हल्द्वानी: पर्यावरण को बचाने के लिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है. प्रदूषण के लिए आधुनिक जीवनचर्या भी कम जिम्मेदार नहीं है.आधुनिक जीवनशैली से जुड़ी तमाम गलत आदतों से पर्यावरण को हद दर्जे का नुकसान होता है. पर्यावरण संरक्षण की सरकारी पहल अपनी जगह, आम लोगों में भी समझ और संवेदनशीलता होना जरूरी है.क्योंकि लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि इससे आम जनजीवन भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. बात अगर कुमाऊं के सबसे बड़े महानगर हल्द्वानी की करें तो यहां ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा है.
हल्द्वानी में बात अगर ध्वनि प्रदूषण की करें तो यहां लगातार ध्वनि प्रदूषण का लेवल बढ़ता जा रहा है. ध्वनि प्रदूषण के मानक के अनुरूप रात को 55 और दिन में 65 डेसीबल होनी चाहिए जबकि हल्द्वानी शहर में वर्तमान समय में 75.2 डेसीबल से ऊपर ध्वनि प्रदूषण हो रहा है. इसके अलावा अगर बात वायु प्रदूषण की करें तो यहां हजारों की संख्या में बिक रहे वाहन इसका सबसे बड़ा कारण है. जिले में 3 लाख 50 हजार वाहन पंजीकृत हैं, जो रोजाना वायु प्रदूषण कर वातावरण को गर्म करते हैं.
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वायु प्रदूषण के आंकड़ों पर नजर डालें तो हल्द्वानी शहर में 100 pm10 होना चाहिए जबकि वायु प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है. वर्तमान में हल्द्वानी के वातावरण में 107 . 43 pm10 प्रदूषण है. जो मानक से अधिक है और निरंतर बढ़ रहा है. ये सभी आंकड़े अप्रैल माह के हैं. मई और जून में वातावरण में प्रदूषण का लेबल और बढ़ा है.
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क्षेत्रीय पर्यावरण प्रदूषण कार्यालय के अधिकारी डीके जोशी का कहना है कि कभी साफ वातावरण के लिए जाने जाने वाला हल्द्वानी शहर दिन प्रतिदिन प्रदूषित होता जा रहा है. तो वहीं परिवहन विभाग के उप निरीक्षक देवेंद्र बिष्ट का कहना है कि वह भी लगातार वाहनों की जांच करते रहते हैं. परिवहन विभाग के आर आई देवेंद्र बिष्ट के मुताबिक फोर व्हीलर में 3% से कम कार्बन होना चाहिए. जबकि बड़े वाहन और डीजल वाहन में 5.2 प्रतिशत हार्टीज यूनिट से कम होना चाहिए तभी गाड़ियों की फिटनेस की जाती है.
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देवेंद्र बिष्ट ने बताया कि वाहनों के फिटनेस का समय एक साल होता है लेकिन वाहन स्वामी को हर 6 महीनें में इसे चैक करवाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वाहन स्वामी द्वारा प्रदूषण सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं कराने पर फिटनेस नहीं दिया जाता है.