मसूरी: पूरा देश जलियांवाला बाग की 100वीं बरसी पर शहीदों को याद कर रहा है. 13 अप्रैल 1919 का वो काला दिन जब अंग्रजी हुकुमत ने जलियांवाला बाग में मौजूद हजारों निर्दोश लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी. जिसे याद कर आज भी लोगों के आखें नम हो जाती हैं. वहीं, जलियांवाला बाग की घटना के चश्मदीद रहे राजगुरु ऋषि भारद्वाज के बेटे गोपाल भारद्वाज से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की और जलियांवाला बाग कांड के कई राज खोले.
मसूरी के इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि उनके पिता राजगुरु ऋषि भारद्वाज जलियांवाला बाग कांड के दिन वहीं मौजूद थे. जिन्होंने बड़ी मुश्किलों से दीवार फांद कर अपनी जान बचाई थी. अपने पिता के बारे में बताते हुए गोपाल भारद्वाज ने कहा कि उनके पिता अंग्रेजों की सरकार में सरकारी शिक्षक थे. जलियांवाला बाग कांड के बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और मसूरी आ गए.
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गोपाल भारद्वाज ने बताया कि 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का पर्व था. इस दिन हजारों लोग रोलेट एक्ट, राष्ट्रवादी नेताओं और डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए थे. इस दौरान करीब 1 बजे जनरल रेजीनॉल्ड डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली. जिसपर जनरल डायर करीब 4 बजे अपने दफ्तर से 150 सिपाहियों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचे.
जलियावाला बाग तीन तरफ से ऊंची-ऊंची दीवारों से गिरा हुआ था. बाग में अंदर जाने और बाहर आने के लिए एक ही छोटा सा रास्ता था. जिसे जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ घेर लिया था. जिससे वहां मौजूद लोगों को भागने का मौका नहीं मिला और जनरल डायर ने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल औडवायर के आदेश पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी. जिसमें सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया.
गोपाल ने बताया कि उस वक्त की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में कम से कम हजार लोग मारे गए और दो हजार के करीब घायल हुए थे. वहीं, अंग्रेज सरकार के आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई. जलियांवाला बाग की इस घटना को ब्रिटेन के कुछ अखबारों ने इतिहास का सबसे बड़ा कत्लेआम करार दिया था.
गोपाल भारद्वाज ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को अपने इतिहास को संजोए रखने की जरूरत है. साथ ही उन लोगों के बलिदान को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में हजारों लोग ऐसे हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं है, क्योंकि कई लोग अंग्रेजों के जुल्मों के कारण अपना नाम गोपनीय रखते थे.