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कांग्रेस में हरक सिंह रावत की वापसी पर फंसा पेंच, पार्टी नेताओं में दो फाड़ - Uttarakhand election result will come on March 10

भाजपा से निष्कासन के बाद हरक सिंह रावत अभी अधर में लटके हैं. कांग्रेस ज्वाइन करने की उम्मीद में हरक रविवार से दिल्ली में डेरा डाले हैं. लेकिन हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी पर कांग्रेस पार्टी ही दो फाड़ है. प्रीतम सिंह गुट जहां हरक सिंह की वापसी का स्वागत कर रहा है, वहीं हरीश रावत इसको लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. हीरा सिंह बिष्ट ने भी पार्टी को नसीहत दी है.

Harak Singh return stuck in Congress
हरक की वापसी फंसी
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Published : Jan 18, 2022, 8:50 AM IST

Updated : Jan 18, 2022, 12:31 PM IST

देहरादून: बीजेपी से निकाल दिए गए हरक सिंह रावत दिल्ली जाकर कांग्रेस का दरवाजा खटखटा रहे हैं. हरक को दिल्ली गए आज तीसरा दिन है. अभी तक उनकी कांग्रेस में ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है. ऐसी चर्चाएं जोरों पर हैं कि हरक की कांग्रेस में ज्वाइनिंग को लेकर उत्तराखंड कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में मतभेद हैं. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उनकी घर वापसी के खिलाफ हैं. वहीं, नेता प्रतिपक्ष प्रीतम और गणेश गोदियाल का रुख इस मामले में नरम है. अब गेंद कांग्रेस हाईकमान के पाले में है. हाईकमान को ही इस पर फैसला लेना है.

बीजेपी ने एक झटके में निकाल दिया: दरअसल, हरक सिंह रावत पिछले कई दिनों से कांग्रेस के बड़े नेताओं के संपर्क में थे. हालांकि, तब उन्हें एहसास नहीं रहा होगा कि बीजेपी उन्हें इतनी जल्दी 'दूध में मक्खी' की तरह निकाल फेंकेगी. आए दिन अपने बयानों से हरक बीजेपी नेतृत्व की नाक में दम किए थे, लेकिन रविवार को बीजेपी ने हरक सिंह रावत को भनक लगे बिना ही उन्हें पहले कैबिनेट मंत्री पद से बर्खास्त किया और फिर पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया.

शुभचिंतकों से मिल रहे हरक: इसके बाद से हरक सिंह रावत की दिल्ली में कांग्रेस ज्वाइन करने के लिए दौड़ चल रही है. हरक सिंह ने कांग्रेस में वापसी को लेकर कांग्रेस के अंदर अपने तमाम शुभचिंतकों के साथ कई नेताओं से भेंट भी की है. उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस हाथों-हाथ लेगी, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है.

हरीश रावत हैं सबसे बड़ा रोड़ा: दरअसल, हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी को लेकर कई मुश्किलें आन पड़ी हैं. हरीश रावत 2016 में उनकी सरकार गिराने में हरक सिंह की भूमिका को लेकर विरोध कर रहे हैं. हरदा का कहना है कि, हरक सिंह रावत की वापसी से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा. हालांकि, हरीश रावत उन्हें एक शर्त पर माफ करने को तैयार हैं, वो ये कि हरक सिंह रावत 2016 की अपनी उस गलती को मानें और सार्वजनिक माफी मांगें.

हरक की वापसी पर कांग्रेस दो फाड़: दूसरी ओर हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी को लेकर नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह खुश हैं. प्रीतम को हरक सिंह रावत से हमदर्दी भी है. हरीश रावत के विरोध को देखते हुए प्रीतम खुलकर हरक का समर्थन नहीं कर पा रहे हैं लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा है कि हरक पर फैसला पार्टी हाईकमान करेगा. बताया जा रहा है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल भी हरक की वापसी को लेकर इच्छुक हैं लेकिन वो भी हरीश रावत के तेवर देखकर खुलकर कुछ नहीं कह पा रहे, लेकिन उनके बयानों से भी झलक रहा है कि वो हरक का स्वागत करने को तैयार हैं.

दरअसल, हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी का असली रोड़ा हरीश रावत की ओर से अटकाया गया है. हालांकि उनका कहना है कि पार्टी ने अभी इस बारे में उनसे पूछा नहीं है. उन्हें उम्मीद है कि पार्टी इस विषय पर सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेगी. राज्य की राजनीति, समाज में क्या प्रतिक्रिया होगी, उसके परिणाम क्या होंगे, सभी पर विचार करने के बाद ही निर्णय होगा.

उधर, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा कि विपत्ति के समय हरक ने भाजपा का साथ दिया था, अब उन्हें जिस प्रकार निष्कासित किया है, नि:संदेह हरक सिंह आहत हुए हैं. हरक की वापसी पर निर्णय पार्टी के शीर्ष नेता लेंगे.

नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि हरक सिंह हमारे पुराने साथी-सहयोगी रहे हैं. यदि वो वापस आना चाहते हैं तो पार्टी हाईकमान इस पर निर्णय लेगा. उन्होंने सुना है कि हरक सिंह ने कांग्रेस के लिए काम करने का निर्णय किया है. यदि वो आते हैं तो पार्टी को ताकत मिलेगी.

हीरा सिंह बिष्ट भी हरक की वापसी के पक्ष में नहीं: इधर, उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और डोईवाला सीट से टिकट के दावेदार हीरा सिंह बिष्ट ने भी हरक सिंह रावत की वापसी पर नाराजगी जताई है. हीरा सिंह बिष्ट का कहना है कि कांग्रेस को पर्यटक नेताओं से सावधान रहना चाहिए. आवागमन करने वाले व कांग्रेस को पर्यटक स्थल समझने वाले राजनीतिज्ञों के बारे में पार्टी को गंभीरता से सोचना होगा. उन्होंने कहा कि अब प्रदेश अस्थिरता बर्दाश्त नहीं करेगा. प्रदेश की जनता विकास चाहती है. ऐसे खिलवाड़ करने वाले लोगों से पार्टी को सावधान रहना होगा.

प्रीतम और गोदियाल क्यों हैं हरक के पक्ष में: कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल गढ़वाल मंडल से आते हैं. नेता प्रतिपक्ष और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी गढ़वाल से हैं. हरक सिंह रावत भी गढ़वाल मंडल से ही हैं. ऐसे में इन दोनों नेताओं की सहानुभूति हरक सिंह रावत के प्रति सहज ही समझी जा सकती है. हरीश रावत कैंप का होने के बावजूद गणेश गोदियाल अगर हरक सिंह रावत की पैरवी कर रहे हैं तो समझा जा सकता है कि इसमें क्षेत्रीय प्रेम भी झलक रहा है.

सोमवार को रो पड़े थे हरक सिंह: बीजेपी ने जिस तरह हरक सिंह रावत को एक झटके में सरकार से बर्खास्त और पार्टी से निष्कासित किया उससे हरक सदमे में हैं. कल जब वो पार्टी से निकाले जाने के बाद पहली बार मीडिया के सामने आए थे तो रो पड़े थे. तब हरक ने रोते हुए कहा था कांग्रेस के लिए बिना शर्त काम करूंगा. आंसू बहाने के दौरान भी पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत भाजपा के खिलाफ तीखे तेवर अपनाए हुए थे.

ये भी पढ़ें: माफी मांगने पर हरक को मिलेगा हाथ का साथ! बहुत कुछ कहता है हरीश रावत का ये बयान

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 सिर पर हैं. उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान है. 10 मार्च को उत्तराखंड का चुनाव परिणाम आएगा. समय बहुत कम बचा है लेकिन हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी पर अभी कुहासा छाया हुआ है. प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल को हरक की घर वापसी पर कोई दिक्कत नहीं है. मामला हरीश रावत की ओर से अटका हुआ है. हरीश रावत 2016 में हरक द्वारा दिए गए अपमान को भूल नहीं पा रहे हैं. इसलिए उन्होंने शर्त रखी है कि हरक को पहले पश्चाताप करना होगा. कुल मिलाकर हरक की कांग्रेस में वापसी को लेकर उत्तराखंड कांग्रेस दो फाड़ दिख रही है.

कौन हैं हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत भारत में उत्तराखंड के राजनीतिज्ञ हैं. उनका जन्म 15 दिसंबर 1960 को हुआ. हरक सिंह रावत ने 1984 में कला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की. उन्होंने 1996 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर, उत्तराखंड से सैन्य विज्ञान में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री प्राप्त की. हरक की पत्नी का नाम दीप्ति रावत है. 1991 में हरक सिंह रावत ने पौड़ी से विधानसभा सीट से चुनाव जीता और उत्तर प्रदेश के सबसे छोटी उम्र के मंत्री बने थे. हरक सिंह रावत, 2016 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ विद्रोह करने वाले नौ विधायकों में से एक थे. कांग्रेस द्वारा निष्कासित किए जाने के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए थे.

4 सरकारों में मंत्री रहे हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत का राजनीतिक सफर देखें तो हरक 4 सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक इन चारों सरकारों में वह अपने मंत्री पद के कार्यकाल को कभी पूरा नहीं कर सके. बस उनका यही इतिहास और हरक सिंह रावत बगावती तेवर के चलते बीजेपी की चिंता का सबब बने हुए थे.

कल्याण सिंह की सरकार में युवा मंत्री बनने का अनुभव: कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिंह रावत अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय साल 1991 में पौड़ी विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने थे. इस दौरान वह बीजेपी में थे और कल्याण सिंह सरकार में उन्हें सबसे युवा मंत्री बनने का मौका मिला था. इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री का जिम्मा सौंपा था. इसे संयोग कहें या कुछ और कि मंत्री बनने के बाद राम मंदिर आंदोलन के बीच बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण मुख्यमंत्री का इस्तीफा हो गया और हरक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

ये भी पढ़ें: हरक सिंह रावत की बहू मिस इंडिया अनुकृति गुसाईं लड़ना चाहती हैं चुनाव, ये है कारण

हरक ने मनमुटाव के कारण BSP का दामन थामा: भाजपा से ही अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले हरक सिंह रावत ने मनमुटाव के कारण साल 1996 में भाजपा छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया. इसके बाद मायावती ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी दीं. लेकिन इसके बाद वे यहां भी ज्यादा समय तक नहीं ठहर सके और साल 1998 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में स्थापित होने के बाद साल 2002 के पहले चुनाव में उन्होंने लैंसडाउन से चुनाव लड़ा और विधायक के रूप में विधानसभा पहुंचे.

एनडी तिवारी सरकार में भी रहे मंत्री: इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें राजस्व, खाद्य और आपदा प्रबंधन जैसे मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री बनाया. उनके मंत्री बनने के बाद करीब 1 से डेढ़ साल में ही उन पर एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोप लगे और उन्हें अपना मंत्री पद त्यागना पड़ा. हालांकि, बाद में वे सीबीआई जांच के बाद आरोप मुक्त हुए.

विजय बहुगुणा की सरकार में भी अहम जिम्मेदारी: साल 2012 में फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई और विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें कृषि, चिकित्सा शिक्षा और सैनिक कल्याण विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इस बार कार्यकाल पूरा करने की उम्मीद थी लेकिन हरीश रावत से हुई अनबन के बाद उन्होंने 4 साल बाद यानी 2016 में अधूरे कार्यकाल में ही कांग्रेस को छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.

ये भी पढ़ें: चुनाव से पहले उत्तराखंड बीजेपी में बागियों की धाक, प्रचंड बहुमत भी दिख रहा बेबस

2017 में सात मंत्रालय संभाल रहे थे हरक सिंह: 2017 में बीजेपी के विधायक के रूप में हरक सिंह रावत उत्तराखंड विधानसभा पहुंचे. हरक को रिकॉर्ड 7 विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. उन्हें वन, पर्यावरण संरक्षण, श्रम, कौशल विकास-सेवायोजन, आयुष, आयुष शिक्षा, ऊर्जा एवं वैकल्पिक ऊर्जा का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. इस बार भी 14 फरवरी को चुनाव होने और 10 मार्च को चुनाव परिणाम आने से पहले ही हरक सिंह रावत का मंत्री पद चला गया. उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में फिर ये कहावत चरितार्थ हो गई कि हरक सिंह रावत अपना मंत्री के रूप में कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

देहरादून: बीजेपी से निकाल दिए गए हरक सिंह रावत दिल्ली जाकर कांग्रेस का दरवाजा खटखटा रहे हैं. हरक को दिल्ली गए आज तीसरा दिन है. अभी तक उनकी कांग्रेस में ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है. ऐसी चर्चाएं जोरों पर हैं कि हरक की कांग्रेस में ज्वाइनिंग को लेकर उत्तराखंड कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में मतभेद हैं. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उनकी घर वापसी के खिलाफ हैं. वहीं, नेता प्रतिपक्ष प्रीतम और गणेश गोदियाल का रुख इस मामले में नरम है. अब गेंद कांग्रेस हाईकमान के पाले में है. हाईकमान को ही इस पर फैसला लेना है.

बीजेपी ने एक झटके में निकाल दिया: दरअसल, हरक सिंह रावत पिछले कई दिनों से कांग्रेस के बड़े नेताओं के संपर्क में थे. हालांकि, तब उन्हें एहसास नहीं रहा होगा कि बीजेपी उन्हें इतनी जल्दी 'दूध में मक्खी' की तरह निकाल फेंकेगी. आए दिन अपने बयानों से हरक बीजेपी नेतृत्व की नाक में दम किए थे, लेकिन रविवार को बीजेपी ने हरक सिंह रावत को भनक लगे बिना ही उन्हें पहले कैबिनेट मंत्री पद से बर्खास्त किया और फिर पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया.

शुभचिंतकों से मिल रहे हरक: इसके बाद से हरक सिंह रावत की दिल्ली में कांग्रेस ज्वाइन करने के लिए दौड़ चल रही है. हरक सिंह ने कांग्रेस में वापसी को लेकर कांग्रेस के अंदर अपने तमाम शुभचिंतकों के साथ कई नेताओं से भेंट भी की है. उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस हाथों-हाथ लेगी, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है.

हरीश रावत हैं सबसे बड़ा रोड़ा: दरअसल, हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी को लेकर कई मुश्किलें आन पड़ी हैं. हरीश रावत 2016 में उनकी सरकार गिराने में हरक सिंह की भूमिका को लेकर विरोध कर रहे हैं. हरदा का कहना है कि, हरक सिंह रावत की वापसी से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा. हालांकि, हरीश रावत उन्हें एक शर्त पर माफ करने को तैयार हैं, वो ये कि हरक सिंह रावत 2016 की अपनी उस गलती को मानें और सार्वजनिक माफी मांगें.

हरक की वापसी पर कांग्रेस दो फाड़: दूसरी ओर हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी को लेकर नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह खुश हैं. प्रीतम को हरक सिंह रावत से हमदर्दी भी है. हरीश रावत के विरोध को देखते हुए प्रीतम खुलकर हरक का समर्थन नहीं कर पा रहे हैं लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा है कि हरक पर फैसला पार्टी हाईकमान करेगा. बताया जा रहा है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल भी हरक की वापसी को लेकर इच्छुक हैं लेकिन वो भी हरीश रावत के तेवर देखकर खुलकर कुछ नहीं कह पा रहे, लेकिन उनके बयानों से भी झलक रहा है कि वो हरक का स्वागत करने को तैयार हैं.

दरअसल, हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी का असली रोड़ा हरीश रावत की ओर से अटकाया गया है. हालांकि उनका कहना है कि पार्टी ने अभी इस बारे में उनसे पूछा नहीं है. उन्हें उम्मीद है कि पार्टी इस विषय पर सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेगी. राज्य की राजनीति, समाज में क्या प्रतिक्रिया होगी, उसके परिणाम क्या होंगे, सभी पर विचार करने के बाद ही निर्णय होगा.

उधर, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा कि विपत्ति के समय हरक ने भाजपा का साथ दिया था, अब उन्हें जिस प्रकार निष्कासित किया है, नि:संदेह हरक सिंह आहत हुए हैं. हरक की वापसी पर निर्णय पार्टी के शीर्ष नेता लेंगे.

नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि हरक सिंह हमारे पुराने साथी-सहयोगी रहे हैं. यदि वो वापस आना चाहते हैं तो पार्टी हाईकमान इस पर निर्णय लेगा. उन्होंने सुना है कि हरक सिंह ने कांग्रेस के लिए काम करने का निर्णय किया है. यदि वो आते हैं तो पार्टी को ताकत मिलेगी.

हीरा सिंह बिष्ट भी हरक की वापसी के पक्ष में नहीं: इधर, उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और डोईवाला सीट से टिकट के दावेदार हीरा सिंह बिष्ट ने भी हरक सिंह रावत की वापसी पर नाराजगी जताई है. हीरा सिंह बिष्ट का कहना है कि कांग्रेस को पर्यटक नेताओं से सावधान रहना चाहिए. आवागमन करने वाले व कांग्रेस को पर्यटक स्थल समझने वाले राजनीतिज्ञों के बारे में पार्टी को गंभीरता से सोचना होगा. उन्होंने कहा कि अब प्रदेश अस्थिरता बर्दाश्त नहीं करेगा. प्रदेश की जनता विकास चाहती है. ऐसे खिलवाड़ करने वाले लोगों से पार्टी को सावधान रहना होगा.

प्रीतम और गोदियाल क्यों हैं हरक के पक्ष में: कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल गढ़वाल मंडल से आते हैं. नेता प्रतिपक्ष और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी गढ़वाल से हैं. हरक सिंह रावत भी गढ़वाल मंडल से ही हैं. ऐसे में इन दोनों नेताओं की सहानुभूति हरक सिंह रावत के प्रति सहज ही समझी जा सकती है. हरीश रावत कैंप का होने के बावजूद गणेश गोदियाल अगर हरक सिंह रावत की पैरवी कर रहे हैं तो समझा जा सकता है कि इसमें क्षेत्रीय प्रेम भी झलक रहा है.

सोमवार को रो पड़े थे हरक सिंह: बीजेपी ने जिस तरह हरक सिंह रावत को एक झटके में सरकार से बर्खास्त और पार्टी से निष्कासित किया उससे हरक सदमे में हैं. कल जब वो पार्टी से निकाले जाने के बाद पहली बार मीडिया के सामने आए थे तो रो पड़े थे. तब हरक ने रोते हुए कहा था कांग्रेस के लिए बिना शर्त काम करूंगा. आंसू बहाने के दौरान भी पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत भाजपा के खिलाफ तीखे तेवर अपनाए हुए थे.

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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 सिर पर हैं. उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान है. 10 मार्च को उत्तराखंड का चुनाव परिणाम आएगा. समय बहुत कम बचा है लेकिन हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी पर अभी कुहासा छाया हुआ है. प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल को हरक की घर वापसी पर कोई दिक्कत नहीं है. मामला हरीश रावत की ओर से अटका हुआ है. हरीश रावत 2016 में हरक द्वारा दिए गए अपमान को भूल नहीं पा रहे हैं. इसलिए उन्होंने शर्त रखी है कि हरक को पहले पश्चाताप करना होगा. कुल मिलाकर हरक की कांग्रेस में वापसी को लेकर उत्तराखंड कांग्रेस दो फाड़ दिख रही है.

कौन हैं हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत भारत में उत्तराखंड के राजनीतिज्ञ हैं. उनका जन्म 15 दिसंबर 1960 को हुआ. हरक सिंह रावत ने 1984 में कला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की. उन्होंने 1996 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर, उत्तराखंड से सैन्य विज्ञान में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री प्राप्त की. हरक की पत्नी का नाम दीप्ति रावत है. 1991 में हरक सिंह रावत ने पौड़ी से विधानसभा सीट से चुनाव जीता और उत्तर प्रदेश के सबसे छोटी उम्र के मंत्री बने थे. हरक सिंह रावत, 2016 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ विद्रोह करने वाले नौ विधायकों में से एक थे. कांग्रेस द्वारा निष्कासित किए जाने के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए थे.

4 सरकारों में मंत्री रहे हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत का राजनीतिक सफर देखें तो हरक 4 सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक इन चारों सरकारों में वह अपने मंत्री पद के कार्यकाल को कभी पूरा नहीं कर सके. बस उनका यही इतिहास और हरक सिंह रावत बगावती तेवर के चलते बीजेपी की चिंता का सबब बने हुए थे.

कल्याण सिंह की सरकार में युवा मंत्री बनने का अनुभव: कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिंह रावत अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय साल 1991 में पौड़ी विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने थे. इस दौरान वह बीजेपी में थे और कल्याण सिंह सरकार में उन्हें सबसे युवा मंत्री बनने का मौका मिला था. इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री का जिम्मा सौंपा था. इसे संयोग कहें या कुछ और कि मंत्री बनने के बाद राम मंदिर आंदोलन के बीच बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण मुख्यमंत्री का इस्तीफा हो गया और हरक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

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हरक ने मनमुटाव के कारण BSP का दामन थामा: भाजपा से ही अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले हरक सिंह रावत ने मनमुटाव के कारण साल 1996 में भाजपा छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया. इसके बाद मायावती ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी दीं. लेकिन इसके बाद वे यहां भी ज्यादा समय तक नहीं ठहर सके और साल 1998 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में स्थापित होने के बाद साल 2002 के पहले चुनाव में उन्होंने लैंसडाउन से चुनाव लड़ा और विधायक के रूप में विधानसभा पहुंचे.

एनडी तिवारी सरकार में भी रहे मंत्री: इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें राजस्व, खाद्य और आपदा प्रबंधन जैसे मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री बनाया. उनके मंत्री बनने के बाद करीब 1 से डेढ़ साल में ही उन पर एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोप लगे और उन्हें अपना मंत्री पद त्यागना पड़ा. हालांकि, बाद में वे सीबीआई जांच के बाद आरोप मुक्त हुए.

विजय बहुगुणा की सरकार में भी अहम जिम्मेदारी: साल 2012 में फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई और विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें कृषि, चिकित्सा शिक्षा और सैनिक कल्याण विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इस बार कार्यकाल पूरा करने की उम्मीद थी लेकिन हरीश रावत से हुई अनबन के बाद उन्होंने 4 साल बाद यानी 2016 में अधूरे कार्यकाल में ही कांग्रेस को छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.

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2017 में सात मंत्रालय संभाल रहे थे हरक सिंह: 2017 में बीजेपी के विधायक के रूप में हरक सिंह रावत उत्तराखंड विधानसभा पहुंचे. हरक को रिकॉर्ड 7 विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. उन्हें वन, पर्यावरण संरक्षण, श्रम, कौशल विकास-सेवायोजन, आयुष, आयुष शिक्षा, ऊर्जा एवं वैकल्पिक ऊर्जा का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. इस बार भी 14 फरवरी को चुनाव होने और 10 मार्च को चुनाव परिणाम आने से पहले ही हरक सिंह रावत का मंत्री पद चला गया. उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में फिर ये कहावत चरितार्थ हो गई कि हरक सिंह रावत अपना मंत्री के रूप में कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

Last Updated : Jan 18, 2022, 12:31 PM IST
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