सरकार ने संस्कृत की ओर ध्यान नहीं दिया. आलम ये है कि राज्य के लगभग 90 संस्कृत विद्यालयों में से कई विद्यालयों की बिल्डिंग काफी जर्जर स्थिति में है और कई विद्यालय शिक्षकों की बाट जोह रहे हैं.

संस्कृत के संरक्षण की मांग.
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Published : Aug 21, 2019, 6:58 PM IST

ऋषिकेश: संस्कृत भाषा को लेकर राजनीतिक मंचों से बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती हैं. सरकार संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए बड़े-बड़े दावे करती नजर आती है. लेकिन संस्कृत भाषा की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. उत्तराखंड राज्य में संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालयों की संख्या लगभग 90 है. बावजूद इसके इन विद्यालयों की स्थिति दयनीय है. कई विद्यालय जर्जर स्थिति में हैं और कई विद्यालय शिक्षकों की बाट जोह रहे हैं.

संस्कृत के संरक्षण की मांग.

बता दें कि उत्तराखंड में संस्कृत भाषा को द्वितीय राज्य भाषा का दर्जा प्राप्त है. बावजूद इसके राज्य के अधिकतर संस्कृत विद्यालय जर्जर हालत में हैं. जहां छात्रों के बैठने के लिए भी जगह नहीं है. वहीं शिक्षक विहीन चल रहे कई विद्यालय बंदी की कगार पर हैं. कुछ विद्यालयों में प्रबंधकीय व्यवस्था से रखे गए शिक्षकों का मानदेय मात्र 500 से 2000 रुपये है. शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने अभी तक संस्कृत भाषा के लिए सिर्फ घोषणा ही की है, उसके अलावा कुछ काम नहीं किया.

पढ़ें: आयुर्वेद निदेशालय के लिपिक पर युवती ने लगाया दुष्कर्म का आरोप, मुकदमा दर्ज

सरकार से उपेक्षित संस्कृत के शिक्षक अब कार्यक्रम का आयोजन कर मंत्रियों को आमंत्रित कर रहे हैं. इस उम्मीद में कि सरकार संस्कृत स्कूलों की सुध ले. इसी कड़ी में आज दर्शन संस्कृत महाविद्यालय में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें कृषि मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को आमंत्रित कर संस्कृत के उत्थान के लिए मांगे रखी. हालांकि विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा में संस्कृत में ही शपथ ली थी. बावजूद इसके संस्कृत भाषा की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

ऋषिकेश: संस्कृत भाषा को लेकर राजनीतिक मंचों से बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती हैं. सरकार संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए बड़े-बड़े दावे करती नजर आती है. लेकिन संस्कृत भाषा की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. उत्तराखंड राज्य में संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालयों की संख्या लगभग 90 है. बावजूद इसके इन विद्यालयों की स्थिति दयनीय है. कई विद्यालय जर्जर स्थिति में हैं और कई विद्यालय शिक्षकों की बाट जोह रहे हैं.

संस्कृत के संरक्षण की मांग.

बता दें कि उत्तराखंड में संस्कृत भाषा को द्वितीय राज्य भाषा का दर्जा प्राप्त है. बावजूद इसके राज्य के अधिकतर संस्कृत विद्यालय जर्जर हालत में हैं. जहां छात्रों के बैठने के लिए भी जगह नहीं है. वहीं शिक्षक विहीन चल रहे कई विद्यालय बंदी की कगार पर हैं. कुछ विद्यालयों में प्रबंधकीय व्यवस्था से रखे गए शिक्षकों का मानदेय मात्र 500 से 2000 रुपये है. शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने अभी तक संस्कृत भाषा के लिए सिर्फ घोषणा ही की है, उसके अलावा कुछ काम नहीं किया.

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सरकार से उपेक्षित संस्कृत के शिक्षक अब कार्यक्रम का आयोजन कर मंत्रियों को आमंत्रित कर रहे हैं. इस उम्मीद में कि सरकार संस्कृत स्कूलों की सुध ले. इसी कड़ी में आज दर्शन संस्कृत महाविद्यालय में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें कृषि मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को आमंत्रित कर संस्कृत के उत्थान के लिए मांगे रखी. हालांकि विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा में संस्कृत में ही शपथ ली थी. बावजूद इसके संस्कृत भाषा की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

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ऋषिकेश--भले ही उत्तराखंड राज्य पूरे देश का ऐसा राज्य हो जंहा पर संस्कृत को राज्य की दितीय भाषा का दर्जा प्राप्त हो लेकिन इसकी हकीकत कुछ और ही है उत्तराखंड में संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालय की संख्या करीब 90 है लेकिन इनमे से अधिकांश की स्थिति बेहद बदहाल है अधिकतर विद्यालय शिक्षकों की बाट जोह रहे है जिससे छात्रों का भविष्य अंधकारमय बना है।


Body:वी/ओ-- संस्कृत भाषा को लेकर भले ही राजनेतिक मंचो  से बड़ी बड़ी घोषणाये की जाती हो लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती नजर आती है अधिकतर संस्कृत विद्यालय जरजर हालत में है जंहा छात्रों के ले बेठने के लिए जगह नहीं है वही शिक्षक विहीन चल रहे कई विद्यालय बंदी की कगार पर है कुछ विद्यालयों में प्रबंधकीय व्यवस्था से रखे गए शिक्षकों का मानदेय बेहद चोकाने वाला है उन्हें मात्र 500 से 2000 तक का मानदेय ही दिया जा रहा है शिक्षक भी इस आस में पढ़ाने  के लिए मजबूर है की जब सरकार नियुक्ति करेगी तो उन्हें मोका मिलेगा लेकिन सरकार की उपेक्षा इन पर भारी पड़ रही है शिक्षको का कहना है की सरकार ने अभी तक संस्कृत के लिए घोषणा के अतिरिक्त कार्य नहीं किया।

बाइट – जितेंद्र प्रसाद भट्ट (अस्थायी संस्कृत शिक्षक )
बाइट –सुशील कुमार नौटियाल (अस्थायी संस्कृत शिक्षक )

 वी /ओ – सरकार से उपेक्षित  संस्कृत शिक्षक  अब बाकायदा कार्यक्रम का आयोजन कर  उसमें  विधायक और मंत्रियों को आमंत्रित कर  मंच के माध्यम से अपनी मांगे रख रहे हैं  इस उम्मीद में  कि सरकार संस्कृत स्कूलों की सुध ले  आज भी  दर्शन संस्कृत महाविद्यालय  मैं एक कार्यक्रम आयोजित किया गया किया गया जिसमे कृषि मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को आमंत्रित किया गया और उनसे संस्कृत के उत्थान के लिए संस्कृत छात्रों और शिक्षकों ने अपनी कुछ मांगे रखी थी, हालांकि विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र ने संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए प्रयासरत थे उन्होंने विधानसभा में संस्कृत में ही शपथ ली थी और उन्ही के प्रयास से विधानसभा में संस्कृत में लिखी पट्टिकाएं भी लगी हैं ।

बाईट --जनार्दन कैरवान (अस्थायी संस्कृत शिक्षक )




Conclusion:वी/ओ-- उत्तराखंड राज्य गठन क्या 19 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गया है किसी भी सरकार ने संस्कृत की ओर ध्यान नहीं दिया आलम यह हो गया है कि ऋषिकेश में संस्कृत विद्यालयों पर भू माफियाओं का कब्जा होता जा रहा है साथ ही शिक्षकों और छात्रों का भी भविष्य अंधकार में लटका दिखाई दे रहा है अगर समय रहते सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो संस्कृत पूरी तरह से विलुप्त हो जाएगी।

पीटीसी--विनय पाण्डेय ऋषिकेश
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