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400 सालों तक बर्फ से ढका था केदारनाथ धाम, आज भी ताजा हैं निशान

85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा देश के सबसे विशाल शिव मंदिरों में से एक बाबा केदारनाथ का मंदिर 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

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Published : May 9, 2019, 6:04 AM IST

Updated : May 9, 2019, 10:22 AM IST

बर्फ से ढकी केदार घाटी.

देहरादून: बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे महत्वपूर्ण केदारनाथ धाम देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल है. 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा देश के सबसे विशाल शिव मंदिरों में से एक बाबा केदारनाथ का मंदिर 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है. एक ओर है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी ओर है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी ओर है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड.

पढ़ें- तृतीय केदार तुंगनाथ की डोली धाम के लिये रवाना, 10 मई को खुलेंगे कपाट

केदार धाम में पांच ‍नदियों का संगम भी है. ये नदिया हैं- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी. इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा, लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी यहां आज भी मौजूद है. आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी में स्थापित इस मंदिर के पास ही कल-कल करती मंदाकिनी नदी बहती है.

केदारनाथ मंदिर को कटवां पत्थरों के भूरे रंग के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है. इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है. मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है.

इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है. मंदिर के गर्भगृह में चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तम्भ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है. सभामंडप विशाल एवं भव्य है. उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तम्भों पर टिकी है. विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है. गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं.

kedarnath
केदारनाथ धाम में की गई सजावट

पढ़ें- पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली पहुंची केदारनाथ, 15 हजार से ज्यादा श्रद्धालु बनेंगे ऐतिहासिक पल के साक्षी

केदारधाम का इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार, हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया. यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है.

माना जाता है कि एक हजार वर्षों से केदारनाथ पर तीर्थयात्रा जारी है. कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था. बाद में अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने इसका जीर्णोद्धार किया था. वक्त के साथ ये मंदिर लुप्त हो गया. बाद में 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने एक नये मंदिर का निर्माण कराया.

400 सालों तक बर्फ में दबा रहा मंदिर
13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था. केदारनाथ मंदिर भी उसी में शामिल था. 400 साल तक बर्फ में दबे रहने के बाद भी मंदिर सुरक्षित रहा. हालांकि, वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब बर्फ हटी तो उसके हटने के निशान मंदिर में मौजूद हैं. ये निशान ग्लेशियर की रगड़ से बने हैं. मंदिर में बाहर की ओर दीवारों के पत्थरों की रगड़ दिखती है तो अंदर की ओर पत्थर समतल हैं.

मंदिर के कपाट खुलने का समय
दीपावली के दूसरे दिन के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं. 6 महीने तक यहां दीप जलता रहता है. इन 6 महीने मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इन 6 महीनों तक ये दीपक जलता रहता है और निरंतर पूजा भी होती रहती है.

कपाट बंद करने के बाद पुरोहित भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ ले जाते हैं. 6 महीने बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है.

देहरादून: बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे महत्वपूर्ण केदारनाथ धाम देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल है. 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा देश के सबसे विशाल शिव मंदिरों में से एक बाबा केदारनाथ का मंदिर 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है. एक ओर है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी ओर है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी ओर है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड.

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केदार धाम में पांच ‍नदियों का संगम भी है. ये नदिया हैं- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी. इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा, लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी यहां आज भी मौजूद है. आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी में स्थापित इस मंदिर के पास ही कल-कल करती मंदाकिनी नदी बहती है.

केदारनाथ मंदिर को कटवां पत्थरों के भूरे रंग के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है. इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है. मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है.

इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है. मंदिर के गर्भगृह में चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तम्भ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है. सभामंडप विशाल एवं भव्य है. उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तम्भों पर टिकी है. विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है. गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं.

kedarnath
केदारनाथ धाम में की गई सजावट

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केदारधाम का इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार, हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया. यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है.

माना जाता है कि एक हजार वर्षों से केदारनाथ पर तीर्थयात्रा जारी है. कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था. बाद में अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने इसका जीर्णोद्धार किया था. वक्त के साथ ये मंदिर लुप्त हो गया. बाद में 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने एक नये मंदिर का निर्माण कराया.

400 सालों तक बर्फ में दबा रहा मंदिर
13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था. केदारनाथ मंदिर भी उसी में शामिल था. 400 साल तक बर्फ में दबे रहने के बाद भी मंदिर सुरक्षित रहा. हालांकि, वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब बर्फ हटी तो उसके हटने के निशान मंदिर में मौजूद हैं. ये निशान ग्लेशियर की रगड़ से बने हैं. मंदिर में बाहर की ओर दीवारों के पत्थरों की रगड़ दिखती है तो अंदर की ओर पत्थर समतल हैं.

मंदिर के कपाट खुलने का समय
दीपावली के दूसरे दिन के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं. 6 महीने तक यहां दीप जलता रहता है. इन 6 महीने मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इन 6 महीनों तक ये दीपक जलता रहता है और निरंतर पूजा भी होती रहती है.

कपाट बंद करने के बाद पुरोहित भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ ले जाते हैं. 6 महीने बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है.

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400 सालों तक बर्फ से ढका था बाबा केदार का धाम, आज भी ताजा हैं निशान





देहरादून: बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे महत्वपूर्ण केदारनाथ धाम देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल है.  85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा देश के सबसे विशाल शिव मंदिरों में से एक बाबा केदारनाथ का मंदिर 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है. एक ओर है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी ओर है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी ओर है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड. 



केदार धाम में पांच ‍नदियों का संगम भी है. ये नदिया हैं- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी. इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा, लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी यहां आज भी मौजूद है. आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी में स्थापित इस मंदिर के पास ही कल-कल करती मंदाकिनी नदी बहती है.  



केदारनाथ मंदिर को कटवां पत्थरों के भूरे रंग के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है. इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है. मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है. 



इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है. मंदिर के गर्भगृह में चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तम्भ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है. सभामंडप विशाल एवं भव्य है. उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तम्भों पर टिकी है. विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है. गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं.



केदारधाम का इतिहास

पौराणिक कथा के अनुसार, हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया. यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है.



माना जाता है कि एक हजार वर्षों से केदारनाथ पर तीर्थयात्रा जारी है. कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था. बाद में अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने इसका जीर्णोद्धार किया था. वक्त के साथ ये मंदिर लुप्त हो गया. बाद में 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने एक नये मंदिर का निर्माण कराया. 



400 सालों तक बर्फ में दबा रहा मंदिर

13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था. केदारनाथ मंदिर भी उसी में शामिल था. 400 साल तक बर्फ में दबे रहने के बाद भी मंदिर सुरक्षित रहा. हालांकि, वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब बर्फ हटी तो उसके हटने के निशान मंदिर में मौजूद हैं. ये निशान ग्लेशियर की रगड़ से बने हैं. मंदिर में बाहर की ओर दीवारों के पत्थरों की रगड़ दिखती है तो अंदर की ओर पत्थर समतल हैं.



मंदिर के कपाट खुलने का समय

दीपावली के दूसरे दिन के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं. 6 महीने तक यहां दीप जलता रहता है. इन 6 महीने मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इन 6 महीनों तक ये दीपक जलता रहता है और निरंतर पूजा भी होती रहती है. 



कपाट बंद करने के बाद पुरोहित भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ ले जाते हैं. 6 महीने बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है.


Conclusion:
Last Updated : May 9, 2019, 10:22 AM IST
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