देहरादून: उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश तो कहा गया लेकिन कभी इस सपने को साकार ही नहीं किया जा सका. स्थिति यह रही कि नदियों के रूप में राज्य की बहुमूल्य संपदा का इस्तेमाल सरकारें नहीं कर पायीं, और बढ़ती मांग के बीच विद्युत संकट राज्य के विकास पर भारी पड़ने लगा है. हालांकि कुछ परियोजनाएं हैं जो अब भी राज्य की उम्मीद बनी हुई हैं. मौजूदा ऊर्जा संकट के दौरान अब धामी सरकार उन्हीं परियोजनाओं को धरातल पर उतारने की कवायद में जुट गई है. पेश है हमारी खास रिपोर्ट.
बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट खतरे की घंटी: पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के लिए बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट हमेशा खतरे के रूप में देखे जाते रहे हैं. हालांकि राज्य में टिहरी बांध के रूप में एशिया के सबसे बड़े प्रोजेक्ट को स्थापित किया गया है. लेकिन इसके बाद पर्यावरण और भूगर्भीय वैज्ञानिक आधार पर ऐसे बड़े प्रोजेक्ट राज्य में पूरी तरह से रोके गए हैं. वैसे बड़े प्रोजेक्ट के रूप में कुछ दूसरी परियोजनाएं भी राज्य में बनी हैं. लेकिन 2013 की आपदा के बाद तो इन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई. इसके बावजूद कुछ रिसर्चर और पर्यावरणविद राज्य में छोटे प्रोजेक्ट के हक में भी रहे हैं. उधर राज्य सरकारों की तरफ से केंद्र और सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह की पैरवी की जरूरत थी उसकी कमी भी दिखाई दी है.
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सुप्रीम कोर्ट में लचर पैरवी: लचर पैरवी के नतीजतन राज्य नए छोटे प्रोजेक्ट को लेकर भी कुछ खास परियोजनाएं तैयार नहीं कर पाया. उधर इन दिनों ऊर्जा संकट के बीच उन 10 परियोजनाओं पर सरकार की नजरें हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की एंपावर्ड कमेटी की तरफ से भी मंजूरी दी जा चुकी है लेकिन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की आपत्तियों ने इन पर ब्रेक लगाया हुआ है. अब राज्य सरकार इन परियोजनाओं पर बेहतर पैरवी के जरिए मंत्रालय की आपत्तियों का हल निकालने की कोशिश में है.
750 मेगावट बिजली मिल सकती है: राज्य सरकार को यदि इन परियोजनाओं को लेकर कामयाबी हासिल होती है, तो प्रदेश को 750 मेगावाट से ज्यादा बिजली हर महीने मिल सकती है. इन परियोजनाओं में 300 मेगावाट की नंदप्रयाग परियोजना, 252 मेगावाट की देवसारी, 100 मेगावाट की नंदप्रयाग लंगासू, 24.3 MW की मेलखेत, 24-24 MW की भिलंगना सेंकेंड ए और बी, 21 मेगावाट की भिलंगना सेकेंड परियोजना शामिल हैं.
इस साल दूसरी बार बढ़ सकते हैं बिजली के दाम: उत्तराखंड में बिजली की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर उद्योगों तक में पिछले दिनों बिजली की खूब कटौती की गई. इसका सीधा असर लोगों पर तो पड़ा ही साथ ही उद्योगों के उत्पादन पर भी प्रतिकूल असर पड़ा. स्थिति यह है कि अब यूपीसीएल ने उत्तराखंड सरकार से मदद मांगी है और इसके अलावा साल में दूसरी बार बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी करने की भी पेशकश की है.
ठंडी पड़ी कई परियोजनाएं: एक खास बात यह है कि यूजेवीएनएल की विभिन्न परियोजनाओं में भी उत्पादन कम होने लगा है. हालांकि इसको बढ़ाए जाने का लक्ष्य तय किया जा रहा है. लेकिन फिलहाल बिजली संकट के पीछे उत्पादन में कमी भी एक वजह रही है. दूसरी तरफ गैस और कोयले की कमी ने भी विभिन्न प्रोजेक्ट पर ताला लगा दिया है, जिससे राज्य को बिजली नहीं मिल पा रही है.
खाली नाम का ऊर्जा प्रदेश बन गया है उत्तराखंड: उत्तराखंड में ऊर्जा को लेकर इस संकट के बीच एक सवाल यह भी है कि यदि राज्य अपनी जरूरत की बिजली भी उत्पादन नहीं कर पा रहा है तो फिर उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश क्यों कहते हैं. इसके पीछे की वजह वह नदियां और ग्लेशियर हैं जो प्रदेश को निर्बाध धाराप्रवाह जल उपलब्ध कराता है. एक अनुमान के अनुसार प्रदेश में मौजूद नदियों से उत्तराखंड करीब 20,000 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन कर सकता है. जबकि प्रदेश अभी इसका एक चौथाई भी उत्पादन नहीं कर रहा है.
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अपनी क्षमता के अनुसार यदि उत्तराखंड विद्युत उत्पादन करता है तो अपनी जरूरतें पूरी करने के साथ पूरे देश को भी बिजली दे सकता है. राज्य में 25 जल विद्युत परियोजनाएं निर्मित की गई हैं. लेकिन इनमें से कई आपदा की भेंट चढ़ गईं तो कई में उत्पादन को लेकर दूसरी दिक्कतें भी हैं. राज्य में कई परियोजनाओं को संवेदनशील पर्यावरणीय परिवेश को संरक्षित करने के लिए रोका भी गया है.