ETV Bharat / city

गैरसैंण में एक बार फिर सजा 'सियासी मैदान', सड़क से सदन तक के शोर में दबते देवभूमि के मुद्दे

एक बार फिर से गैरसैंण बजट सत्र के लिए सज चुका है. सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने अपने धुरंधरों के साथ यहां पहुंच चुके हैं. ऐसे में स्थाई राजधानी को लेकर प्रदेश के लोगों में फिर से उम्मीद जगने लगी है. मगर आजतक सरकारों के रवैये से कहीं ये उम्मीद फीकी सी पड़ जाती है. प्रदेश में पलायन, बेरोजगारी, स्थाई राजधानी ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सरकार और विपक्ष बात तो करते हैं मगर करते कुछ नहीं. ये मुद्दे हमेशा ही सियासी शोर में दब से जाते हैं.

uttarakhand-budget-session-being-held-in-garsain
गैरसैंण में एक बार फिर सजा 'सियासी मैदान'
author img

By

Published : Mar 2, 2020, 11:26 PM IST

देहरादून: मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आगामी बजट सत्र गैरसैंण में करने का फैसला लिया है. गैरसैंण के मुद्दे को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी राजनीतिक रोटी सेकने का काम करती आई हैं. दरअसल, राज्य में हर कोई विपक्षी दल गैरसैंण के सवाल पर सत्तासीन दल को घेरने का काम करता है. ये एक ऐसा मुद्दा है जो सड़क से सदन तक दलों की राजनीति को धार देता है. यही कारण है कि आज भी राजनीति दलों के लिए गैरसैंण मुद्दे के सिवा कुछ भी नहीं. हालांकि त्रिवेंद्र सरकार ने इस बार बजट सत्र को गैरसैंण में कराने के फैसले से कहीं न कहीं विपक्षी दलों के इस मुद्दे की धार कम करने का काम जरूर किया है.

उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर नौ नवंबर की तारीख इतिहास में दर्ज है. पृथक राज्य की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ. जिससे प्रदेशवासियों की जन भावना जुड़ी हुई थी. प्रदेशवासियों को राज्य गठन के बाद से ही स्थाई राजधानी की दरकार है. अभी भी प्रदेश को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है. राज्य गठन के बाद नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री बने थे.

पढ़ें- 'डिजिटल डकैतों' के गढ़ में उतरेगी ATS, इस प्लान से जामताड़ा को 'जाम' करेगी दून पुलिस

तत्कालीन सरकार ने राज्य का निर्माण तो कर दिया परंतु यहां भी वह राजधानी के मुद्दे पर मौन रही. सरकार बदली और एनडी तिवारी के नेतृत्व मे पहली निर्वाचित सरकार का गठन हुआ. तब दीक्षित के नेतृत्व में राजधानी चयन आयोग का गठन किया गया. जिससे राज्य में स्थायी राजधानी के चयन का मुद्दा गरमाने लगा.

पढ़ें- उत्तराखंड के शिक्षक का UN में सम्मान, भारत सरकार ने जारी किया 5 रुपए का डाक टिकट

2007 में राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हुआ और भाजपा के हाथ में सत्ता आयी. तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दीक्षित आयोग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखकर इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया. उसके बाद से लोग यह मानने लगे थे कि अब स्थायी राजधानी देहरादून ही रहेगी. इसी बीच 2012 में विजय बहुगुणा के हाथ में राज्य के सत्ता की चाबी आयी और उन्होंने अस्थायी राजधानी से बाहर गैरसैंण मे अपनी कैबिनेट बैठक की. इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि सरकार 2013 में गैरसैंण में विधानसभा और विधायक निवास बनाएगी.

पढ़ें- भराड़ीसैंण में पूरी हुई बजट सत्र की तैयारियां, छावनी में तब्दील हुआ गैरसैंण

इसको बल देते हुए उन्होंने इसका भूमि पूजन भी किया और पहला सत्र टेंट में आयोजित किया. इसके साथ ही स्थाई राजधानी के लिए लोगों की अभिलाषा दिनों-दिन बढ़ती गयी. इसी बीच राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत एक कदम आगे बढ़ाते हुए विधानसभा का सत्र आइटीआइ कॉलेज में आयोजित किया. तब भाजपा अपने नेता अजय भट्ट के नेतृत्व मे विरोध-प्रदर्शन किया. उन्होंने सरकार पर दबाब बनाने का भरपूर प्रयास किया कि सरकार तत्काल प्रभाव से गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करे. इस मामले में बात यहां तक बढ़ गई कि सदन में हाथापायी तक की नौबत आ गई. सदस्यों ने विधानसभा में सत्ता पक्ष पर आरोप लगाया कि उतराखंड की पुलिस के जवानों ने उनके विशेषाधिकार का हनन किया.

पढ़ें- स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित हुआ केदारनाथ धाम, बनाए जाएंगे वार्मरूम

जिसके बाद अध्यक्ष ने सदन को आश्वस्त किया कि पुलिस के जवान नहीं बल्कि विधानसभा के मार्शल ने उत्तेजित विधायकों को शांत कराने का प्रयास किया था. जब वापस सत्ता भाजपा के हाथ में आयी तब भाजपा इस मुददे पर दोबारा गौण हो गई. इससे परेशान कांग्रेस ने सरकार पर दबाब बनाया कि सरकार गैरसैंण पर अपनी मंशा स्पष्ट करें.

पढ़ें- भराड़ीसैंण में पूरी हुई बजट सत्र की तैयारियां, छावनी में तब्दील हुआ गैरसैंण

हालांकि सरकार केवल शीतकालीन सत्र कराकर अपने कार्य की इति श्री किया करती थी, इस बार त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बजट सत्र का ऐलान करके राज्य आंदोलनकारियों को साधने की कोशिश कर रहे हैं. बजट सत्र से पहले राज्यपाल का अभिभाषण होता है, जिसमें सत्ता पक्ष के एक साल के कामों का विवरण पटल पर रखा जाता है. साथ ही इसमें अगले एक साल के कार्यक्रम की रूपरेखा होती है.

पढ़ें- महिला दिवस विशेष : भाषा, गरिमा, ज्ञान और स्वाभिमान का अर्थ 'सुषमा स्वराज

एक बार फिर से गैरसैंण विधानसभा सत्र के लिए सज चुका है. सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने अपने धुरंधरों के साथ यहां पहुंच चुके हैं. ऐसे में स्थाई राजधानी को लेकर प्रदेश के लोगों में फिर से उम्मीद जगने लगी है. मगर आजतक सरकारों के रवैये से कहीं ये उम्मीद फीकी सी पड़ जाती है. प्रदेश में पलायन, बेरोजगारी, स्थाई राजधानी ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सरकार और विपक्ष बात तो करता है मगर करता कुछ नहीं.

हर बार इन मुद्दों को लेकर सड़क से सदन तक संग्राम होता है. मगर शायद ऐसा लगता है कि हो हल्ले के बीच कहीं ये जरूरी मुद्दे खो जाते हैं. जनता हर बार सरकार की ओर इसे लेकर टकटकी लगाये देखती रहती है, मगर सरकार के मंत्री, अफसर सभी कहीं इन सब से दूर चैन की बंसी बजाकर सोते रहते हैं. खैर, पहाड़ की भावनाओं, जरुरतों को समझते हुए त्रिवेंद्र सरकार ने एक बार फिर से गैरसैंण की ओर रुख किया है. ऐसे में एक बार फिर से जनता की बांछे खिली हुई हैं.

पढ़ें- GULLY TALENT: मिलिए, उत्तराखंड के पहले गढ़वाली रैपर 'त्राटक' से

इस फैसले के बाद ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आखिर सरकार बजट सत्र कराकर गैरसैंण के लिए क्या सौगात देती है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली विधान सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही सरकार पर नैतिक दबाब बढ़ गया है कि सरकार क्षेत्रीय दल को मुद्दा विहीन करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए.

देहरादून: मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आगामी बजट सत्र गैरसैंण में करने का फैसला लिया है. गैरसैंण के मुद्दे को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी राजनीतिक रोटी सेकने का काम करती आई हैं. दरअसल, राज्य में हर कोई विपक्षी दल गैरसैंण के सवाल पर सत्तासीन दल को घेरने का काम करता है. ये एक ऐसा मुद्दा है जो सड़क से सदन तक दलों की राजनीति को धार देता है. यही कारण है कि आज भी राजनीति दलों के लिए गैरसैंण मुद्दे के सिवा कुछ भी नहीं. हालांकि त्रिवेंद्र सरकार ने इस बार बजट सत्र को गैरसैंण में कराने के फैसले से कहीं न कहीं विपक्षी दलों के इस मुद्दे की धार कम करने का काम जरूर किया है.

उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर नौ नवंबर की तारीख इतिहास में दर्ज है. पृथक राज्य की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ. जिससे प्रदेशवासियों की जन भावना जुड़ी हुई थी. प्रदेशवासियों को राज्य गठन के बाद से ही स्थाई राजधानी की दरकार है. अभी भी प्रदेश को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है. राज्य गठन के बाद नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री बने थे.

पढ़ें- 'डिजिटल डकैतों' के गढ़ में उतरेगी ATS, इस प्लान से जामताड़ा को 'जाम' करेगी दून पुलिस

तत्कालीन सरकार ने राज्य का निर्माण तो कर दिया परंतु यहां भी वह राजधानी के मुद्दे पर मौन रही. सरकार बदली और एनडी तिवारी के नेतृत्व मे पहली निर्वाचित सरकार का गठन हुआ. तब दीक्षित के नेतृत्व में राजधानी चयन आयोग का गठन किया गया. जिससे राज्य में स्थायी राजधानी के चयन का मुद्दा गरमाने लगा.

पढ़ें- उत्तराखंड के शिक्षक का UN में सम्मान, भारत सरकार ने जारी किया 5 रुपए का डाक टिकट

2007 में राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हुआ और भाजपा के हाथ में सत्ता आयी. तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दीक्षित आयोग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखकर इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया. उसके बाद से लोग यह मानने लगे थे कि अब स्थायी राजधानी देहरादून ही रहेगी. इसी बीच 2012 में विजय बहुगुणा के हाथ में राज्य के सत्ता की चाबी आयी और उन्होंने अस्थायी राजधानी से बाहर गैरसैंण मे अपनी कैबिनेट बैठक की. इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि सरकार 2013 में गैरसैंण में विधानसभा और विधायक निवास बनाएगी.

पढ़ें- भराड़ीसैंण में पूरी हुई बजट सत्र की तैयारियां, छावनी में तब्दील हुआ गैरसैंण

इसको बल देते हुए उन्होंने इसका भूमि पूजन भी किया और पहला सत्र टेंट में आयोजित किया. इसके साथ ही स्थाई राजधानी के लिए लोगों की अभिलाषा दिनों-दिन बढ़ती गयी. इसी बीच राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत एक कदम आगे बढ़ाते हुए विधानसभा का सत्र आइटीआइ कॉलेज में आयोजित किया. तब भाजपा अपने नेता अजय भट्ट के नेतृत्व मे विरोध-प्रदर्शन किया. उन्होंने सरकार पर दबाब बनाने का भरपूर प्रयास किया कि सरकार तत्काल प्रभाव से गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करे. इस मामले में बात यहां तक बढ़ गई कि सदन में हाथापायी तक की नौबत आ गई. सदस्यों ने विधानसभा में सत्ता पक्ष पर आरोप लगाया कि उतराखंड की पुलिस के जवानों ने उनके विशेषाधिकार का हनन किया.

पढ़ें- स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित हुआ केदारनाथ धाम, बनाए जाएंगे वार्मरूम

जिसके बाद अध्यक्ष ने सदन को आश्वस्त किया कि पुलिस के जवान नहीं बल्कि विधानसभा के मार्शल ने उत्तेजित विधायकों को शांत कराने का प्रयास किया था. जब वापस सत्ता भाजपा के हाथ में आयी तब भाजपा इस मुददे पर दोबारा गौण हो गई. इससे परेशान कांग्रेस ने सरकार पर दबाब बनाया कि सरकार गैरसैंण पर अपनी मंशा स्पष्ट करें.

पढ़ें- भराड़ीसैंण में पूरी हुई बजट सत्र की तैयारियां, छावनी में तब्दील हुआ गैरसैंण

हालांकि सरकार केवल शीतकालीन सत्र कराकर अपने कार्य की इति श्री किया करती थी, इस बार त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बजट सत्र का ऐलान करके राज्य आंदोलनकारियों को साधने की कोशिश कर रहे हैं. बजट सत्र से पहले राज्यपाल का अभिभाषण होता है, जिसमें सत्ता पक्ष के एक साल के कामों का विवरण पटल पर रखा जाता है. साथ ही इसमें अगले एक साल के कार्यक्रम की रूपरेखा होती है.

पढ़ें- महिला दिवस विशेष : भाषा, गरिमा, ज्ञान और स्वाभिमान का अर्थ 'सुषमा स्वराज

एक बार फिर से गैरसैंण विधानसभा सत्र के लिए सज चुका है. सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने अपने धुरंधरों के साथ यहां पहुंच चुके हैं. ऐसे में स्थाई राजधानी को लेकर प्रदेश के लोगों में फिर से उम्मीद जगने लगी है. मगर आजतक सरकारों के रवैये से कहीं ये उम्मीद फीकी सी पड़ जाती है. प्रदेश में पलायन, बेरोजगारी, स्थाई राजधानी ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सरकार और विपक्ष बात तो करता है मगर करता कुछ नहीं.

हर बार इन मुद्दों को लेकर सड़क से सदन तक संग्राम होता है. मगर शायद ऐसा लगता है कि हो हल्ले के बीच कहीं ये जरूरी मुद्दे खो जाते हैं. जनता हर बार सरकार की ओर इसे लेकर टकटकी लगाये देखती रहती है, मगर सरकार के मंत्री, अफसर सभी कहीं इन सब से दूर चैन की बंसी बजाकर सोते रहते हैं. खैर, पहाड़ की भावनाओं, जरुरतों को समझते हुए त्रिवेंद्र सरकार ने एक बार फिर से गैरसैंण की ओर रुख किया है. ऐसे में एक बार फिर से जनता की बांछे खिली हुई हैं.

पढ़ें- GULLY TALENT: मिलिए, उत्तराखंड के पहले गढ़वाली रैपर 'त्राटक' से

इस फैसले के बाद ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आखिर सरकार बजट सत्र कराकर गैरसैंण के लिए क्या सौगात देती है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली विधान सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही सरकार पर नैतिक दबाब बढ़ गया है कि सरकार क्षेत्रीय दल को मुद्दा विहीन करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.