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कराटे में 5 नेशनल मेडल, दो बार ब्लैक बेल्ट, फिर भी पंचर बना रहे हल्द्वानी के मुकेश पाल

देश और दुनिया में आए दिन जीत का जज्बा रखने वाले ऐसे तमाम लोगों के उदाहरण हमारे सामने आते हैं जो न तो कभी हार मानते हैं और न ही रुकते हैं. ऐसे ही हैं हल्द्वानी के मुकेश पाल. आर्थिक रूप से कमजोर परिवेश से ताल्लुक रखने वाले मुकेश ने साइकिल के पंचर बनाने से लेकर कराटे में नेशनल खेलने के साथ ही ब्लैक बेल्ट हासिल की है. आइए आज मुकेश पाल की कहानी से प्रेरणा लीजिए.

Haldwanis Mukesh Pal
कराटे स्टोरी
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Published : Jun 15, 2022, 12:44 PM IST

Updated : Jun 15, 2022, 3:04 PM IST

हल्द्वानी: परिस्थितियों को मात देकर जो आगे बढ़ते हैं उन्हें हर कोई सलाम करता है. सफलता भले ही देर में हासिल हो, लेकिन ऐसे लोगों का परिश्रम सैकड़ों लोगों के लिए रास्ते खोल देता है. ऐसे ही कहानी है कराटे में ब्लैक बेल्ट पाने वाले हल्द्वानी के मुकेश पाल की. पुरानी आईटीआई निवासी मुकेश पाल की जो घर की आर्थिक तंगी के कारण पढ़ नहीं पाए, लेकिन उन्होंने खेल के माध्यम से पूरे उत्तराखंड में नाम कमाया.

साइकिल के पंचर जोड़ते हैं मुकेश पाल: मुकेश पाल पिछले कई साल से साइकिल के पंचर जोड़ने का काम कर रहे हैं. उनकी दुकान रामपुर रोड पर है. 9 साल पहले उन्होंने कराटे करने का फैसला किया. ये फैसला उनके लिए आसान नहीं था. लेकिन हिम्मत दिखाते हुए उन्होंने कराटे शुरू किया और आज ये उनके लिए नेशनल प्रतियोगिताओं में खेलने के साथ ही आय का साधन भी बन गया है.
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कराटे ने बदल दी जिंदगी: मुकेश हल्द्वानी में खुद का एक कराटे ट्रेनिंग सेंटर चलाते हैं. उनकी तमन्ना है कि वह पूरे उत्तराखंड में कराटे के जरिए लोगों को शारीरिक मजबूती के लिए प्रेरित करें. हल्द्वानी के मुकेश कई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कामयाबी हासिल कर चुके हैं.

दो बार ब्लैक बेल्ट हासिल किये: साल 2017 में तमिलनाडु में उन्होंने खिताब अपने नाम किया. इसके बाद उन्होंने भीमताल में ब्लैक बेल्ट परीक्षा उत्तीर्ण की. साल 2021 में मुकेश ने एक बार फिर अपना जलवा दिखाया. दूसरी बार ब्लैक बेल्ट के हकदार बन गए. इस तरह मुकेश पाल दो-दो ब्लैक बेल्ट हासिल करने की उपलब्धि हासिल कर गए.

छह भाई-बहन हैं मुकेश पाल: मुकेश छह भाई-बहनों में तीसरे नंबर के हैं. मुकेश कहते हैं कि मैंने कभी अपने काम को बोझ नहीं समझा. सुबह वह दुकान में जाते हैं. शाम को पीलीकोठी में युवाओं को कराटे की ट्रेनिंग देते हैं. इसके अलावा वह खुद की फिटनेस पर भी ध्यान देते हैं. जिम में वर्क आउट करते हैं. मुकेश कहते हैं कि कराटे बेहद अहम होता जा रहा है. हम राज्य सरकार से बस इतना कहना चाहते हैं कि वह राज्य का नाम रोशन कर रहे युवाओं को कुछ सुविधाएं दे, ताकि बड़े मंचों पर भी युवा कमाल कर सकें. आने वाले वक्त में हो सकता है कि कराटे ओलंपिक का हिस्सा बन जाए और अगर तैयारी अभी से शुरू कर दी जाए तो भविष्य में बेहतर नतीजा मिल पाएगा.

हल्द्वानी के मुकेश पाल पिछले 9 साल से कराटे कर रहे हैं. आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ाई छूट गई, लेकिन हौसला नहीं टूटने दिया. मुकेश पाल आज बच्चों और युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं. अगर उत्तराखंड सरकार ऐसे प्रतिभाशाली युवाओं को प्रोत्साहित करे तो स्वरोजगार के साथ खेलों में राज्य का परचम बहुत ऊंचा लहराएगा.
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पांचवीं के बाद छूट गई पढ़ाई: मुकेश की पारिवारिक स्थिति आर्थिक रूप से कमजोर है. इस कारण उन्हें पांचवीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. 2015 में मुकेश ने साइकिल पंचर बनाने की दुकान खोली. तब से यही दुकान उनकी आजीविका का साधन है. मुकेश ने बताया कि बमुश्किल डेढ़ सौ से 200 रुपए रोजाना ही कमाई हो पाती है.

रोज चार घंटे करते हैं प्रैक्टिस और वर्कआउट: मुकेश सुबह से दोपहर तक अपनी साइकिल पंचर बनाने की दुकान पर बैठते हैं. इसके बाद वो बच्चों को कराटे सिखाने के साथ ही खुद भी प्रैक्टिस करते हैं. कराटे प्रैक्टिस करीब 2 घंटे चलती है. इसके बाद वो 2 घंटे तक जिम में वर्कआउट करते हैं.

डाइट के लिए चाहिए 300 रुपए प्रतिदिन: एक खिलाड़ी को रोजाना की डाइट के लिए 300 से 500 रुपए चाहिए होते हैं. लेकिन मुकेश तो मुश्किल से डेढ़ सौ से 200 रुपए प्रतिदिन ही कमा पाते हैं. ऐसे में वो एक खिलाड़ी वाली प्रॉपर डाइट नहीं ले पाते हैं. मुकेश ने बताया कि वो घर पर सबके लिए बनने वाली सब्जी रोजी और दाल चावल खाकर ही प्रैक्टिस करते हैं. मुकेश के पिता हल्द्वानी में धान मिल पर चक्की पर काम करते हैं.

नेशनल प्रतियोगिताओं में जीत चुके हैं 5 मेडल: मुकेश पाल कराटे की 6 नेशनल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं. उन्होंने पहला नेशनल 2014 में गुवाहाटी में खेला. कराटे की इस नेशनल प्रतियोगिता में मुकेश पाल ने ब्रॉन्ज मेडल जीता. मुकेश ने दूसरी नेशनल प्रतियोगिता कानपुर में 2015 में खेली. इस बार भी उन्हें थर्ड प्लेस के साथ ब्रॉन्ज मेडल मिला. तीसरी नेशनल कराटे प्रतियोगिता कोलकाता में 2016 में खेली और फिर थर्ड प्लेस के साथ ब्रॉन्ज मेडल प्राप्त किया चौथा नेशनल तमिलनाडु में 2017 में खेला और सेकंड प्लेस के साथ सिल्वर मेडल जीता. पांचवां नेशनल दिल्ली में 2018 में खेला. इस बार थर्ड प्लेस के साथ ब्रॉन्ज मेडल जीता. 2019 में नागपुर में छठवें नेशनल में फिर से सिल्वर मेडल जीता.
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5 नेशनल मेडल के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं: कराटे में 5 नेशनल मेडल जीतने और दो बार ब्लैक बेल्ट बनने के बाद भी मुकेश पाल को सरकारी नौकरी नहीं मिली. मुकेश का कहना है कि अगर उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाती तो वो और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. सरकारी नौकरी से मिलने वाली सैलरी से वो बच्चों को भी अच्छा अभ्यास करा सकते हैं.

हल्द्वानी: परिस्थितियों को मात देकर जो आगे बढ़ते हैं उन्हें हर कोई सलाम करता है. सफलता भले ही देर में हासिल हो, लेकिन ऐसे लोगों का परिश्रम सैकड़ों लोगों के लिए रास्ते खोल देता है. ऐसे ही कहानी है कराटे में ब्लैक बेल्ट पाने वाले हल्द्वानी के मुकेश पाल की. पुरानी आईटीआई निवासी मुकेश पाल की जो घर की आर्थिक तंगी के कारण पढ़ नहीं पाए, लेकिन उन्होंने खेल के माध्यम से पूरे उत्तराखंड में नाम कमाया.

साइकिल के पंचर जोड़ते हैं मुकेश पाल: मुकेश पाल पिछले कई साल से साइकिल के पंचर जोड़ने का काम कर रहे हैं. उनकी दुकान रामपुर रोड पर है. 9 साल पहले उन्होंने कराटे करने का फैसला किया. ये फैसला उनके लिए आसान नहीं था. लेकिन हिम्मत दिखाते हुए उन्होंने कराटे शुरू किया और आज ये उनके लिए नेशनल प्रतियोगिताओं में खेलने के साथ ही आय का साधन भी बन गया है.
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कराटे ने बदल दी जिंदगी: मुकेश हल्द्वानी में खुद का एक कराटे ट्रेनिंग सेंटर चलाते हैं. उनकी तमन्ना है कि वह पूरे उत्तराखंड में कराटे के जरिए लोगों को शारीरिक मजबूती के लिए प्रेरित करें. हल्द्वानी के मुकेश कई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कामयाबी हासिल कर चुके हैं.

दो बार ब्लैक बेल्ट हासिल किये: साल 2017 में तमिलनाडु में उन्होंने खिताब अपने नाम किया. इसके बाद उन्होंने भीमताल में ब्लैक बेल्ट परीक्षा उत्तीर्ण की. साल 2021 में मुकेश ने एक बार फिर अपना जलवा दिखाया. दूसरी बार ब्लैक बेल्ट के हकदार बन गए. इस तरह मुकेश पाल दो-दो ब्लैक बेल्ट हासिल करने की उपलब्धि हासिल कर गए.

छह भाई-बहन हैं मुकेश पाल: मुकेश छह भाई-बहनों में तीसरे नंबर के हैं. मुकेश कहते हैं कि मैंने कभी अपने काम को बोझ नहीं समझा. सुबह वह दुकान में जाते हैं. शाम को पीलीकोठी में युवाओं को कराटे की ट्रेनिंग देते हैं. इसके अलावा वह खुद की फिटनेस पर भी ध्यान देते हैं. जिम में वर्क आउट करते हैं. मुकेश कहते हैं कि कराटे बेहद अहम होता जा रहा है. हम राज्य सरकार से बस इतना कहना चाहते हैं कि वह राज्य का नाम रोशन कर रहे युवाओं को कुछ सुविधाएं दे, ताकि बड़े मंचों पर भी युवा कमाल कर सकें. आने वाले वक्त में हो सकता है कि कराटे ओलंपिक का हिस्सा बन जाए और अगर तैयारी अभी से शुरू कर दी जाए तो भविष्य में बेहतर नतीजा मिल पाएगा.

हल्द्वानी के मुकेश पाल पिछले 9 साल से कराटे कर रहे हैं. आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ाई छूट गई, लेकिन हौसला नहीं टूटने दिया. मुकेश पाल आज बच्चों और युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं. अगर उत्तराखंड सरकार ऐसे प्रतिभाशाली युवाओं को प्रोत्साहित करे तो स्वरोजगार के साथ खेलों में राज्य का परचम बहुत ऊंचा लहराएगा.
ये भी पढ़ें: अल्मोड़ा में शटलर लक्ष्य सेन का भव्य स्वागत, बोले- PM को पसंद आई बाल मिठाई

पांचवीं के बाद छूट गई पढ़ाई: मुकेश की पारिवारिक स्थिति आर्थिक रूप से कमजोर है. इस कारण उन्हें पांचवीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. 2015 में मुकेश ने साइकिल पंचर बनाने की दुकान खोली. तब से यही दुकान उनकी आजीविका का साधन है. मुकेश ने बताया कि बमुश्किल डेढ़ सौ से 200 रुपए रोजाना ही कमाई हो पाती है.

रोज चार घंटे करते हैं प्रैक्टिस और वर्कआउट: मुकेश सुबह से दोपहर तक अपनी साइकिल पंचर बनाने की दुकान पर बैठते हैं. इसके बाद वो बच्चों को कराटे सिखाने के साथ ही खुद भी प्रैक्टिस करते हैं. कराटे प्रैक्टिस करीब 2 घंटे चलती है. इसके बाद वो 2 घंटे तक जिम में वर्कआउट करते हैं.

डाइट के लिए चाहिए 300 रुपए प्रतिदिन: एक खिलाड़ी को रोजाना की डाइट के लिए 300 से 500 रुपए चाहिए होते हैं. लेकिन मुकेश तो मुश्किल से डेढ़ सौ से 200 रुपए प्रतिदिन ही कमा पाते हैं. ऐसे में वो एक खिलाड़ी वाली प्रॉपर डाइट नहीं ले पाते हैं. मुकेश ने बताया कि वो घर पर सबके लिए बनने वाली सब्जी रोजी और दाल चावल खाकर ही प्रैक्टिस करते हैं. मुकेश के पिता हल्द्वानी में धान मिल पर चक्की पर काम करते हैं.

नेशनल प्रतियोगिताओं में जीत चुके हैं 5 मेडल: मुकेश पाल कराटे की 6 नेशनल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं. उन्होंने पहला नेशनल 2014 में गुवाहाटी में खेला. कराटे की इस नेशनल प्रतियोगिता में मुकेश पाल ने ब्रॉन्ज मेडल जीता. मुकेश ने दूसरी नेशनल प्रतियोगिता कानपुर में 2015 में खेली. इस बार भी उन्हें थर्ड प्लेस के साथ ब्रॉन्ज मेडल मिला. तीसरी नेशनल कराटे प्रतियोगिता कोलकाता में 2016 में खेली और फिर थर्ड प्लेस के साथ ब्रॉन्ज मेडल प्राप्त किया चौथा नेशनल तमिलनाडु में 2017 में खेला और सेकंड प्लेस के साथ सिल्वर मेडल जीता. पांचवां नेशनल दिल्ली में 2018 में खेला. इस बार थर्ड प्लेस के साथ ब्रॉन्ज मेडल जीता. 2019 में नागपुर में छठवें नेशनल में फिर से सिल्वर मेडल जीता.
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5 नेशनल मेडल के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं: कराटे में 5 नेशनल मेडल जीतने और दो बार ब्लैक बेल्ट बनने के बाद भी मुकेश पाल को सरकारी नौकरी नहीं मिली. मुकेश का कहना है कि अगर उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाती तो वो और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. सरकारी नौकरी से मिलने वाली सैलरी से वो बच्चों को भी अच्छा अभ्यास करा सकते हैं.

Last Updated : Jun 15, 2022, 3:04 PM IST
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