देहरादून: टिहरी का घंटाघर.ये पुरानी टिहरी की वो याद है जिसे कोई भुलाये नहीं भूल सकता . राजशाही के दौर में ये टिहरी रियासत के वैभव का प्रतीक था. साल 1897 में तत्कालीन महाराज कीर्ति शाह ने घंटाघर का निर्माण करवाया था. लंदन के घंटाघर की तर्ज पर बने 110 फीट ऊंचे इस घंटाघर को बनने में 3 साल लगे.
टिहरी के घंटाघर उड़द को दाल के लेप से बनाया गया था. यही कारण है कि आज सालों बीत जाने के बाद भी घंटाघर टिहरी झील शान से खड़ा है. जब कभी भी झील का जलस्तर कम होता है तो इसे आसानी से देखा जा सकता है .
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पुरानी टिहरी खुद में सदियों का इतिहास समेटे हुए है, टिहरी झील का निर्माण हुआ तो पुरानी टिहरी झील के पानी में गुम हो गई, लेकिन टिहरी रियासत की पुरानी निशानियां आज भी यहां देखी जा सकती हैं, जिनसे लोगों का गहरा जुड़ाव है.
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डैम के पानी का जलस्तर कम होने पर पुरानी टिहरी की यादें ताजा हो जाती हैं. इस समय यहां पुराने घर, खेत, और घंटाघर दिखाई देते हैं. जो कि लोगों के जहन में धुंधली पड़ी यादों को एक बार फिर से नया रूप देती हैं. इस दौरान झील के आस-पास भारी संख्या में लोगों का हुजुम दिखाई देता है जो कि नये कि यहां पहुंच कर पुरानी यादों को नम आंखों से ताजा करते हैं.
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एक वक्त था जब ये पुरानी टिहरी लोगों की आन-बान और शान हुआ करता था, पुराने टिहरी शहर की सुंदरता के चर्चे दूर-दूर तक सुनाई देते थे, लेकिन वक्त के साथ सब पानी में जलमग्न हो गया. आज बची हैं तो बस पुरानी टिहरी शहर की यादें.