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श्रद्धालुओं के लिए खुले आदिबदरी मंदिर के कपाट, इस बार नहीं होगा महापुराण

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Published : Jan 14, 2022, 10:25 AM IST

Updated : Jan 14, 2022, 10:33 AM IST

चमोली जिले में स्थित आदिबदरी मंदिर समूह के कपाट खुल गए हैं. आज से आम श्रद्धालु आदिबदरी मंदिर में दर्शन कर सकते हैं. कोरोना के कारण इस बार नौ दिवसीय महापुराण नहीं होगा. आदिबदरी का ऐतिहासिक मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है.

Historical Temple of Adibadri
आदिबदरी मंदिर के कपाट खुले

चमोली: पंचबदरी में से एक भगवान आदिबदरी धाम मंदिर के कपाट आज आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं. एक माह के लिए कपाट बंद रहने के पश्चात आज ब्रह्ममुहूर्त में भगवान आदिबदरी धाम मंदिर के कपाट खोले गए. इस दौरान कोरोना की गाइड लाइन का पालन किया गया. बीते वर्षों के भांति परम्परा के अनुसार कपाट खुलने के साथ साथ धाम में होने वाले नौ दिवसीय महापुराण का इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए आयोजन नहीं होगा.

नहीं होगा नौ दिवसीय महापुराण: आदिबदरी मंदिर समिति ने यह फैसला लिया है कि प्रदेश में कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है. इस कारण नौ दिवसीय महापुराण इस बार नहीं होगा. बता दें कि पूरे वर्ष भर में सिर्फ पौष माह में एक महीने के लिए भगवान आदिबदरी मंदिर के कपाट बंद होते हैं. आज मकर संक्रांति पर्व पर ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के कपाट खोल दिए गए हैं.

आदिबदरी मंदिर के बारे में जानें: आदिबदरी रानीखेत हल्द्वानी मार्ग पर कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर दूर तथा प्रसिद्ध चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर दूर है. इसका निकटवर्ती तीर्थ कर्णप्रयाग है. चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर आगे जाने पर प्राचीन मंदिर का एक समूह आता है जो सड़क की दांयी ओर स्थित है. किंवदंती है कि इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी पथ पर उत्तराखंड आये पांडवों द्वारा किया गया था.

यह भी कहा जाता है कि इनका निर्माण 8वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा हुआ. भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणानुसार के अनुसार इनका निर्माण 8वीं से 11वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया था. कुछ वर्षों से इन मंदिरों की देखभाल भारतीय पुरातात्विक के सर्वेक्षणाधीन है.

आदिबदरी में है 14 मंदिरों का समूह: मूलरूप से इस समूह में 16 मंदिर थे, जिनमें 14 अभी बचे हैं. प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है, जिसकी पहचान इसका बड़ा आकार तथा एक ऊंचे मंच पर निर्मित होना है. यह एक सुंदर एक मीटर ऊंची काली शालीग्राम की प्रतिमा भगवान की है, जो अपने चतुर्भुज रूप में खड़े हैं तथा गर्भगृह के अंदर स्थित हैं.

इसके सम्मुख एक छोटा मंदिर भगवान विष्णु की सवारी गरुड़ को समर्पित है. समूह के अन्य मंदिर अन्य देवी-देवताओं यथा सत्यनारायण, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, चकभान, कुबेर (मूर्ति विहीन), राम-लक्ष्मण-सीता, काली, भगवान शिव, गौरी, शंकर एवं हनुमान को समर्पित हैं. इन प्रस्तर मंदिरों पर गहन एवं विस्तृत नक्काशी है तथा प्रत्येक मंदिर पर नक्काशी का भाव उस मंदिर के लिये विशिष्ट तथा अन्य से अलग भी है.

ये भी पढ़ें: यहां भगवान शिव ने की थी तपस्या, उत्तराखंड का है पांचवां धाम, पूरे एक महीने लगता है श्रावणी मेला

कैसे पहुंचें आदिबदरी? : आदिबदरी मंदिर समूह सड़क के किनारे ही है. यहां के लिए जरा भी पैदल यात्रा नहीं करनी पड़ती है. ये मंदिर समूह कुमाऊं से आने पर रानीखेत-द्वाराहाट-चौखुटिया-गैरसैंण मार्ग पर पड़ता है. ऋषिकेश से जाने पर देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग होते हुए कर्णप्रयाग पहुंचते हैं. कर्णप्रयाग से पिंडर के किनारे-किनारे सिमली तक आने के बाद गैरसैंण रानीखेत रोड पर आगे आदिबदरी पड़ता है. यहीं आदिबदरी मंदिर समूह हैं. निकटवर्ती हवाई पट्टी गौचर है.

चमोली: पंचबदरी में से एक भगवान आदिबदरी धाम मंदिर के कपाट आज आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं. एक माह के लिए कपाट बंद रहने के पश्चात आज ब्रह्ममुहूर्त में भगवान आदिबदरी धाम मंदिर के कपाट खोले गए. इस दौरान कोरोना की गाइड लाइन का पालन किया गया. बीते वर्षों के भांति परम्परा के अनुसार कपाट खुलने के साथ साथ धाम में होने वाले नौ दिवसीय महापुराण का इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए आयोजन नहीं होगा.

नहीं होगा नौ दिवसीय महापुराण: आदिबदरी मंदिर समिति ने यह फैसला लिया है कि प्रदेश में कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है. इस कारण नौ दिवसीय महापुराण इस बार नहीं होगा. बता दें कि पूरे वर्ष भर में सिर्फ पौष माह में एक महीने के लिए भगवान आदिबदरी मंदिर के कपाट बंद होते हैं. आज मकर संक्रांति पर्व पर ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के कपाट खोल दिए गए हैं.

आदिबदरी मंदिर के बारे में जानें: आदिबदरी रानीखेत हल्द्वानी मार्ग पर कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर दूर तथा प्रसिद्ध चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर दूर है. इसका निकटवर्ती तीर्थ कर्णप्रयाग है. चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर आगे जाने पर प्राचीन मंदिर का एक समूह आता है जो सड़क की दांयी ओर स्थित है. किंवदंती है कि इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी पथ पर उत्तराखंड आये पांडवों द्वारा किया गया था.

यह भी कहा जाता है कि इनका निर्माण 8वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा हुआ. भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणानुसार के अनुसार इनका निर्माण 8वीं से 11वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया था. कुछ वर्षों से इन मंदिरों की देखभाल भारतीय पुरातात्विक के सर्वेक्षणाधीन है.

आदिबदरी में है 14 मंदिरों का समूह: मूलरूप से इस समूह में 16 मंदिर थे, जिनमें 14 अभी बचे हैं. प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है, जिसकी पहचान इसका बड़ा आकार तथा एक ऊंचे मंच पर निर्मित होना है. यह एक सुंदर एक मीटर ऊंची काली शालीग्राम की प्रतिमा भगवान की है, जो अपने चतुर्भुज रूप में खड़े हैं तथा गर्भगृह के अंदर स्थित हैं.

इसके सम्मुख एक छोटा मंदिर भगवान विष्णु की सवारी गरुड़ को समर्पित है. समूह के अन्य मंदिर अन्य देवी-देवताओं यथा सत्यनारायण, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, चकभान, कुबेर (मूर्ति विहीन), राम-लक्ष्मण-सीता, काली, भगवान शिव, गौरी, शंकर एवं हनुमान को समर्पित हैं. इन प्रस्तर मंदिरों पर गहन एवं विस्तृत नक्काशी है तथा प्रत्येक मंदिर पर नक्काशी का भाव उस मंदिर के लिये विशिष्ट तथा अन्य से अलग भी है.

ये भी पढ़ें: यहां भगवान शिव ने की थी तपस्या, उत्तराखंड का है पांचवां धाम, पूरे एक महीने लगता है श्रावणी मेला

कैसे पहुंचें आदिबदरी? : आदिबदरी मंदिर समूह सड़क के किनारे ही है. यहां के लिए जरा भी पैदल यात्रा नहीं करनी पड़ती है. ये मंदिर समूह कुमाऊं से आने पर रानीखेत-द्वाराहाट-चौखुटिया-गैरसैंण मार्ग पर पड़ता है. ऋषिकेश से जाने पर देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग होते हुए कर्णप्रयाग पहुंचते हैं. कर्णप्रयाग से पिंडर के किनारे-किनारे सिमली तक आने के बाद गैरसैंण रानीखेत रोड पर आगे आदिबदरी पड़ता है. यहीं आदिबदरी मंदिर समूह हैं. निकटवर्ती हवाई पट्टी गौचर है.

Last Updated : Jan 14, 2022, 10:33 AM IST
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