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जलियांवाला बाग कांड के चश्मदीद के बेटे ने ईटीवी भारत को बताई 13 अप्रैल 1919 की दिल दहला देने वाली हकीकत

जलियांवाला बाग की घटना के चश्मदीद रहे राजगुरु ऋषि भारद्वाज के बेटे गोपाल भारद्वाज से ईटीवी भारत की खास बातचीत

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज.
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Published : Apr 13, 2019, 6:43 PM IST

मसूरी: पूरा देश जलियांवाला बाग की 100वीं बरसी पर शहीदों को याद कर रहा है. 13 अप्रैल 1919 का वो काला दिन जब अंग्रजी हुकुमत ने जलियांवाला बाग में मौजूद हजारों निर्दोश लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी. जिसे याद कर आज भी लोगों के आखें नम हो जाती हैं. वहीं, जलियांवाला बाग की घटना के चश्मदीद रहे राजगुरु ऋषि भारद्वाज के बेटे गोपाल भारद्वाज से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की और जलियांवाला बाग कांड के कई राज खोले.

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज.

मसूरी के इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि उनके पिता राजगुरु ऋषि भारद्वाज जलियांवाला बाग कांड के दिन वहीं मौजूद थे. जिन्होंने बड़ी मुश्किलों से दीवार फांद कर अपनी जान बचाई थी. अपने पिता के बारे में बताते हुए गोपाल भारद्वाज ने कहा कि उनके पिता अंग्रेजों की सरकार में सरकारी शिक्षक थे. जलियांवाला बाग कांड के बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और मसूरी आ गए.

पढ़ें: जलियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे, शहीदों को नमन

गोपाल भारद्वाज ने बताया कि 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का पर्व था. इस दिन हजारों लोग रोलेट एक्ट, राष्ट्रवादी नेताओं और डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए थे. इस दौरान करीब 1 बजे जनरल रेजीनॉल्ड डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली. जिसपर जनरल डायर करीब 4 बजे अपने दफ्तर से 150 सिपाहियों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचे.

जलियावाला बाग तीन तरफ से ऊंची-ऊंची दीवारों से गिरा हुआ था. बाग में अंदर जाने और बाहर आने के लिए एक ही छोटा सा रास्ता था. जिसे जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ घेर लिया था. जिससे वहां मौजूद लोगों को भागने का मौका नहीं मिला और जनरल डायर ने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल औडवायर के आदेश पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी. जिसमें सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया.

गोपाल ने बताया कि उस वक्त की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में कम से कम हजार लोग मारे गए और दो हजार के करीब घायल हुए थे. वहीं, अंग्रेज सरकार के आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई. जलियांवाला बाग की इस घटना को ब्रिटेन के कुछ अखबारों ने इतिहास का सबसे बड़ा कत्लेआम करार दिया था.

गोपाल भारद्वाज ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को अपने इतिहास को संजोए रखने की जरूरत है. साथ ही उन लोगों के बलिदान को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में हजारों लोग ऐसे हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं है, क्योंकि कई लोग अंग्रेजों के जुल्मों के कारण अपना नाम गोपनीय रखते थे.

मसूरी: पूरा देश जलियांवाला बाग की 100वीं बरसी पर शहीदों को याद कर रहा है. 13 अप्रैल 1919 का वो काला दिन जब अंग्रजी हुकुमत ने जलियांवाला बाग में मौजूद हजारों निर्दोश लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी. जिसे याद कर आज भी लोगों के आखें नम हो जाती हैं. वहीं, जलियांवाला बाग की घटना के चश्मदीद रहे राजगुरु ऋषि भारद्वाज के बेटे गोपाल भारद्वाज से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की और जलियांवाला बाग कांड के कई राज खोले.

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज.

मसूरी के इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि उनके पिता राजगुरु ऋषि भारद्वाज जलियांवाला बाग कांड के दिन वहीं मौजूद थे. जिन्होंने बड़ी मुश्किलों से दीवार फांद कर अपनी जान बचाई थी. अपने पिता के बारे में बताते हुए गोपाल भारद्वाज ने कहा कि उनके पिता अंग्रेजों की सरकार में सरकारी शिक्षक थे. जलियांवाला बाग कांड के बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और मसूरी आ गए.

पढ़ें: जलियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे, शहीदों को नमन

गोपाल भारद्वाज ने बताया कि 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का पर्व था. इस दिन हजारों लोग रोलेट एक्ट, राष्ट्रवादी नेताओं और डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए थे. इस दौरान करीब 1 बजे जनरल रेजीनॉल्ड डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली. जिसपर जनरल डायर करीब 4 बजे अपने दफ्तर से 150 सिपाहियों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचे.

जलियावाला बाग तीन तरफ से ऊंची-ऊंची दीवारों से गिरा हुआ था. बाग में अंदर जाने और बाहर आने के लिए एक ही छोटा सा रास्ता था. जिसे जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ घेर लिया था. जिससे वहां मौजूद लोगों को भागने का मौका नहीं मिला और जनरल डायर ने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल औडवायर के आदेश पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी. जिसमें सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया.

गोपाल ने बताया कि उस वक्त की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में कम से कम हजार लोग मारे गए और दो हजार के करीब घायल हुए थे. वहीं, अंग्रेज सरकार के आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई. जलियांवाला बाग की इस घटना को ब्रिटेन के कुछ अखबारों ने इतिहास का सबसे बड़ा कत्लेआम करार दिया था.

गोपाल भारद्वाज ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को अपने इतिहास को संजोए रखने की जरूरत है. साथ ही उन लोगों के बलिदान को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में हजारों लोग ऐसे हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं है, क्योंकि कई लोग अंग्रेजों के जुल्मों के कारण अपना नाम गोपनीय रखते थे.

Intro:मसूरी जलियांवाला बाग कांड के सो साल
रिपोर्टर सुनील सोनकर
एंकर वीओ
13 अप्रैल 1919 यह तारीख भारत की आजादी के इतिहास में ऐसी घटना के साथ दर्ज है जिसको सोच कर ही सिहरन होने लगती है पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण सभा कर रहे हजारों लोगों पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसाई जलियांवाला बाग से निकलने का एक ही संतरा रास्ता था और उस पर अंग्रेजी फौज खड़ी थी ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग अंग्रेजो की गोलाबारी घबराई बहुत बसी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गई निकासी का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचल गए और कई गोलियों की चपेट में आ गए यह नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास का एक काला अध्याय है जिसको लेकर मसूरी के इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते है कि उनके पिता राजगुरु ऋषि भारद्वाज भी जलियांवाला बाग कांड के दिन वहीं मौजूद थे और उनके द्वारा बड़ी मुश्किलों से दीवार फांद कर अपनी जान बचाई गई थी परंतु उस घटना में उनका एक पैर हमेशा के लिए खराब हो गया था उन्होंने कहा कि उनके पिता अंग्रेजों के यहां सरकारी शिक्षक थे और जलियांवाला बाग कांड के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और मसूरी आ गए परंतु तब भी उस समय कांग्रेस के बड़े नेताओं के संपर्क में थे और कई लोग जैसे महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू आदि के साथ वह पत्राचार किया करते थे जिनके सबूत उनके पास आज भी मौजूद है


Body:गोपाल भारद्वाज कहते हैं कि 100 साल पहले वैशाखी के पर्व के दिन हजारों लोग रोलेट एक्ट और राष्ट्रवादी नेताओं सतपाल एवं डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए थे इस दिन करीब 12:40 पर जनरल रेजीनल्ड डायर जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली डायर करीब 4:00 बजे अपने दफ्तर से डेढ़ सौ सिपाहियों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचा जनरल डायर ने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल औडवायर के आदेश पर अंधाधुंध गोलीबारी कर इनमें से सैकड़ों की मौत की नींद सुला दिया था डायर अपने सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग को घेर लिया था लोगों को भागने का मौका भी नहीं मिल पाया क्योंकि जलियावाला बाग़ में तीन ऊंची ऊंची दीवारों से गिरा था और इसमे प्रवेश और निकलने का एक ही छोटा सा रास्ता था अंग्रेजों की बंदूक तब तक चलती रही जब तक की गोलियां खत्म नहीं हो गई कई लोग अपनी जान बचाने के लिए बाग में बने कुएं में कूद गए उस समय जलियावाला बाग़ की जमीन का रंग लाल हो गयी थी


Conclusion:उन्होंने बताया कि इस घटना में उस समय कांग्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में कम से कम हजार लोग मारे गए और दो हजार के करीब घायल हुए अंग्रेज सरकार के आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई वह कुए से ही 120 शव बरामद हुए ब्रिटेन के कुछ अखबारों ने उस समय इस आधुनिक इतिहास का सबसे बडाकत्लेआम करार दिया था गोपाल भारद्वाज ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को अपने इतिहास को संजोए जाने के साथ उन लोगों के बलिदान को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और हजारों लोग ऐसे हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं है क्योंकि कई लोग अंग्रेज के जुल्मों के कारण अपना नाम के साथ परिवारों का नाम भी गोपनीय रखते थे
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