नैनीताल: आजादी की लड़ाई से कटे रहे कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा था. 1929 और 1931 में महात्मा गांधी कुमाऊं की यात्रा पर पहुंचे और नैनीताल से लेकर बागेश्वर तक यात्रा कर पहाड़ के लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया.
आजादी की लड़ाई के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को जब भी शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता ने घेरा, उन्होंने कुमाऊं की शांत वादियों का रुख किया. पहली बार कुमाऊं की धरती पर गांधी जी के कदम 14 जून को पड़े थे. 15 जून को नैनीताल को उनके इस्तकबाल का सौभाग्य मिला था. 11 जून 1929 को गांधी जी अहमदाबाद से हल्द्वानी को रवाना हुए थे. 14 जून को हल्द्वानी पहुंचने के बाद उसी दिन गांधी जी काठगोदाम-नैनीताल मार्ग पर स्थित ताकुला गांव पहुंचे. महात्मा गांधी को ताकुला गांव बेहद पसंद आया और उन्होंने उसी वक्त वहां एक गांधी आश्रम की नींव रखी. 15 जून को गांधी जी नैनीताल पहुंचे और यहां उन्होंने लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्ररित किया. यह सिलसिला भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा और बागेश्वर तक जारी रहा. दूसरी बार गांधी जी 1931 में दोबारा कुमाऊं के दौरे पर पहुंचे और ताकुला स्थित गांधी आश्रम में कुछ दिन तक रहे. गांधी जी की कुमाऊं यात्रा ने यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये नई चेतना दी.
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गांधी जी की कुमाऊं यात्रा के बाद कुमाऊं के लोग आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे. कुमाऊं दौरे के दौरान गांधी जी ताकुला के आश्रम में रहे थे. 14 जून 1929 को ताकुला पहुंचने के बाद अगले दिन महात्मा गांधी ने महिलाओं को संबोधित किया. जिससे महिलाएं खासा प्रभावित हुईं और महिलाओं द्वारा आंदोलन के संचालन के लिए अपने आभूषणों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए दान दिया गया. महिलाओं के इस कदम से आम जनता भी प्रभावित हुई. परिणाम स्वरूप कुमाऊं के लोगों ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई.
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नैनीताल हल्द्वानी मार्ग पर स्थित ताकुला के गांधी मंदिर की खुद महात्मा गांधी ने बुनियाद रखी थी. इतना ही नहीं गांधी जी ने इस धाम के बनने के बाद प्रवास भी यहीं किया था. यह गांधी जी का अपनी तरह का देश का इकलौता ऐसा स्थल है. गांधी मंदिर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ऐसी यादें हैं जिनसे प्रेरणा पाकर आज की पीढ़ी अपना जीवन संवार सकती है. बेहतर होगा कि गांधी मंदिर में बापू की यादों को सहेजा जाए उनका संरक्षण किया जाए. ताकि आने वाले पीढ़ी भी गांधी जी और कुमाऊं के रिश्ते को समझ सके उसे जाना सके.