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...ताकि हर घर में हो दिवाली, हर घर में दीया जले

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Published : Oct 26, 2019, 6:03 PM IST

Updated : Oct 26, 2019, 9:15 PM IST

फुटपाथ पर मिट्टी के दिये, मालाएं, बर्तन और सजावट का सामान बेचने वाले कई लोग ग्राहकों के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं. मगर नजदीक आती दिवाली के साथ ही इनकी उम्मीदें भी धुंधली पड़ने लगी हैं. बाजारों में सस्ते फैंसी चाइनीज आइटमों ने इन इनके बाजार को खत्म कर दिया है.

...ताकि हर घर में हो दिवाली, हर घर में दीया जले

देहरादून: पूरे देश में दीपावली के त्योहार की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही है. जिसके लिए बाजारों में लोगों की खूब भीड़ उमड़ रही है. छोटी दुकानों से लेकर ऊंचें-ऊंचे कांच के शोरूम के बाह खरीदार लंबी-लंबी लाइनें लगाकर खरीदारी करने में जुटे हैं.मंदी के दौर में सुस्त पड़ चुके बाजारों को दीवाली में रफ्तार मिली है. जिससे बाजारों के हालात सुधरे हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें दिवाली से खासी उम्मीद होती तो है मगर आधुनिकता की चका-चौंध में कही उनकी दिवाली फीकी हो जाती है. ये लोग उम्मीद भरी नजरों से ग्राहको की ओर देखते हैं कि कोई इनकी ओर नजरे इनायत तो करें जिससे इनकी दिवाली रोशन हो सके.

...ताकि हर घर में हो दिवाली, हर घर में दीया जले

फुटपाथ पर मिट्टी के दिये, मालाएं, बर्तन और सजावट का सामान बेचने वाले कई लोग ग्राहकों के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं. मगर नजदीक आती दिवाली के साथ ही इनकी उम्मीदें भी धुंधली पड़ने लगी हैं. बाजारों में सस्ते फैंसी चाइनीज आइटमों ने इन इनके बाजार को खत्म कर दिया है. जिससे ये लोग दो वक्त की रोजी-रोटी की जद्दोजहद में फुटपाथों पर जिंदगी का ताना-बाना बुनने को मजबूर हैं.

पढ़ें-उत्तराखंड की पारंपरिक ऐपण कला पर आधुनिकता हावी, घट रहा क्रेज

ऐसे ही हालात रवि और निशु के हैं जो 50 रुपये के दिए लेकर सड़क पर बेचने को बैठे हैं. अगर उनके ये दिए बिक जाते हैं तो, वह भी फूलझड़ी और पटाखे लेकर अपनी दिवाली मना सकते हैं. मगर सुबह से इनके पास कोई ग्राहक नहीं आया है. जिससे इनके चेहरे की मुस्कान धीरे-धीरे कम होने लगी है.

पढ़ें-पिथौरागढ़ सीट पर 25 नवंबर को होगा उपचुनाव, 28 को आएगा रिजल्ट

उधर गुरवत की जिंदगी जी रहे हिमांशु भी हर साल की तरह सड़क पर चारपाई लगाकर देवी-देवताओं की मूर्तियां बेच रहे हैं. हिमांशु को उम्मीद है कि अगर इन मूर्तियों के खरीदार मिल जाता है तो वो अपने माता-पिता को थोड़ी खुशियां दे सकेगा. इसी उम्मीद में उसने इस बार अपनी दुकान में फैंसी आइटम भी रखे हैं. जिससे उसकी उम्मीदों को थोड़ा और बल मिल रहा है.

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वहीं कुछ ऐसी ही कहानी बबली की भी है जो अपने दो मासूम बच्चों के साथ मिलकर सड़क किनारे गेंदे के फूलों की माला बेचकर अपना पेट भरती है. बबली के लिए ये फूलों की माला महज माला नहीं बल्कि उम्मीद है उसकी दिवाली,दशहरे और होली की. जिसे बेचकर वो हर त्योहार को जी पाती है.

पढ़ें-धनतेरस पर बाजारों में उमड़ी भीड़, जाम से निपटने में ट्रैफिक पुलिस के छूटे पसीने

रश्मि और राजकुमारी की भी ये ही कहानी है. मालाएं ही इन लोगों के जीने का आसरा हैं. त्योहारों से समय इन मालाओं से जैसे इन लोगों की उम्मीदें और बढ़ जाती हैं. इसलिए ये लोग पूरी शिद्दत से अपने काम में जुट जाते हैं. इन फूलों को बेचकर ये लोग दिवाली के लिए तिनका-तिनका जमा करती हैं. जिससे वो और उनके बच्चे भी दीपावली मना सके. दिन में बिकी कुछ मालाओं से इनके चेहरे पर जो संतोष दिखता है वो वाकई में देखने वाला होता है. हालांकि इन्हें हर एक छोटी माला के बेचने के लिए बड़ी जद्दोजहत करनी पड़ती है.

दिवाली के बाजार केंद्रित होने का पहला असर यह है कि जिसकी जेब ज्यादा भारी है उसकी दिवाली ज्यादा रोशन और जगमग है लेकिन गरीब लोगों के लिए ये प्रकाश पर्व फीका ही रह जाता है. इसलिए हम सभी को छोटी सी कोशिश करनी चाहिए कि हम सभी के प्रयास से ऐसे गरीब लोग भी दिवाली में अपना घर रोशन कर सके जो बाजारों में हमारे भरोसे बैठे हैं.

देहरादून: पूरे देश में दीपावली के त्योहार की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही है. जिसके लिए बाजारों में लोगों की खूब भीड़ उमड़ रही है. छोटी दुकानों से लेकर ऊंचें-ऊंचे कांच के शोरूम के बाह खरीदार लंबी-लंबी लाइनें लगाकर खरीदारी करने में जुटे हैं.मंदी के दौर में सुस्त पड़ चुके बाजारों को दीवाली में रफ्तार मिली है. जिससे बाजारों के हालात सुधरे हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें दिवाली से खासी उम्मीद होती तो है मगर आधुनिकता की चका-चौंध में कही उनकी दिवाली फीकी हो जाती है. ये लोग उम्मीद भरी नजरों से ग्राहको की ओर देखते हैं कि कोई इनकी ओर नजरे इनायत तो करें जिससे इनकी दिवाली रोशन हो सके.

...ताकि हर घर में हो दिवाली, हर घर में दीया जले

फुटपाथ पर मिट्टी के दिये, मालाएं, बर्तन और सजावट का सामान बेचने वाले कई लोग ग्राहकों के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं. मगर नजदीक आती दिवाली के साथ ही इनकी उम्मीदें भी धुंधली पड़ने लगी हैं. बाजारों में सस्ते फैंसी चाइनीज आइटमों ने इन इनके बाजार को खत्म कर दिया है. जिससे ये लोग दो वक्त की रोजी-रोटी की जद्दोजहद में फुटपाथों पर जिंदगी का ताना-बाना बुनने को मजबूर हैं.

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ऐसे ही हालात रवि और निशु के हैं जो 50 रुपये के दिए लेकर सड़क पर बेचने को बैठे हैं. अगर उनके ये दिए बिक जाते हैं तो, वह भी फूलझड़ी और पटाखे लेकर अपनी दिवाली मना सकते हैं. मगर सुबह से इनके पास कोई ग्राहक नहीं आया है. जिससे इनके चेहरे की मुस्कान धीरे-धीरे कम होने लगी है.

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उधर गुरवत की जिंदगी जी रहे हिमांशु भी हर साल की तरह सड़क पर चारपाई लगाकर देवी-देवताओं की मूर्तियां बेच रहे हैं. हिमांशु को उम्मीद है कि अगर इन मूर्तियों के खरीदार मिल जाता है तो वो अपने माता-पिता को थोड़ी खुशियां दे सकेगा. इसी उम्मीद में उसने इस बार अपनी दुकान में फैंसी आइटम भी रखे हैं. जिससे उसकी उम्मीदों को थोड़ा और बल मिल रहा है.

पढ़ें-पिथौरागढ़ सीट पर 25 नवंबर को होगा उपचुनाव, 28 को आएगा रिजल्ट

वहीं कुछ ऐसी ही कहानी बबली की भी है जो अपने दो मासूम बच्चों के साथ मिलकर सड़क किनारे गेंदे के फूलों की माला बेचकर अपना पेट भरती है. बबली के लिए ये फूलों की माला महज माला नहीं बल्कि उम्मीद है उसकी दिवाली,दशहरे और होली की. जिसे बेचकर वो हर त्योहार को जी पाती है.

पढ़ें-धनतेरस पर बाजारों में उमड़ी भीड़, जाम से निपटने में ट्रैफिक पुलिस के छूटे पसीने

रश्मि और राजकुमारी की भी ये ही कहानी है. मालाएं ही इन लोगों के जीने का आसरा हैं. त्योहारों से समय इन मालाओं से जैसे इन लोगों की उम्मीदें और बढ़ जाती हैं. इसलिए ये लोग पूरी शिद्दत से अपने काम में जुट जाते हैं. इन फूलों को बेचकर ये लोग दिवाली के लिए तिनका-तिनका जमा करती हैं. जिससे वो और उनके बच्चे भी दीपावली मना सके. दिन में बिकी कुछ मालाओं से इनके चेहरे पर जो संतोष दिखता है वो वाकई में देखने वाला होता है. हालांकि इन्हें हर एक छोटी माला के बेचने के लिए बड़ी जद्दोजहत करनी पड़ती है.

दिवाली के बाजार केंद्रित होने का पहला असर यह है कि जिसकी जेब ज्यादा भारी है उसकी दिवाली ज्यादा रोशन और जगमग है लेकिन गरीब लोगों के लिए ये प्रकाश पर्व फीका ही रह जाता है. इसलिए हम सभी को छोटी सी कोशिश करनी चाहिए कि हम सभी के प्रयास से ऐसे गरीब लोग भी दिवाली में अपना घर रोशन कर सके जो बाजारों में हमारे भरोसे बैठे हैं.

Intro:summary-इस बार इनकी दिवाली करें रोशन,कांच ऊंची दुकानों में ख़रीदारों की लाइन, फूटपाथ पर दिए -माला बेचने वाले खरीदारों का टकटकी लगाकर इंतजार में..ताकि कुछ कमाई से उ की भी हो सके दिवाली...


दीपावली का त्यौहार पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है, छोटे बाजारों से लेकर उची उची कांच की प्रतिष्ठानों में खरीदार लाइन लगाकर खरीदारी करने में जुटे हुए हैं। मंडी के दौर में भी दीपवाली जैसे बड़े त्यौहार ने बाजार में एकाएक उछाल लाकर बढ़त बनायी हैं। वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो फुटपाथ पर मिट्टी के दिये-मालाएं जैसे दिवाली साज- सज्जा के सामान को लेकर ग्राहकों के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं। इनकी दिवाली तभी रोशन होगी जब इनसे भी कोई खरीदारी करेगा। दो वक्त की रोजी रोटी के लिए जद्दोजहद कर फुटपाथों पर जिंदगी का ताना-बाना बुनने वाले भी कुछ कमाई कर दिवाली मानने की आस लगाए बैठे हैं।


Body:रवि और निशु 50 रुपये के दिए लेकर सड़क पर बेचने को बैठे हैं, अगर यह दिए बिक जाते हैं तो, वह भी फूलझड़ी और पटाखे लेकर अपनी दिवाली मनाना चाहते हैं, लेकिन सुबह से दोपहर होने गई कोई मिट्टी के दीयों को खरीदने नहीं आया। उधर हिमांशु हर साल की तरह अपने गुरुवत की जिंदगी जी रहे मां-बाप की मदद के लिए सड़क पर चारपाई लगाकर देवी देवताओं की मूर्तियां दीए बेचता है उसका कहना है कि इस बार उसने कुछ मिट्टी के फैंसी आईटम भी रखे। हिमांशु कहता है वे अपने सामान को बेचकर ..पहले मां बाप को घर का खर्चा देगा, फिर उसमें कुछ पैसों से वह भी सबके साथ मिलकर खुशियों भरी दिवाली मनाना चाहता है।

बाईट-रवि,निशु
बाईट-हिमाशु

उधर बबली अपने दो मासूम बच्चों के साथ मिलकर सड़क किनारे गेंदे के फूलों की माला 20 से 30 रुपये में बेचकर पहले अपने घर में भरपेट खाने की व्यवस्था करेगी। उसके बाद जो कुछ खर्चा बचेगा.. उससे वह भी अपने परिवार के साथ दिवाली मनाना चाहती है। बबली की सुबह से 15 मालाएं बिक चुकी है जिससे कुछ चेहरे पर रौनक आयी हैं, हालांकि हर माला खरीदने वाला 30 रुपये की माला में भी मोलभाव कर आगे बढ़ रहा है।

बाईट-बबली


वही रश्मि अपने दूध पीते बच्चे को फुटपाथ पर लेटाकर अपनी 8 साल की आरती बेटी के साथ दीपावली से 1 दिन पहले फूलों की माला बना-बना बेच रही है। 8 साल की आरती अपनी मां की मदद के लिए हाथ बटाते हुए कुछ मालाएं तैयार करती हैं। रश्मि के मुताबिक सुबह से कम ही ग्राहक उसके पास आए हैं,हालांकि उसको उम्मीद हैं कि मेहनत रंग लाएंगी। सामान कल तक अगर सभी मालाएं बिक जाती है तो उनके घर भी उम्मीद वाली दिवाली रोशन हो सकेगी।

बाईट-आरती,बेटी
बाईट- रश्मि,मां

उधर राजकुमारी हर साल की तरह फुटपाथ पर अपने पूरे परिवार के साथ मिलकर फूलों की माला बेचने का काम करती है, इस बार भी उसकी दो नाबालिग बेटियों के अलावा परिवार के लोग मिल बांट कर मालाएं तैयार कर रहे हैं। 20 से 30 रूपए में सड़क पर माला खरीदने वालों के कमी साफ नजर आ रही है। राजकुमारी का कहना है कि दीपावली तो तभी मनेगी.. जब बच्चों को भरपेट खाना मिल पायेगा। अभी खरीदारों की कमी है लेकिन बड़ी दिवाली वाले दिन की आस लगाए बैठे की काम अच्छा हो जाये।

बाईट- राजकुमारी,फूल विक्रेता






Conclusion:
Last Updated : Oct 26, 2019, 9:15 PM IST
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