नई दिल्ली: देश के बैंकिंग इतिहास में 19 जुलाई को महत्वपूर्ण माना जाता है. दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 19 जुलाई, 1969 को 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था.
उस समय इन 14 सबसे बड़े निजी बैंकों के पास देश की 80 प्रतिशत पूंजी इकट्ठा थी. और निजी स्वामित्व होने के कारण इन बैंकों पर कुछ चंद पूंजीपतियों का ही प्रभाव था.
राष्ट्रीयकरण का दूसरा दौर 1980 में आया, जिसके तहत सात और बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया. विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रीयकरण के बाद भारत के बैंकिंग क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई.
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भारत में बहुत से विदेशी और निजी क्षेत्र के बैंक सक्रिय हैं, लेकिन एक अनुमान के अनुसार बैंकों की सेवाएं लेने वाले लगभग 90 फीसदी लोग अब भी सरकारी क्षेत्र के बैंकों की ही सेवाएं लेते हैं.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण से आप क्या समझते हैं?
राष्ट्रीयकरण से मतलब है कि पब्लिक सेक्टर की संपत्ति का संचालन राज्य या केंद्र सरकार द्वारा करना. भारत में जो बैंक पहले से प्राइवेट सेक्टर के अंदर थे उन्हें राष्ट्रीयकरण के अधिनियम के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र में बदला गया.
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण दो चरणों में सम्पन्न हुआ
- पहले चरण में 19 जुलाई 1969 को 14 व्यवसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया.
- दूसरे चरण में 15 अप्रैल 1980 में 6 और व्यवसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण
- सामाजिक कल्याण के लिए
- बैंकिंग की आदत बढ़ाने करने के लिए
- बैंकिंग क्षेत्र के विस्तार के लिए
- निजी एकाधिकार को नियंत्रित करने के लिए
- क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने के लिए
- प्राइवेट क्षेत्र में ऋण देने के लिए
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की थी:
- सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
- बैंक ऑफ इण्डिया
- पंजाब नेशनल बैंक
- बैंक ऑफ बड़ौदा
- यूनाइटेड कामर्शियल बैंक
- केनरा बैंक
- यूनाइटेड बैंक ऑफ इण्डिया
- देना बैंक
- यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया
- इलाहाबाद बैंक
- सिन्डीकेट बैंक
- इण्डियन ओवरसीज बैंक
- इन्डियन बैंक
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र