देहरादून: पूरे देश में दीपावली के त्योहार की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही है. जिसके लिए बाजारों में लोगों की खूब भीड़ उमड़ रही है. छोटी दुकानों से लेकर ऊंचें-ऊंचे कांच के शोरूम के बाह खरीदार लंबी-लंबी लाइनें लगाकर खरीदारी करने में जुटे हैं.मंदी के दौर में सुस्त पड़ चुके बाजारों को दीवाली में रफ्तार मिली है. जिससे बाजारों के हालात सुधरे हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें दिवाली से खासी उम्मीद होती तो है मगर आधुनिकता की चका-चौंध में कही उनकी दिवाली फीकी हो जाती है. ये लोग उम्मीद भरी नजरों से ग्राहको की ओर देखते हैं कि कोई इनकी ओर नजरे इनायत तो करें जिससे इनकी दिवाली रोशन हो सके.
फुटपाथ पर मिट्टी के दिये, मालाएं, बर्तन और सजावट का सामान बेचने वाले कई लोग ग्राहकों के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं. मगर नजदीक आती दिवाली के साथ ही इनकी उम्मीदें भी धुंधली पड़ने लगी हैं. बाजारों में सस्ते फैंसी चाइनीज आइटमों ने इन इनके बाजार को खत्म कर दिया है. जिससे ये लोग दो वक्त की रोजी-रोटी की जद्दोजहद में फुटपाथों पर जिंदगी का ताना-बाना बुनने को मजबूर हैं.
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ऐसे ही हालात रवि और निशु के हैं जो 50 रुपये के दिए लेकर सड़क पर बेचने को बैठे हैं. अगर उनके ये दिए बिक जाते हैं तो, वह भी फूलझड़ी और पटाखे लेकर अपनी दिवाली मना सकते हैं. मगर सुबह से इनके पास कोई ग्राहक नहीं आया है. जिससे इनके चेहरे की मुस्कान धीरे-धीरे कम होने लगी है.
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उधर गुरवत की जिंदगी जी रहे हिमांशु भी हर साल की तरह सड़क पर चारपाई लगाकर देवी-देवताओं की मूर्तियां बेच रहे हैं. हिमांशु को उम्मीद है कि अगर इन मूर्तियों के खरीदार मिल जाता है तो वो अपने माता-पिता को थोड़ी खुशियां दे सकेगा. इसी उम्मीद में उसने इस बार अपनी दुकान में फैंसी आइटम भी रखे हैं. जिससे उसकी उम्मीदों को थोड़ा और बल मिल रहा है.
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वहीं कुछ ऐसी ही कहानी बबली की भी है जो अपने दो मासूम बच्चों के साथ मिलकर सड़क किनारे गेंदे के फूलों की माला बेचकर अपना पेट भरती है. बबली के लिए ये फूलों की माला महज माला नहीं बल्कि उम्मीद है उसकी दिवाली,दशहरे और होली की. जिसे बेचकर वो हर त्योहार को जी पाती है.
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रश्मि और राजकुमारी की भी ये ही कहानी है. मालाएं ही इन लोगों के जीने का आसरा हैं. त्योहारों से समय इन मालाओं से जैसे इन लोगों की उम्मीदें और बढ़ जाती हैं. इसलिए ये लोग पूरी शिद्दत से अपने काम में जुट जाते हैं. इन फूलों को बेचकर ये लोग दिवाली के लिए तिनका-तिनका जमा करती हैं. जिससे वो और उनके बच्चे भी दीपावली मना सके. दिन में बिकी कुछ मालाओं से इनके चेहरे पर जो संतोष दिखता है वो वाकई में देखने वाला होता है. हालांकि इन्हें हर एक छोटी माला के बेचने के लिए बड़ी जद्दोजहत करनी पड़ती है.
दिवाली के बाजार केंद्रित होने का पहला असर यह है कि जिसकी जेब ज्यादा भारी है उसकी दिवाली ज्यादा रोशन और जगमग है लेकिन गरीब लोगों के लिए ये प्रकाश पर्व फीका ही रह जाता है. इसलिए हम सभी को छोटी सी कोशिश करनी चाहिए कि हम सभी के प्रयास से ऐसे गरीब लोग भी दिवाली में अपना घर रोशन कर सके जो बाजारों में हमारे भरोसे बैठे हैं.